बलरामपुर: भगवान राम के प्रपौत्र महाराजा प्रसेनजित की राजधानी रही श्रावस्ती लोकसभा सीट न केवल महात्मा बुद्ध,जैन धर्म के दिगम्बर गुरु और मां पाटेश्वरी की धरती है. बल्कि इस लोकसभा सीट की उपयोगिता और महत्वता में चार चांद लगाता है इसका राजनीतिक इतिहास. श्रावस्ती लोकसभा सीट के अंतर्गत दो जिले आते हैं पहला श्रावस्ती जिला और दूसरा बलरामपुर. बलरामपुर जिले में कुल चार विधानसभा सीटें आती है.
आइए जानते है श्रावस्ती लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
- बलरामपुर लोकसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई.
- इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के युवा नेता और बेहद प्रखर वक्त अटल बिहारी वाजपेई चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में उन्होंने ग्वालियर और बलरामपुर लोकसभा सीटों से पर्चा दाखिल किया और अपना भाग्य आजमाया था.
- बलरामपुर के लोगों ने युवा नेता और प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी को देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजने का काम किया.
- अटल जी ने गांव-गांव घूमकर जंक्शन के चुनाव चिन्ह दीपक को जन-जन तक पहुंचाया. इसका परिणाम यह रहा कि उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की करीबी रहे सुभद्रा जोशी को भारी मतों से पराजित करके यह सीट जनसंघ की बना दी.
- साल 1957 में फिर मुकाबला पंडित अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर सीट को जनसंघ की झोली में डाल दिया और विजयी हुए.
- साल 1962 में फिर मुकाबला पंडित अटल बिहारी वाजपेयी और सुभद्रा जोशी के बीच में था लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी पर इंदिरा गांधी का राज चल रहा था और उन्होंने पूरी मशीनरी चुनाव जीतने के लिए लगा दी.
- सुभद्रा जोशी ने देश के सबसे युवा सांसद अटल बिहारी वाजपेयी को भारी मतों से शिकस्त दी और संसद पहुंची.
- साल 1971 में कांग्रेस के चंद्र पाल मणि तिवारी बलरामपुर की सीट से जीत कर संसद पहुंचे इसके बाद साल 1977 में नानाजी देशमुख ने जनसंघ का परचम लहराया और वह संसद पहुंचे.
- साल 1977 में जयप्रकाश नारायण के द्वारा आहूत की गई रैलियों और जन आक्रोश के कारण देशभर में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी
- इसके बावजूद बलरामपुर स्टेट का एक सदस्य पहली बार चुनाव में उतरा. वहीं दूसरी तरफ जमीनी स्तर पर आदिवासी धर्म और गरीबों के लिए काम कर रहे नानाजी देशमुख को जनता पार्टी ने बलरामपुर स्टेट की महारानी राज लक्ष्मी देवी के मुकाबले मैदान में उतार दिया.इन चुनावों में नानाजी देशमुख ने बाजी तो मार ली.
- साल 1980 में हुए चुनाव में चंद्रपाल मणि तिवारी ने एक बार फिर बाजी मारी इसके बाद साल 1984 के चुनाव में महंत दीपनारायण वन ने कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा तक की सवारी की.
- साल 1989 में यहां पर एक निर्दलीय उम्मीदवार का परचम लहरा फैज उर रहमान मुन्नन खान का नाम के साधारण आदमी ने कांग्रेस के उम्मीदवार को शिकस्त देकर लोकसभा में बलरामपुर की जनता की आवाज उठाई.
- साल 1991 में भाजपा के सत्यदेव सिंह यहां से सांसद बने और साल 1996 में भी सत्यदेव सिंह ने ही बलरामपुर की जनता की आवाज संसद में उठाने का काम किया.
- साल 1998 के चुनाव में पहली बार भाजपा और कांग्रेस के खाते से यह सीट बिछड़कर समाजवादी पार्टी के खाते में गई.पहली बार बाहुबली नेता रिजवान जहीर समाजवादी पार्टी के सांसद बने.
- साल 1999 में हुए चुनाव में रिजवान जहीर नसीर बाजी मारी और वह संसद पहुंचे. साल 2004 के चुनाव में जनता का फिर बदला और उसने बृजभूषण शरण सिंह को भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचाया.