बांदा: उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) में जीत सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक पार्टियां रणनीति तैयार कर रही हैं. चुनाव नजदीक आता देख संभाावित प्रत्याशी और नेता जनता के बीच दिखाई देने लगे हैं. मौजूदा वक्त में नेता क्षेत्रीय जनता का दुःख दर्द साझा करते जगह-जगह नजर आ रहे हैं. बांदा की 234 नरैनी विधानसभा सीट (Naraini Assembly Constituencies) में भी चुनावी मौसम का रंग खूब देखने को मिल रहा है. यहां, पर भी उन नेताओं को अब लोगों के बीच देखा जा सकता है जो चुनाव खत्म होने के बाद एकदम गायब हो जाते हैं.
नरैनी विधानसभा की बात करें तो यह सीट अनुसूचित जाति और ब्राह्मण बाहुल्य सीट है. इतिहास गवाह है जो इन दो जातियों के लोगों के दिलों में अपनी जगह बना लेता है. उनका भरोसा जीत लेता है वह प्रत्याशी विधायक बन जाता है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा सीट से बीएसपी के कद्दावर नेता और विधायक गयाचरण दिनकर की हार हुई थी. 1991 के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में दोबारा इस सीट पर बीजेपी को जीत नशीब हुई और राजकरण कबीर विधायक (MLA Rajkaran Kabir) बने. नरैनी विधानसभा सीट Banda Naraini 234 Assembly Seat) पिछड़े वर्ग की लिए आरक्षित सीट है. इस विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या की अगर बात की जाये तो यहां पर कुल 3,38,745 मतदाता हैं, जिसमें 1,85003 पुरुष मतदाता तो 1,53,733 महिला मतदाता हैं. वहीं, थर्ड जेंडर मतदाताओं की संख्या महज 19 है.
हमेशा से सपा और बसपा का गढ़ रहे बुंदेलखंड में 2017 के विधानसभा के चुनाव में ऐसी मोदी की लहर चली कि बुंदेलखंड की सभी 19 सीटों पर बीजेपी ने बाजी मार ली थी. हालांकि, नरैनी विधानसभा सीट में 2017 के चुनाव में बीएसपी के कद्दावर नेता गयाचरण दिनकर को अपनी यह सीट गवानी पड़ी थी. उन्हें, तीसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था. वहीं, दूसरे नंबर पर कांग्रेस के भरतलाल दिवाकर थे, जिन्हें बीजेपी के राजकरण कबीर ने 45,007 मतों से करारी शिकस्त दी थी.
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पिछड़ी विधानसभा मानी जाती है नरैनी
नरैनी विधानसभा सबसे पिछड़ी विधानसभा मानी जाती है. कारण यह है कि इस विधानसभा की सीमा मध्य प्रदेश की सीमा से जुड़ी हुई है. भौगोलिक लिहाज से देखा जाए तो इस क्षेत्र में भूमि उतनी उपजाऊ नहीं है, जितनी की दूसरे क्षेत्रों की है. यहां का ज्यादातर हिस्सा जंगल है और उबड़ खाबड़ है. विसंगति यह है कि इस विधानसभा क्षेत्र में किसी भी तरह के रोजी रोजगार के विशेष साधन नहीं हैं, जिसके चलते लोग थोड़ी बहुत खेती कर ही अपना गुजर बसर करते हैं या फिर पलायन कर गैर राज्यों में रोजगार कमाते हैं. क्षेत्र मूलभूत सुविधाओं के लिहाज से काफी पिछड़ा है. सड़कों की भी समस्या है तो वहीं पानी की भी समस्या से लोग खासा परेशान रहते हैं. क्योंकि पथरीली जमीन होने के चलते यहां पानी का संकट रहता है. हालांकि, इस क्षेत्र से सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व भी मिलता है. क्योंकि इस क्षेत्र में जहां पहाड़ों में खनन कर गिट्टी निकाली जाती है तो वहीं, इस क्षेत्र की केन व बागे नदी से मौरंग को भी निकाली जाती है, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व मिलता है.
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हालांकि, करोड़ों रुपए का राजस्व देने वाला यह क्षेत्र आज भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है. यहां से खनिज संपदा का बड़े वाहनों से परिवहन होने के चलते सड़कें भी खराब होती हैं, जिसको लेकर आए दिन लोग शिकायत करते रहते हैं. इस क्षेत्र में नहरों के माध्यम से खेतों की सिंचाई की जाती है, लेकिन समय से पानी न मिलने की किसानों की शिकायत भी रहती है. इसके अलावा पेयजल, बिजली आपूर्ति और अन्ना गायों की भी समस्या आम है. इस बार के चुनाव में ऐसा माना जा रहा है कि यही मुद्दे जनता के चुनाव लड़ने वाले नेताओं के सामने होंगे.
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