बलरामपुर: कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिये, कहां चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये. दुष्यंत कुमार का ये शेर देश के अति पिछड़े जिलों में शुमार गैसड़ी के एक गांव पर पूरी तरह फिट बैठता है. यहां के वाशिंदों को विकास नाम की पक्षी का चेहरा तक देखने को नहीं मिला है. उड़ान तो बहुत दूर की बात है.
बलरामपुर जिले के गैसड़ी विकास खंड के गोविंदपुर गांव में ग्राम प्रधान ने भ्रष्टाचार में अपना बोलबाला कायम किया है. सरकारी धन का ऐसा बंदरबांट किया गया कि ग्रामीणों ने 'विकास' नाम का पक्षी तक नहीं देखा. ग्रामीण बद से बदतर की जिंदगी जी रहे हैं. लोगों को न रहने के लिए मकान है, न चलने के लिए सड़क. पीएम नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजनाओं में शुमार स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत बनने वाले शौचालयों का पैसा भी डकार लिया गया. आजादी के 70 वर्षों के बाद भी सड़कें नालों में तब्दील हुई हैं. आवास, सड़क, पानी, बिजली और राशन जैसी समस्याओं से दो चार हो रहे गोविंदपुर गांव के वासियों को कोई पूछने वाला नहीं है.
ग्रामीण बताते हैं इस तरह की समस्याएं
ग्रामीणों ने बताया कि हमारा प्रधान आवास पास करवाने के लिए पैसे की मांग करता है. साथ ही जिन लोग को प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का लाभ मिल चुका है. उन लोगों से जबरदस्ती प्रधान ने पैसा निकलवा लिया है. इससे उनके आवास आधे अधूरे पड़े हैं. ग्रामीण कहते हैं कि गांव में सड़कों की नितांत कमी है. पिछले कई सालों से सड़कों का निर्माण बिल्कुल न के बराबर किया गया है. नालियों के अभाव में बनी बनाई सड़कें भी बदहाल हो गयी हैं.
गांव का विकास कागजों तक सीमित
गांव का विकास बस कागजों तक सीमित है, धरातल पर एक भी काम दिखाई नहीं देता है. ग्रामीण बताते हैं कि विकास कार्यों का पैसा प्रधान द्वारा अपनी हवेली चमकाने व जमीन खरीदने के लिए लगा दिया है. वहीं ग्रामीणों ने अधिकारियों से मांग की है कि प्रधान के खिलाफ उचित कार्रवाई कर हमें समस्याओं से निजात दिलाई जाए. इससे हम गरीबों को रहने के लिए घर व चलने के लिए सड़क मिल सकेगी.