बलरामपुर: जिले में कुल नौ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिसमें से 25 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. वहीं जिला मेमोरियल चिकित्सालय, जिला महिला चिकित्सालय और जिला संयुक्त चिकित्सालय मिलाकर 3 बड़ी क्षमताओं वाले अस्पताल हैं. इन अस्पतालों पर 102 और 108 एम्बुलेंस सेवाओं के जरिए प्रतिदिन तकरीबन 400 मरीजों को पहुंचाया जाता है या इलाज के बाद घर छोड़ा जाता है. वहीं एम्बुलेंस सेवाओं को मुफ्त और सुविधाजनक बनाने का दावा करने वाली सरकार और अधिकारियों के नाक के नीचे एम्बुलेंस ड्राइवर और ऑन विहिकल मेडिकल ऑफिसर मरीजों या उनके तीमारदारों से जबरन वसूली करते हैं. ईटीवी भारत ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पचपेड़वा से जब एम्बुलेंस सेवाओं और प्रसूताओं को लेकर एक जमीनी रिपोर्ट की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.
कई महिलाओं का होता है संस्थागत और असंस्थागत प्रसूता
बलरामपुर जिले में प्रतिमाह 3000 से 5000 प्रसूताएं संस्थागत और असंस्थागत तौर पर नवजातों को जन्म देती हैं. जिले में पिछले 6 महीने में संस्थागत प्रसव के मामलों में गिरावट दर्ज की गई है. नीति आयोग के डेटा के अनुसार, जिले में संस्थागत प्रसव के दर 51.33 प्रतिशत से बढ़कर 51.54 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जिसने पूरे देश में जिले को कई स्थान से खिसकाकर 74वें स्थान पर ला दिया है. ऐसे में जिले में प्रसूताओं की 'प्रसव की पीड़ा' में दर्द बांटने के बजाय कदम-कदम पर वसूली के मामले सामने आते रहते हैं. अब इससे जिले की स्थिति को बेहतर नहीं कहा जा सकता है.
जिले में कुल 22 एम्बुलेंस
जिले में नेशनल एम्बुलेंस सेवा 108 के कुल 22 एम्बुलेंस हैं, जो मुख्य तौर पर प्रसूताओं को उनके घर से अस्पताल और अस्पताल से उनके घर पर पहुंचाने का काम करती हैं. जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत प्रसव पीड़ताओं को मुफ्त में यह सुविधा प्रदान की जाती है. हर रोज इस एम्बुलेंस सेवा के जरिए लगभग दो सौ गर्भवती महिलाओं को लाभ देने का दावा विभाग कर रहा है, लेकिन विभाग और कर्मचारी आधी हकीकत बताते हैं.
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मरीजों से एम्बुलेंस चालक करते हैं वसूली
जिले के सुदूर इलाके में स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, पचपेड़वा पर रोजाना 10-12 प्रसव करवाए जाते हैं. यहां पर न केवल मरीजों को एम्बुलेंस कर्मचारियों की ओर से परेशान किया जाता है, बल्कि अस्पताल में लाने और ले जाने के लिए 100 रुपये प्रति ट्रिप वसूली भी की जाती है.
दिन भर में 8 से 10 ट्रिप से करते है एम्बुलेंस चालक अवैध कमाई
अस्पताल में तैनात एक एम्बुलेंस कर्मचारी कैमरे पर न बोलने और नाम न लिखने के शर्त पर बताया, अगर हमें कोई पैसा देता है तो हम उसे प्रसव के बाद हॉस्पिटल से 4 से 6 घंटे के बीच डिस्चार्ज करवाकर छोड़ देते हैं. वहीं अगर कोई पैसा नहीं देता तो हम लोग नियमों के साथ बंधकर काम करते हैं. फिर हम जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत बनाए गए, नियमों के अनुसार ही चलते हैं और किसी भी नवजात और उसकी मां को 48 घंटे से पहले नहीं छोड़ते. वह आगे बताता हैं कि हम अमूमन 100 रुपये प्रति ट्रिप लेते हैं. यह एक तरीके का सुविधा शुल्क मान लिया जाए. वो लोग दिन भर में औसतन 8 से 10 के बीच ट्रिप लगाते हैं. इससे ठीक-ठाक आय भी हो जाती है.
एम्बुलेंस चालक करते हैं तीमारदारों को परेशान
हालांकि जब हमने तीमारदारों से बात की, तो उन्होंने बताया कि एंबुलेंस चालक और उसमें तैनात मेडिकल कर्मचारी पैसे न देने पर नाराज होते हैं. कभी-कभी तो जबरदस्ती भी करने लगते हैं. हालांकि हमे यहां पहुंचने के बाद अपने गांव भी जाना होता है इसलिए मजबूरी में हम उन्हें पैसा देना पड़ता है. हमसे कई लोगों ने बात करते हुए बताया कि 100 रुपये एक तरफ का लगता है.
मामले में जब ईटीवी भारत ने डॉ. घनश्याम सिंह से बात की, तो उन्होंने बहुत ही सहज लहजे में जवाब देते हुए कहा, कि मामला संज्ञान में आया है. मैं एंबुलेंस सेवाओं के नोडल अधिकारी को लिखूंगा, कि वह अपने कर्मचारियों पर नकेल कसें, ताकि इस तरह की गड़बड़ी दोबारा सामने न आए. अगर वह नोटिस के बाद भी नहीं मानते हैं तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
अधिकारी कुछ भी कहें, लेकिन अगर सीएचसी पचपेड़वा को अस्पतालों का डाटा सैम्पल मान लिया जाय, तो जिले के सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों और प्रसूताओं को लेकर कमोबेश स्थिति यही है. ब्लॉक स्तर के अधिकारियों से लेकर जिले स्तर के अधिकारियों को पूरी व्यवस्था का इलाज करना चाहिए.
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