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यहां गिरा था मां सती का वाम स्कन्ध, नवरात्रि में होती विशेष पूजा

बलरामपुर जिले में भारत-नेपाल सीमा पर तुलसीपुर क्षेत्र में देवी पाटन शक्तिपीठ स्थित है. देवी पाटन की गिनती माता के 51 शक्ति पीठों में से होती है. यह मंदिर काफी प्राचीन बताया जाता है. ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूर्ण होती है. कोई भी भक्त यहां से निराश नहीं लौटता है.

devi patan pateshwari shaktipeeth
देवी पाटन शक्तिपीठ की पूजा करते सीएम योगी
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Published : Oct 22, 2020, 12:18 PM IST

बलरामपुर: जिले से 28 किलोमीटर की दूरी पर तुलसीपुर क्षेत्र में स्थित 51 शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ देवीपाटन का अपना एक अलग ही स्थान है. अपनी मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार इस शक्तिपीठ का सीधा सम्बन्ध देवी सती, भगवान शंकर और नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज सहित दानवीर कर्ण से है. यहां देश-विदेश से तमाम श्रद्धालु मां पटेश्वरी के दर्शन को आतें हैं. ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. कोई भी भक्त यहां से निराश नहीं लौटता है.

देवीपाटन शक्तिपीठ का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के भगवान शिव अत्यंत क्रोधित होकर देवी सती के शव को अग्नि से निकाल लिया और शव को अपने कंधे पर लेकर तांडव करने लगे, जिसे पुराणों में शिव तांडव के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव के तांडव से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को विच्छेदित कर दिया. विच्छेदन के बाद देवी सती के शरीर के भाग कई स्थानों पर गिरे, जहां-जहां उनकी शरीर के हिस्से गिरे वहां-वहां शकितपीठों की स्थापना हुई. बलरामपुर के तुलसीपुर क्षेत्र में ही देवी सती का बायां स्कंध पट सहित (वस्त्र के साथ) गिरा था. इसीलिए इस शक्तिपीठ का नाम देवीपाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को मां पाटेश्वरी के नाम से जाना जाता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

त्रेता से जल रही है अखंड ज्योति और धूना
देवीपाटन शक्तिपीठ के मुख्य गर्भ गृह में जहां एक अखंड ज्योति त्रेता युग से जलती हुई बताई जाती है. वहीं भैरव बाबा के गर्भ गृह में एक अखंड धूना प्रज्जवलित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर के अवतार माने जाने वाले गुरु गोरक्षनाथ जी महराज ने त्रेता युग में मां पाटेश्वरी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी और एक अखंड धूना भी प्रज्जवलित किया था, जो त्रेता युग से आज तक अनवरत रूप से जल रहा है. इस गर्भ गृह कुछ सख्त नियम भी हैं, यहां सिर पर बिना कपड़ा रखे कोई भी श्रद्धालु प्रवेश नहीं कर सकता है.

सूर्यकुंड की मान्यता
देवीपाटन मंदिर परिसर में उत्तर की तरफ एक विशाल सूर्य कुंड है. ऐसी मान्यता है कि महाभारत के समय में कर्ण ने यही पर स्नान किया था और भगवान सूर्य को अर्घ दिया था. इसीलिए इस कुंड को सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है. इस कुंड में स्नान के बाद कुष्ठ और चर्म रोग ठीक हो जाते हैं.

