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...अगर इस पद्धति से करेंगे धान की खेती तो पैदावर में लगेगी कम लागत - श्री पद्धति से धान की खेती

उत्तर प्रदेश का बांदा जिला वैसे तो दलहन और तिलहन फसलों के लिए जाना जाता है, लेकिन श्री पद्धति अपनाकर किसान धान की भी अच्छी पैदावार कर सकते हैं.

श्री पद्धति से धान की खेती.
श्री पद्धति से धान की खेती.
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Published : May 23, 2020, 5:52 PM IST

बांदा: बुंदेलखंड दलहन और तिलहन फसलों के लिए जाना जाता है. कारण यह है कि दलहन और तिलहन की फसलों में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती. इसके बावजूद जिले के कुछ क्षेत्रों में धान की फसल भी अच्छी होती है. ऐसे में अब कृषि वैज्ञानिक किसानों को श्री पद्धति से धान की खेती करने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि इसमें सामान्य तरीके से धान की खेती करने की तुलना में ज्यादा बचत होती है.

धान की खेती.
जिले में अतर्रा और नरैनी क्षेत्र में धान की खेती किसान करते हैं. इस क्षेत्र को धान की खेती के लिए उपयुक्त भी माना जाता है, क्योंकि यहां पर धान की अच्छी प्रजाति की पैदावार किसानों द्वारा कई सालों से की जा रही है. इसको ध्यान में रखते हुए जिला कृषि विभाग अब किसानों को ज्यादा से ज्यादा उनकी फसलों में बचत हो, इसको लेकर नई तरीके से धान की खेती करने की सलाह दे रहे हैं. विभाग व कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो अगर यहां के किसान श्रीपद्धति से धान की खेती करेंगे तो धान की फसल में होने वाले खर्चों में बचत कर सकेंगे.

ये भी पढ़ें- CM योगी को धमकी मामला: STF को मुंबई में मिली मोबाइल की लोकेशन, टीम रवाना

जिला कृषि अधिकारी डॉ. प्रमोद कुमार ने बताया कि अगर धान की फसल में लागत कम करनी है तो किसानों को सामान्य पद्धति की अपेक्षा श्रीपद्धति से धान की खेती को करना चाहिए. इसमें लागत बहुत कम हो जाती है. इस विधि से खेती करने में बीज की बचत होती है. प्रति हेक्टेयर 6 से 7 किलोग्राम बीच की ही आवश्यकता पड़ती है.

नर्सरी तैयार करने के बाद पौधरोपण को खेत में करने के लिए ज्यादा पानी भी न भरें, इससे पानी की बचत होगी. जो पौधे से पौधे की दूरी और लाइन से लाइन की दूरी को रखते हैं. वह स्क्वायर सिस्टम में रखते हैं. इसके लिए 20 से 20 या 25 से 25 सेंटीमीटर दूरी रखते हैं. इससे हमारी उत्पादकता अच्छी मिलती है. इससे बीज की भी बचत होने के साथ-साथ लेबर की भी बचत होती है. वहीं उर्वरकों की भी 10 से 15% की बचत की जा सकती है.

बांदा: बुंदेलखंड दलहन और तिलहन फसलों के लिए जाना जाता है. कारण यह है कि दलहन और तिलहन की फसलों में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती. इसके बावजूद जिले के कुछ क्षेत्रों में धान की फसल भी अच्छी होती है. ऐसे में अब कृषि वैज्ञानिक किसानों को श्री पद्धति से धान की खेती करने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि इसमें सामान्य तरीके से धान की खेती करने की तुलना में ज्यादा बचत होती है.

धान की खेती.
जिले में अतर्रा और नरैनी क्षेत्र में धान की खेती किसान करते हैं. इस क्षेत्र को धान की खेती के लिए उपयुक्त भी माना जाता है, क्योंकि यहां पर धान की अच्छी प्रजाति की पैदावार किसानों द्वारा कई सालों से की जा रही है. इसको ध्यान में रखते हुए जिला कृषि विभाग अब किसानों को ज्यादा से ज्यादा उनकी फसलों में बचत हो, इसको लेकर नई तरीके से धान की खेती करने की सलाह दे रहे हैं. विभाग व कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो अगर यहां के किसान श्रीपद्धति से धान की खेती करेंगे तो धान की फसल में होने वाले खर्चों में बचत कर सकेंगे.

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जिला कृषि अधिकारी डॉ. प्रमोद कुमार ने बताया कि अगर धान की फसल में लागत कम करनी है तो किसानों को सामान्य पद्धति की अपेक्षा श्रीपद्धति से धान की खेती को करना चाहिए. इसमें लागत बहुत कम हो जाती है. इस विधि से खेती करने में बीज की बचत होती है. प्रति हेक्टेयर 6 से 7 किलोग्राम बीच की ही आवश्यकता पड़ती है.

नर्सरी तैयार करने के बाद पौधरोपण को खेत में करने के लिए ज्यादा पानी भी न भरें, इससे पानी की बचत होगी. जो पौधे से पौधे की दूरी और लाइन से लाइन की दूरी को रखते हैं. वह स्क्वायर सिस्टम में रखते हैं. इसके लिए 20 से 20 या 25 से 25 सेंटीमीटर दूरी रखते हैं. इससे हमारी उत्पादकता अच्छी मिलती है. इससे बीज की भी बचत होने के साथ-साथ लेबर की भी बचत होती है. वहीं उर्वरकों की भी 10 से 15% की बचत की जा सकती है.

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