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जानिए कहानी उस लोकसभा सीट के बारे में , जिसने देश को दो 'भारत रत्न' दिए - balrampur news

श्रावस्ती लोकसभा सीट ने देश को दो भारत रत्न पुरूष दिए है और वहीं इस लोकसभा सीट में जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सनातन धर्म तीनों धर्म का संगम देखने को मिलता है. श्रावस्ती लोकसभा सीट में दो जिले आते है पहला जिला श्रावस्ती और दूसरा बलरामपुर

कहानी उस लोकसभा सीट की, जिसने देश को दो 'भारत रत्न' दिए
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Published : Apr 20, 2019, 11:40 AM IST

बलरामपुर: भगवान राम के प्रपौत्र महाराजा प्रसेनजित की राजधानी रही श्रावस्ती लोकसभा सीट न केवल महात्मा बुद्ध,जैन धर्म के दिगम्बर गुरु और मां पाटेश्वरी की धरती है. बल्कि इस लोकसभा सीट की उपयोगिता और महत्वता में चार चांद लगाता है इसका राजनीतिक इतिहास. श्रावस्ती लोकसभा सीट के अंतर्गत दो जिले आते हैं पहला श्रावस्ती जिला और दूसरा बलरामपुर. बलरामपुर जिले में कुल चार विधानसभा सीटें आती है.

राजनीतिक विश्लेषक टी बी लाल ने मीडिया से की बातचीत.

आइए जानते है श्रावस्ती लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास

  • बलरामपुर लोकसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई.
  • इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के युवा नेता और बेहद प्रखर वक्त अटल बिहारी वाजपेई चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में उन्होंने ग्वालियर और बलरामपुर लोकसभा सीटों से पर्चा दाखिल किया और अपना भाग्य आजमाया था.
  • बलरामपुर के लोगों ने युवा नेता और प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी को देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजने का काम किया.
  • अटल जी ने गांव-गांव घूमकर जंक्शन के चुनाव चिन्ह दीपक को जन-जन तक पहुंचाया. इसका परिणाम यह रहा कि उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की करीबी रहे सुभद्रा जोशी को भारी मतों से पराजित करके यह सीट जनसंघ की बना दी.
  • साल 1957 में फिर मुकाबला पंडित अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर सीट को जनसंघ की झोली में डाल दिया और विजयी हुए.
  • साल 1962 में फिर मुकाबला पंडित अटल बिहारी वाजपेयी और सुभद्रा जोशी के बीच में था लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी पर इंदिरा गांधी का राज चल रहा था और उन्होंने पूरी मशीनरी चुनाव जीतने के लिए लगा दी.
  • सुभद्रा जोशी ने देश के सबसे युवा सांसद अटल बिहारी वाजपेयी को भारी मतों से शिकस्त दी और संसद पहुंची.
  • साल 1971 में कांग्रेस के चंद्र पाल मणि तिवारी बलरामपुर की सीट से जीत कर संसद पहुंचे इसके बाद साल 1977 में नानाजी देशमुख ने जनसंघ का परचम लहराया और वह संसद पहुंचे.
  • साल 1977 में जयप्रकाश नारायण के द्वारा आहूत की गई रैलियों और जन आक्रोश के कारण देशभर में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी
  • इसके बावजूद बलरामपुर स्टेट का एक सदस्य पहली बार चुनाव में उतरा. वहीं दूसरी तरफ जमीनी स्तर पर आदिवासी धर्म और गरीबों के लिए काम कर रहे नानाजी देशमुख को जनता पार्टी ने बलरामपुर स्टेट की महारानी राज लक्ष्मी देवी के मुकाबले मैदान में उतार दिया.इन चुनावों में नानाजी देशमुख ने बाजी तो मार ली.
  • साल 1980 में हुए चुनाव में चंद्रपाल मणि तिवारी ने एक बार फिर बाजी मारी इसके बाद साल 1984 के चुनाव में महंत दीपनारायण वन ने कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा तक की सवारी की.
  • साल 1989 में यहां पर एक निर्दलीय उम्मीदवार का परचम लहरा फैज उर रहमान मुन्नन खान का नाम के साधारण आदमी ने कांग्रेस के उम्मीदवार को शिकस्त देकर लोकसभा में बलरामपुर की जनता की आवाज उठाई.
  • साल 1991 में भाजपा के सत्यदेव सिंह यहां से सांसद बने और साल 1996 में भी सत्यदेव सिंह ने ही बलरामपुर की जनता की आवाज संसद में उठाने का काम किया.
  • साल 1998 के चुनाव में पहली बार भाजपा और कांग्रेस के खाते से यह सीट बिछड़कर समाजवादी पार्टी के खाते में गई.पहली बार बाहुबली नेता रिजवान जहीर समाजवादी पार्टी के सांसद बने.
  • साल 1999 में हुए चुनाव में रिजवान जहीर नसीर बाजी मारी और वह संसद पहुंचे. साल 2004 के चुनाव में जनता का फिर बदला और उसने बृजभूषण शरण सिंह को भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचाया.