devi patan pateshwari shaktipeeth
देवी पाटन शक्तिपीठ की पूजा करते सीएम योगी
नवरात्रि में विशेष पूजानवरात्रि के दिनों में मां पाटेश्वरी की चावल से विशेष पूजा की जाती है. नवरात्रि के नौ दिन माता की पिंडी के पास चावल की ढेरी बनाकर माता का विशेष पूजन किया जाता है और बाद में उसी चावल को भक्तों में वितरित कर दिया जाता है. रविवार के दिन माता को हलवे का भोग लगाया जाता है, जो उन्हें अति प्रिय है. साथ ही शनिवार को आटे और गुड़ से बने रोट का विशेष भोग लगाया जाता है.नवरात्रि में होता है मेले का आयोजन देवीपाटन शक्तिपीठ मंदिर पर चैत्र और शारदीय नवरात्रि में मेले का आयोजन किया जाता है. चैत्र नवरात्रि में मेले का आयोजन काफी बड़े स्तर किया जाता है. यह मेला करीब एक माह तक चलता है. इस मेले में झूला, सर्कस, प्रदर्शनी, नाट्य कला मंडल के लोग तथा तमाम तरह की दुकानें और स्टाल लगाई जाती है. इस मेले को देखने के लिए देश-विदेशों के लोग इकट्ठा होते हैं. मेले के दौरान जिला और पुलिस प्रशासन पर सुरक्षा व्यवस्था को कायम रखने का बड़ा दबाव होता है. शारदीय नवरात्रि में भी मेले का आयोजन किया जाता है, लेकिन यह मेला महज 15 दिवसीय होता है.
devi patan pateshwari shaktipeeth
देवी पाटन शक्तिपीठ
क्या कहते हैं महंत शक्तिपीठ के महंत मिथलेश नाथ योगी ने बताते कि इस शक्तिपीठ का अपना पौराणिक महत्व है. ये 51 शक्तिपीठों में से एक है, यह प्रधान पीठों में भी एक है. यहां श्रद्धालु काफी दूर-दूर से आते हैं और शक्ति की उपासना करते हैं. वह कहते हैं कि ये महादेव और सती के प्रेम के प्रतीक का मंदिर है. गुरु गोरक्षनाथ की यह तपोस्थली मानी जाती है. उन्होंने ही इस शक्तिपीठ की स्थापना की थी. महाभारत काल मे कर्ण ने धनुर विद्या यही पर सीखी थी और यहां सूर्य कुंड उन्ही के नाम से स्थापित है, क्योकि वो सूर्य पुत्र थे और इस कुंड से भगवान सूर्य को जल अर्पित करते थे. महंथ मिथलेश नाथ योगी ने बताया कि यहां जो भी भक्त आते है वो नौ दिन रुक कर माता की उपासना करके अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं.

कोरोना काल में की गई विशेष व्यवस्था
कोरोना काल के वक्त मंदिर में कोविड गाइडलाइंस का पालन किया जा रहा है. मास्क लगाए हुए श्रद्धालुओं को ही मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है. मंदिर के गेट पर सेनेटाइजर की भी व्यवस्था की गई है. महंथ मिथलेश नाथ योगी ने बताया कि मंदिर में पहले से 20 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, वहीं प्रशासन 15 से 20 कैमरे और लगाएगा, जिससे आने वाले श्रद्धालु कैमरे की नजर में रहेंगे. श्रद्धालुओं के आने-जाने के लिए बसों की व्यवस्था की गई है.

बलरामपुर: जिले से 28 किलोमीटर की दूरी पर तुलसीपुर क्षेत्र में स्थित 51 शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ देवीपाटन का अपना एक अलग ही स्थान है. अपनी मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार इस शक्तिपीठ का सीधा सम्बन्ध देवी सती, भगवान शंकर और नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज सहित दानवीर कर्ण से है. यहां देश-विदेश से तमाम श्रद्धालु मां पटेश्वरी के दर्शन को आतें हैं. ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. कोई भी भक्त यहां से निराश नहीं लौटता है.

देवीपाटन शक्तिपीठ का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के भगवान शिव अत्यंत क्रोधित होकर देवी सती के शव को अग्नि से निकाल लिया और शव को अपने कंधे पर लेकर तांडव करने लगे, जिसे पुराणों में शिव तांडव के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव के तांडव से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को विच्छेदित कर दिया. विच्छेदन के बाद देवी सती के शरीर के भाग कई स्थानों पर गिरे, जहां-जहां उनकी शरीर के हिस्से गिरे वहां-वहां शकितपीठों की स्थापना हुई. बलरामपुर के तुलसीपुर क्षेत्र में ही देवी सती का बायां स्कंध पट सहित (वस्त्र के साथ) गिरा था. इसीलिए इस शक्तिपीठ का नाम देवीपाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को मां पाटेश्वरी के नाम से जाना जाता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

त्रेता से जल रही है अखंड ज्योति और धूना
देवीपाटन शक्तिपीठ के मुख्य गर्भ गृह में जहां एक अखंड ज्योति त्रेता युग से जलती हुई बताई जाती है. वहीं भैरव बाबा के गर्भ गृह में एक अखंड धूना प्रज्जवलित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर के अवतार माने जाने वाले गुरु गोरक्षनाथ जी महराज ने त्रेता युग में मां पाटेश्वरी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी और एक अखंड धूना भी प्रज्जवलित किया था, जो त्रेता युग से आज तक अनवरत रूप से जल रहा है. इस गर्भ गृह कुछ सख्त नियम भी हैं, यहां सिर पर बिना कपड़ा रखे कोई भी श्रद्धालु प्रवेश नहीं कर सकता है.

