बाराबंकी: खतरनाक सांडों को काबू कर उन्हें गौशालाओं तक पहुंचाने में आ रही दिक्कतों को देखते हुए पशुपालन विभाग ने एक नया मेकैनिज्म तैयार किया है. विभाग अब ट्रैंक्विलाइजर गन (tranquilizer gun) की मदद से इन खतरनाक सांडों को काबू करेगा. ट्रैंक्विलाइजर गन (डार्ट गन) की खरीद के लिए मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ने प्रस्ताव तैयार किया है, जो जिलाधिकारी के माध्यम से शासन को भेजा जाएगा. परमिशन मिलते ही तकरीबन 3 लाख रुपये कीमत वाली डार्ट गन खरीदी जाएगी.
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी धर्मेंद्र पांडेय ने बताया कि गायों को तो पकड़ना आसान होता है. लेकिन खतरनाक सांडों को काबू में करना एक बड़ा चैलेंज होता है. कई बार तो इन सांडों को पकड़ने में लोग घायल तक हो जाते हैं. वहीं, अक्सर इनके बड़े बड़े सींग देखकर लोग दहशत में आ जाते हैं. हाथ में लाठी डंडे होने के बावजूद इन सांडों की ओर देखने की हिम्मत नहीं होती है. ऐसे में इन सांडों को ट्रैंक्विलाइजर गन से काबू में करने एक प्रस्ताव बनाया गया है.
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ने बताया कि ट्रैंक्विलाइजर गन की खरीद के लिए तकरीबन 3 लाख रुपये का प्रस्ताव तैयार किया गया है. जो एक दो दिन में जिलाधिकारी अविनाश कुमार के समक्ष रखा जाएगा. उनके अनुमोदन के बाद यह प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा. अगर मंजूरी मिली तो जल्द ही यह ट्रैंक्विलाइजर गन विभाग के पास होगी. अगर विभाग इस गन को खरीदेगा तो इसको ऑपरेट करने के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. ताकि इसका ठीक ढंग से प्रयोग हो सके.
क्या है ट्रैंक्विलाइजर गन: ट्रैंक्विलाइजर गन को डार्ट गन (dart gun)कहते हैं. यह एक एयर राइफल होती है, जो यह डार्ट फायर करती है. डार्ट को सूई या सिरिंज भी कहते हैं. डार्ट की नोंक पर एक हाइपोडर्मिक निडिल को अटैच किया जाता है. इस निडिल में बेहोशी उत्पन्न करने वाली दवा (sedative) भरी जाती है. इसिलिए इसे ट्रैंक्विलाइजर गन (tranquilizer gun) कहते हैं. इसका उपयोग अमूमन खतरनाक कुत्तों, तेंदुआ या जंगली जानवरों को पकड़ने में किया जाता है. इसमें sedative का प्रयोग मेडिकल एक्सपर्ट की मदद से किया जाता है वरना अगर खुराक की मात्रा ज्यादा हो गई, तो यह पशुओं के लिए जानलेवा भी हो सकती है.
जिले में 109 गौशालाएंः पशुपालन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक जिले में 109 गौशालाएं एक्टिव हैं और 08 निर्माणाधीन हैं. जो जल्द ही बनकर तैयार हो जाएंगी. सड़कों पर घूम रहे आवारा गौवंशों को पकड़कर इन गौशालाओं में पहुंचाया जाता है. जिले में तकरीबन 10 हजार मेल गौवंश और 11 हजार फीमेल गौवंश हैं. सड़कों पर घूम रहे आवारा गौवंशों से न केवल किसानों की फसलों को भारी नुकसान हो रहा है, बल्कि सड़कों पर आ जाने से आये दिन दुर्घटनाएं भी होती हैं. इन आवारा पशुओं को लगातार पकड़कर गौशालाओं में छोड़ा जाता है. लेकिन फिर ये न जाने कहां से सड़कों पर और किसानों के खेतों तक पहुंच जाते हैं.
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