बलरामपुर: भगवान राम के प्रपौत्र महाराजा प्रसेनजित की राजधानी रही श्रावस्ती लोकसभा सीट न केवल महात्मा बुद्ध,जैन धर्म के दिगम्बर गुरु और मां पाटेश्वरी की धरती है. बल्कि इस लोकसभा सीट की उपयोगिता और महत्वता में चार चांद लगाता है इसका राजनीतिक इतिहास. श्रावस्ती लोकसभा सीट के अंतर्गत दो जिले आते हैं पहला श्रावस्ती जिला और दूसरा बलरामपुर. बलरामपुर जिले में कुल चार विधानसभा सीटें आती है.

राजनीतिक विश्लेषक टी बी लाल ने मीडिया से की बातचीत.

आइए जानते है श्रावस्ती लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास

  • बलरामपुर लोकसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई.
  • इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के युवा नेता और बेहद प्रखर वक्त अटल बिहारी वाजपेई चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में उन्होंने ग्वालियर और बलरामपुर लोकसभा सीटों से पर्चा दाखिल किया और अपना भाग्य आजमाया था.
  • बलरामपुर के लोगों ने युवा नेता और प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी को देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजने का काम किया.
  • अटल जी ने गांव-गांव घूमकर जंक्शन के चुनाव चिन्ह दीपक को जन-जन तक पहुंचाया. इसका परिणाम यह रहा कि उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की करीबी रहे सुभद्रा जोशी को भारी मतों से पराजित करके यह सीट जनसंघ की बना दी.
  • साल 1957 में फिर मुकाबला पंडित अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर सीट को जनसंघ की झोली में डाल दिया और विजयी हुए.
  • साल 1962 में फिर मुकाबला पंडित अटल बिहारी वाजपेयी और सुभद्रा जोशी के बीच में था लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी पर इंदिरा गांधी का राज चल रहा था और उन्होंने पूरी मशीनरी चुनाव जीतने के लिए लगा दी.
  • सुभद्रा जोशी ने देश के सबसे युवा सांसद अटल बिहारी वाजपेयी को भारी मतों से शिकस्त दी और संसद पहुंची.
  • साल 1971 में कांग्रेस के चंद्र पाल मणि तिवारी बलरामपुर की सीट से जीत कर संसद पहुंचे इसके बाद साल 1977 में नानाजी देशमुख ने जनसंघ का परचम लहराया और वह संसद पहुंचे.
  • साल 1977 में जयप्रकाश नारायण के द्वारा आहूत की गई रैलियों और जन आक्रोश के कारण देशभर में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी
  • इसके बावजूद बलरामपुर स्टेट का एक सदस्य पहली बार चुनाव में उतरा. वहीं दूसरी तरफ जमीनी स्तर पर आदिवासी धर्म और गरीबों के लिए काम कर रहे नानाजी देशमुख को जनता पार्टी ने बलरामपुर स्टेट की महारानी राज लक्ष्मी देवी के मुकाबले मैदान में उतार दिया.इन चुनावों में नानाजी देशमुख ने बाजी तो मार ली.
  • साल 1980 में हुए चुनाव में चंद्रपाल मणि तिवारी ने एक बार फिर बाजी मारी इसके बाद साल 1984 के चुनाव में महंत दीपनारायण वन ने कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा तक की सवारी की.
  • साल 1989 में यहां पर एक निर्दलीय उम्मीदवार का परचम लहरा फैज उर रहमान मुन्नन खान का नाम के साधारण आदमी ने कांग्रेस के उम्मीदवार को शिकस्त देकर लोकसभा में बलरामपुर की जनता की आवाज उठाई.
  • साल 1991 में भाजपा के सत्यदेव सिंह यहां से सांसद बने और साल 1996 में भी सत्यदेव सिंह ने ही बलरामपुर की जनता की आवाज संसद में उठाने का काम किया.
  • साल 1998 के चुनाव में पहली बार भाजपा और कांग्रेस के खाते से यह सीट बिछड़कर समाजवादी पार्टी के खाते में गई.पहली बार बाहुबली नेता रिजवान जहीर समाजवादी पार्टी के सांसद बने.
  • साल 1999 में हुए चुनाव में रिजवान जहीर नसीर बाजी मारी और वह संसद पहुंचे. साल 2004 के चुनाव में जनता का फिर बदला और उसने बृजभूषण शरण सिंह को भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचाया.
Intro:भगवान राम के प्रपौत्र महाराजा प्रसेनजित की राजधानी रही श्रावस्ती लोकसभा सीट न केवल महात्मा बुद्ध, जैन धर्म के दिगम्बर गुरु और माँ पाटेश्वरी की धरती है। बल्कि इस लोकसभा सीट की उपयोगिता और महत्वता में चार चांद लगाने के लिए विस्तृत राजनीतिक इतिहास भी।
श्रावस्ती लोकसभा सीट के अंतर्गत 2 जिले आते हैं पहला श्रावस्ती जिला और दूसरा बलरामपुर। बलरामपुर जिले में कुल 4 विधानसभा सीटें हैं जिम में सही कुत्ता वाला विधानसभा सीट गोंडा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। बाकी की 3 विधानसभा सीटें तुलसीपुर, बलरामपुर सदर, गैसड़ी विधानसभाएं श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। वहीं, श्रावस्ती जिले की श्रावस्ती विधानसभा सीट और बिंदा विधानसभा सीट आती हैं।