सूर्यकुंड की मान्यता
देवीपाटन मंदिर परिसर में उत्तर की तरफ एक विशाल सूर्य कुंड है. ऐसी मान्यता है कि महाभारत के समय में कर्ण ने यही पर स्नान किया था और भगवान सूर्य को अर्घ दिया था. इसीलिए इस कुंड को सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है. इस कुंड में स्नान के बाद कुष्ठ और चर्म रोग ठीक हो जाते हैं.

devi patan pateshwari shaktipeeth
देवी पाटन शक्तिपीठ की पूजा करते सीएम योगी
नवरात्रि में विशेष पूजानवरात्रि के दिनों में मां पाटेश्वरी की चावल से विशेष पूजा की जाती है. नवरात्रि के नौ दिन माता की पिंडी के पास चावल की ढेरी बनाकर माता का विशेष पूजन किया जाता है और बाद में उसी चावल को भक्तों में वितरित कर दिया जाता है. रविवार के दिन माता को हलवे का भोग लगाया जाता है, जो उन्हें अति प्रिय है. साथ ही शनिवार को आटे और गुड़ से बने रोट का विशेष भोग लगाया जाता है.नवरात्रि में होता है मेले का आयोजन देवीपाटन शक्तिपीठ मंदिर पर चैत्र और शारदीय नवरात्रि में मेले का आयोजन किया जाता है. चैत्र नवरात्रि में मेले का आयोजन काफी बड़े स्तर किया जाता है. यह मेला करीब एक माह तक चलता है. इस मेले में झूला, सर्कस, प्रदर्शनी, नाट्य कला मंडल के लोग तथा तमाम तरह की दुकानें और स्टाल लगाई जाती है. इस मेले को देखने के लिए देश-विदेशों के लोग इकट्ठा होते हैं. मेले के दौरान जिला और पुलिस प्रशासन पर सुरक्षा व्यवस्था को कायम रखने का बड़ा दबाव होता है. शारदीय नवरात्रि में भी मेले का आयोजन किया जाता है, लेकिन यह मेला महज 15 दिवसीय होता है.
devi patan pateshwari shaktipeeth
देवी पाटन शक्तिपीठ
क्या कहते हैं महंत शक्तिपीठ के महंत मिथलेश नाथ योगी ने बताते कि इस शक्तिपीठ का अपना पौराणिक महत्व है. ये 51 शक्तिपीठों में से एक है, यह प्रधान पीठों में भी एक है. यहां श्रद्धालु काफी दूर-दूर से आते हैं और शक्ति की उपासना करते हैं. वह कहते हैं कि ये महादेव और सती के प्रेम के प्रतीक का मंदिर है. गुरु गोरक्षनाथ की यह तपोस्थली मानी जाती है. उन्होंने ही इस शक्तिपीठ की स्थापना की थी. महाभारत काल मे कर्ण ने धनुर विद्या यही पर सीखी थी और यहां सूर्य कुंड उन्ही के नाम से स्थापित है, क्योकि वो सूर्य पुत्र थे और इस कुंड से भगवान सूर्य को जल अर्पित करते थे. महंथ मिथलेश नाथ योगी ने बताया कि यहां जो भी भक्त आते है वो नौ दिन रुक कर माता की उपासना करके अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं.

कोरोना काल में की गई विशेष व्यवस्था
कोरोना काल के वक्त मंदिर में कोविड गाइडलाइंस का पालन किया जा रहा है. मास्क लगाए हुए श्रद्धालुओं को ही मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है. मंदिर के गेट पर सेनेटाइजर की भी व्यवस्था की गई है. महंथ मिथलेश नाथ योगी ने बताया कि मंदिर में पहले से 20 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, वहीं प्रशासन 15 से 20 कैमरे और लगाएगा, जिससे आने वाले श्रद्धालु कैमरे की नजर में रहेंगे. श्रद्धालुओं के आने-जाने के लिए बसों की व्यवस्था की गई है.

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