बलरामपुरः जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर झौहना ग्राम पंचायत के कल्याणपुर मटहा मजरे गांव स्थित है. राप्ती नदी के बाढ़ से प्रभावित होकर इस गांव के 300 परिवार पलायन करने को मजबूर हैं. राप्ती नदी के कटान के कारण किसानों की तकरीबन 500 से 700 बीघा जमीन और सैंकड़ों लोगों का घर, गांव का प्राथमिक विद्यालय और मंदिर राप्ती नदी में समाहित हो चुका है.
लोग तैर कर जाते हैं बाजार
कल्याणपुर मटहा गांव के चारों तरफ से राप्ती नदी ने घेर रखा है. इतना ही नहीं गांव के लोग अपने घरों को खुद उजाड़ रहे हैं. जिससे थोड़ी बहुत चीजों को बचाया जा सके, लेकिन राप्ती नदी के विकरालता के सामने सारी कोशिश बेकार साबित हो रही है. गांव से लोग पलायन करने को मजबूर हैं. चारों तरफ से राप्ती नदी से घिरे, टापू बन चुके गांव के लोगों को नदी तैरकर पार करने को मजबूर हैं. लोग बाजार जाने के लिए भी या तो नाव का सहारा लेते हैं या तैरकर अपना रास्ता तय करते हैं.
मूलभूत सुविधाओं से वंचित है गांव
अपनी समस्याओं पर बात करते हुए ग्रामीण बताते हैं कि कटान की वजह से गांव सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से अभी भी वंचित है. अगर किसी की तबीयत खराब होती है तो इलाज की सुविधा न होने और यहां से बाहर निकलने का संसाधन न मिल पाने के कारण वह दम तोड़ देता है. इस कारण से गांव में पिछले वर्ष और इस वर्ष में लगभग 10 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. ग्रामीण बताते हैं कि गांव के लोग पहले भी अशिक्षित थे और अब भी हैं. गांव में कोई स्कूल न होने के कारण बच्चे भी शिक्षा से वंचित रह जा रहे हैं. पिछले साल तक गांव में एक प्राइमरी स्कूल था. वह भी इस साल नदी में समाहित हो गया. गांव में अभी तक बिजली नहीं आ पाई है. न ही पेय जल की कोई सुविधा है.
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यहां नहीं होती है युवक-युवतियों की शादी
ग्रामीणों ने बताया कि इन कारणों से हमारे गांव में कोई रिश्ता (शादी) भी नहीं करना चाहता. गांव के कई युवक युवतियों की अभी तक शादी नहीं हो सकी है. कारण, गांव में रास्ते का न होना और मूलभूत सुविधाओं से गांव का पूरी तरह से कटा होना. ग्रामीणों का कहना है कि गांव साल के दस महीने राप्ती नदी की बाढ़ से घिरा रहता है. यहां आने जाने के लिए केवल एक संसाधन है, वह है सरकार द्वारा दी गई एक टीन की नाव. जिसे चलाने के लिए नियुक्त कर्मी भी नहीं आता है.
मुआवजे के नाम पर मजाक कर रहा है जिला प्रशासन
पिछले साल हुए कटान के बारे में कल्याणपुर मटहा के लोग बताते हैं कि पिछले साल तकरीबन डेढ़ सौ परिवारों का घर नदी में समाहित हो गया था. जहां पर गांव पहले बसा हुआ था. अब वह जगह नदी में एक टापू की तरह नजर आता है. जिला प्रशासन ने लोगों की सहायता करने के लिए मुआवजा देने की घोषणा की थी, लेकिन महज 35 लोगों को ही 4100-4100 रुपये का मुआवजा दिया. बचे हुए लोग आज भी सरकार से मुआवजा पाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. सरकार या जिला प्रशासन द्वारा आज तक इसके अतिरिक्त कोई सहायता नहीं प्रदान की है. ग्रामीणों का कहना है कि घर दोबारा बनाने के लिए भी सरकार द्वारा कोई सहायता नहीं दी गई. यह मजाक नहीं है तो क्या है.
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ग्रामीणों की हो रही है हर तरह से सहायता
इसके संबंध में अपर जिला अधिकारी, आपदा प्रबंधन अधिकारी अरुण कुमार शुक्ला ने बताया की कटान को रोकने के लिए वहां पर काम कराया जा रहा है. ग्रामीणों के आने जाने के लिए दो नाव हैं. ग्रामीणों की आवश्यकता अनुसार एक नाव और बढ़ा दी जाएगी, जिससे वहां पर आने जाने में लोगों को परेशानी न हो. ग्रामीणों के लिए राहत कार्य तेजी से किए जा रहे हैं.
कब मिलेगी इन लोगों को राप्ती के कहर से आजादी
अब अधिकारी या नेता कुछ भी दावे करें, लेकिन कल्याणपुर मटहा के लोग लगातार कई सालों से परेशानी को झेलते आ रहे हैं. कटान में जहां उनके घर नष्ट हो गए. खेत नष्ट हो गए. वहीं, बच्चों को पढ़ने-लिखने के लिए एक विद्यालय की जगह भी अब उनके पास नहीं है. ग्रामीण, जिला प्रशासन से खुद को विस्थापित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन जिला प्रशासन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.