बलियाः विवाह के अटूट बंधन की निशानी सिंदूर होता है. यह एक सुहागिन के सिर का ताज भी है लेकिन लॉकडाउन होने से इन सिंदूर को रखने वाले डिब्बों के कारखाने बंद पड़े हैं. दरअसल बलिया जिला सिंधोरा (सिंदूर रखने का डिब्बा) बनाने का एक मात्र जिला है, जहां से यह डिब्बे यूपी के जिलों के अलावा दिल्ली, महाराष्ट्र, कोलकाता, बिहार और मध्य प्रदेश तक सप्लाई किए जाते हैं. मगर लॉकडाउन ने इस लघु उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है. सिंधोरा बनाने का काम भी रुक गया है. गर्मी में शादी के लग्न भी निकल गए, ऐसी स्थिति में उत्पादक और कारीगर दोनों के लिए कठिनाई भरा समय चल रहा है.
बलिया पूर्वांचल के पिछड़े जिलों में शुमार है. यहां के सिंधोरा कुटीर उद्योग बहुत से कारीगरों और मजदूरों को रोजी-रोटी देते रहे हैं. लॉकडाउन के कारण कारखानों की मशीन रुकी हुई हैं. अधिकांश कारीगरों को अपने घर जाना पड़ा है. कारखानों के मालिक इस हालात में काफी कठिनाई में जीने को मजबूर हैं.
सिंधोरा कारोबारी बबलू ने बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ है, हम लोगों की जिंदगी रुक सी गई है. शादी विवाह नहीं होने से कोई सिंदूरदान खरीद नहीं रहा है. लाखों रुपये का सामान खरीद गोदाम में डम्प हो गया है, लेकिन कारीगरों को उनकी मजदूरी देनी पड़ी हैं. ऐसे में हम लोग स्थिति सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि तभी ये कारोबार फिर से चल पाएगा.
इसे भी पढ़ें- बलिया में 9 पॉजिटिव केस मिलने से हड़कंप, 6 इलाके हॉटस्पॉट चिन्हित
सिंदूर का डिब्बा बनाने में काफी मेहनत लगती है. 4 से 5 महीने में यह कार्य पूरे होते हैं. प्रतिदिन धूप में 2 से 3 घंटे डिब्बों को सुखाना पड़ता है, क्योंकि अधिक तेज धूप में लकड़ी के फटने का भी खतरा बना रहता है. कारीगर ओम प्रकाश गुप्ता बताते हैं की यहां बिहार के बहुत से लोग काम करते है लेकिन लॉकडाउन के शुरुआती समय में ही वे लोग वापस चले गए हैं.
उन्होंने बताया कि सिंदूर की डिबिया बनाने में 12 रुपये प्रति पीस की मजदूरी मिलती है. इस लॉकडाउन में परिवार चलाना भी बहुत कठिन हो गया है. वह स्थानीय हैं, जिसके चलते मालिक की ओर से कुछ खाने-पीने का सामान मिल जाता है. ऐस में ये लोग उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही सब कुछ सामान्य हो और इनकी जिंदगी फिर से खुशियों भरी हो जाए.