बलरामपुर: जिले से सटा हुआ श्रावस्ती का प्राचीन द्वेत वन क्षेत्र प्राकृतिक छटाओं के लिए मशहूर है. यह आसपास के लोगों के एक महत्वपूर्ण आस्था केंद्र भी है. हिमालय की पहाड़ियों के नीचे पांडव कालीन शिवमंदिर बाबा विभूतिनाथ का दरबार है. सावन के महीने में शिवरात्रि, कजलीतीज, तेरस, पर्वों पर भक्तों की भारी भीड़ लगती है. यह मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि यहां से कई कथाएं भी जुड़ी हुई हैं. यह कथाएं आम जनमानस को महाभारत काल से जोड़ती हैं.
जब कर्ण ने की शिव की आराधना तो जानिए क्या हुआ-
मान्यताओं और दंतकथाओं के अनुसार विभूतिनाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडव पुत्र भीम ने अपने वनवास के अंतिम चरण में की थी. यहीं से अज्ञातवास के लिए चले गए थे. मंदिर से तकरीबन 200 मीटर दूर दो लघु जल सरोवर स्थित हैं.
मान्यता है कि शिव मंदिर को स्थापित करने के बाद यहीं से पांडव बंधु अज्ञातवास के लिए विराट नगरी चले गए थे. इस बात का जब दुर्योधन और कर्ण को पता चला तो वह पांडवों को खोजते हुए द्वैत वन क्षेत्र आए. विभूतिनाथ मंदिर के आसपास रमणीय स्थान देखकर कुछ समय तक यहीं रुके. पानी की किल्लत को देखते हुए कर्ण ने भगवान शिव से प्रार्थना की और भगवान शिव ने कर्ण की प्रार्थना को सुनते हुए मंदिर के पास ही दो जल स्रोत उत्पन्न किए.
इन जलस्त्रोतों से आज भी खुद ब खुद पानी निकलता रहता है और पानी कभी खत्म नहीं होता. यह जलस्त्रोत कर्ण द्वारा भगवान शिव की आराधना करके स्फुटित किया गया. जलस्त्रोत तब के समय में इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि द्वेत वन क्षेत्र में कहीं जल नहीं था. इस कारण इन लोगों को भगवान शंकर को जल चढ़ाने में परेशानी होती थी. तकरीबन 200-100 मीटर के भीतर यहां पर दो जल सरोवर हैं. इसे शिव सरोवर और पार्वती सरोवर के नाम से जाना जाता है.
यहां पर हर तेरस, शिवरात्रि, कजलीतीज और सावन मास में लाखों भक्तों की भीड़ लगती है. सभी यहीं से जल भर के भगवान विभूति नाथ को चढ़ाते हैं, लेकिन यह जल कभी भी खत्म नहीं होता.
चंदन गिरी, मंदिर के व्यवस्थापक
इस सरोवर की खासियत यह है कि यह कर्ण द्वारा भगवान शिव की आराधना के बाद खुद स्फुटित हुआ था. यहां से लाखों की संख्या में श्रद्धालु जल भर कर भगवान विभूति नाथ को चढ़ाते हैं, लेकिन न तो इसके जल में कोई खराबी आती है और न ही इसका जलस्तर कभी कम होता है. केवल यहीं का जल भगवान विभूतिनाथ को चढ़ाया जाता है.
दिनेश कुमार मिश्र, श्रद्धालु