Body:बलरामपुर लोकसभा सीट 1952 मेब अस्तित्व में आई। जिसके अंतर्गत बलरामपुर, उतरौला, सादुल्लानगर, गैसड़ी व तुलसीपुर विधानसभा क्षेत्र शामिल थे। बलरामपुर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व 6 बार भाजपा 5 बार कांग्रेस और दो बार समाजवादी पार्टी ने किया है। जबकि एक बार यहां से निर्दलीय प्रत्याशी ने भी जीतकर अपना परचम लहराया है। वर्ष 1952 में अस्तित्व में आया लोकसभा सीट वर्ष 2009 में समाप्त हो गई थी। इसकी जगह पर श्रावस्ती नाम की नई लोकसभा सीट को चुनाव आयोग ने जन्म दिया।
1952 के चुनावों में बलरामपुर सीट से पहली बार जीत कांग्रेस प्रत्याशी बैरिस्टर हैदर हुसैन रिजवी ने दर्ज़ की थी। अवध क्षेत्र की सीट पर जनसंघ की नजर पड़ी। जब उन्हें यहां से लड़ने के लिए कोई बड़ा नेता नहीं मिल रहा था।
बलरामपुर लोकसभा के 1957 में अस्तित्व में आया। इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के युवा नेता और बेहद प्रखर वक्त अटल बिहारी वाजपेई चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में उन्होंने ग्वालियर और बलरामपुर लोकसभा सीटों से पर्चा दाखिल किया और अपना भाग्य आजमाया था। लेकिन बलरामपुर के लोगों ने युवा नेता और प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेई को देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजने का काम किया। अटल जी ने गांव-गांव घूमकर जंक्शन के चुनाव चिन्ह दीपक को जन-जन तक पहुंचाया। इसका परिणाम यह रहा कि उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की करीबी रहे सुभद्रा जोशी को भारी मतों से पराजित करके यह सीट जनसंघ की बना दी।
साल 1962 में फिर मुकाबला पंडित अटल बिहारी वाजपेई और सुभद्रा जोशी के बीच में था लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी पर इंदिरा गांधी का राज चल रहा था और उन्होंने पूरी मशीनरी चुनाव जीतने के लिए लगा दी। सुभद्रा जोशी ने देश के सबसे युवा सांसद अटल बिहारी वाजपेई को भारी मतों से शिकस्त दी और संसद पहुंची।
साल 1957 में फिर मुकाबला पंडित अटल बिहारी वाजपेई नई ताजा करते हुए बलरामपुर सीट को जनसंघ की झोली में डाल दिया और विजयी हुए।
साल 1971 में कांग्रेस के चंद्र पाल मणि तिवारी बलरामपुर की सीट से जीत कर संसद पहुंचे इसके बाद साल 1977 में नानाजी देशमुख ने जनसंघ का परचम लहराया और वह संसद पहुंचे। यहां के बुजुर्ग एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं।
लोग कहते हैं कि साल 1977 में जयप्रकाश नारायण के द्वारा आहूत की गई रैलियों और जन आक्रोश के कारण देशभर में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी इसके बावजूद बलरामपुर स्टेट का एक सदस्य पहली बार चुनाव में उतरा वहीं दूसरी तरफ जमीनी स्तर पर आदिवासी धर्म और गरीबों के लिए काम कर रहे नानाजी देशमुख को जनता पार्टी ने बलरामपुर स्टेट की महारानी राज लक्ष्मी देवी के मुकाबले मैदान में उतार दिया इन चुनावों में नानाजी देशमुख ने बाजी तो मार ली। लेकिन वह महारानी का बहुत सम्मान करते थे। जब वह चुनाव जीतने तो महारानी राजलक्ष्मी से मिलने के लिए उनके महल 'नील कोठी' पहुंचे। इस मुलाकात का असर यह हुआ कि महारानी ने गोंडा से सटे महाराजगंज में अपना फॉर्म उन्हें सामाजिक कार्यों के लिए सौप दिया। नाना जी राव देशमुख ने इस फॉर्म को जयप्रभा ग्राम नाम दिया। इसके बाद यहां पर दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना हुई। जो आज भी तमाम तरह के सामाजिक कार्यों के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवाइयों के लिए पूरे देश में मशहूर है।


Conclusion:साल 1980 में हुए चुनाव में चंद्रभाल मणि तिवारी ने एक बार फिर बाजी मारी इसके बाद साल 1984 के चुनाव में महंत दीपनारायण वन ने कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा तक की सवारी की। साल 1989 में यहां पर एक निर्दलीय उम्मीदवार का परचम लहरा फ़ैज़ उर रहमान मुन्नन खान का नाम के साधारण आदमी ने कांग्रेस के उम्मीदवार को शिकस्त देकर लोकसभा में बलरामपुर की जनता की आवाज उठाई। साल 1991 में भाजपा के सत्यदेव सिंह यहां से सांसद बने और साल 1996 में भी सत्यदेव सिंह ने ही बलरामपुर की जनता की आवाज संसद में उठाने का काम किया। साल 1998 के चुनाव में पहली बार भाजपा और कांग्रेस के खाते से यह सीट बिछड़कर समाजवादी पार्टी के खाते में गई। पहली बार बाहुबली नेता रिजवान जहीर समाजवादी पार्टी के सांसद बने। साल 1999 में हुए चुनाव में रिजवान जहीर नसीर बाजी मारी और वह संसद पहुंचे। साल 2004 के चुनाव में जनता का फिर बदला और उसने बृजभूषण शरण सिंह को भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचाया।

आगे जारी है...
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