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जन्मदिन विशेष: हजारी प्रसाद द्विवेदी ने देश को दिया साहित्यिक उपहार

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Published : Aug 19, 2019, 2:46 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST

उत्तर प्रदेश के बलिया में आज ही के दिन हिंदी के निबंधकार, आलोचक और उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ था. जिन्होंने अपनी लेखनी से पद्मविभूषण तक का सफर तय किया. अपने शहर, प्रदेश का नाम रोशन किया.

विकास के इंतजार में हजारी प्रसाद द्विवेदी का पैतृक गांव.

बलिया: जिले के गांव ओझवलिया में आज ही के दिन हिंदी के निबंधकार, आलोचक और उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ था. जिन्होंने अपनी लेखनी से पद्मविभूषण तक का सफर तय कर अपने गांव का ही नहीं बल्कि अपने शहर अपने प्रदेश का नाम रोशन किया. लेकिन वहीं, आज भी उनका पैतृक गांव विकास की बगिया से कोसों दूर है. गांव में द्विवेदी जी की न तो कोई प्रतिमा लगाई गई है और न ही कोई स्मृति चिन्ह बनाया गया है.

विकास के इंतजार में हजारी प्रसाद द्विवेदी का पैतृक गांव.

ज्योतिषाचार्य के परिवार में हुआ जन्म
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म जिले के ओझवलिया गांव में 19 अगस्त 1907 को ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम अनमोल द्विवेदी और माता का नाम ज्योतिषमति था. अत्यंत सरल स्वभाव के आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई. इसके बाद उन्होंने वरसियापुर के मिडिल स्कूल से आगे की पढ़ाई पूरी की. इसके उपरांत काशी के रणवीर संस्कृत पाठशाला में संस्कृत की पढ़ाई करने चले गए.

1930 में ज्योतिष में आचार्य की मिली उपाधि
1929 में इंटरमीडिएट और संस्कृत में शास्त्रीय साहित्य की परीक्षा उत्तीर्ण की. 1930 में ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की. तभी से उन्हें आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कहा जाने लगा. हजारी प्रसाद द्विवेदी शांतिनिकेतन में जाकर अध्यापन का कार्य आरंभ किया. जहां से उन्हें स्वतंत्र लेखन के रूप में पहचान मिलने की शुरुआत हुई.

1957 में पद्म भूषण से किया गया सम्मानित
20 वर्षों तक शांतिनिकेतन में अध्यापन का कार्य करने के उपरांत वे काशी आ गए. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया. 1957 में देश के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही नहीं बल्कि पंजाब विश्वविद्यालय में भी हिंदी के प्रोफेसर रहे. इसके बाद पुनः काशी हिन्दू विश्विद्यालय के विभागाध्यक्ष बने.

अपने जीवनकाल में ढेरों लिखी रचनाएं
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने जीवनकाल में ढेरों रचनाएं लिखी. जिसमें साहित्य का मर्म, सूर साहित्य, हिंदी साहित्य की भूमिका, मेघदूत, अशोक के फूल, कुटज, बाण भट्ट की आत्मकथा, चारु चंद्रलेख अनामदास का पोथा काफी प्रसिद्ध है.

आज भी विकास से दूर हजारी का गांव
द्विवेदी जी गांव आज भी विकास कोसो दूर है. गांव में उनकी एक प्रतिमा तक नहीं लगाई गई है. पूर्व बीजेपी सांसद भरत सिंह ने इस गांव को गोद लिया था. इसके बाद विकास की एक उम्मीद जगी थी. लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी गांव बुनियादी सुविधाओं से महरूम ही रहा.

परेशानियों का सामना करने को मजबूर लोग
गांव में 4 हजार 2 सौ के करीब आबादी है. जिनमे से 3 हजार लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते है. ये सभी लोग टूटी सड़कें. बिजली, पानी, गंदगी, इसके अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य चिकित्सालय जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन जाने को मजबूर हैं.

गांव को मिले आदर्श गांव का दर्जा
गांव के युवाओं की मांग है कि सरकार इस गांव की ओर ध्यान दे. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रतिमा लगाई जाए. इसके साथ ही गांव को आदर्श गांव का दर्जा मिले. गांव में जो मूलभूत सुविधाओं का अभाव है उसे भी पूरा किया जाए.

यह भी पढ़े: बलिया: पति ने पत्नी को चाकू मारने के बाद खुद को उतारा मौत के घाट

बलिया: जिले के गांव ओझवलिया में आज ही के दिन हिंदी के निबंधकार, आलोचक और उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ था. जिन्होंने अपनी लेखनी से पद्मविभूषण तक का सफर तय कर अपने गांव का ही नहीं बल्कि अपने शहर अपने प्रदेश का नाम रोशन किया. लेकिन वहीं, आज भी उनका पैतृक गांव विकास की बगिया से कोसों दूर है. गांव में द्विवेदी जी की न तो कोई प्रतिमा लगाई गई है और न ही कोई स्मृति चिन्ह बनाया गया है.

विकास के इंतजार में हजारी प्रसाद द्विवेदी का पैतृक गांव.

ज्योतिषाचार्य के परिवार में हुआ जन्म
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म जिले के ओझवलिया गांव में 19 अगस्त 1907 को ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम अनमोल द्विवेदी और माता का नाम ज्योतिषमति था. अत्यंत सरल स्वभाव के आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई. इसके बाद उन्होंने वरसियापुर के मिडिल स्कूल से आगे की पढ़ाई पूरी की. इसके उपरांत काशी के रणवीर संस्कृत पाठशाला में संस्कृत की पढ़ाई करने चले गए.

1930 में ज्योतिष में आचार्य की मिली उपाधि
1929 में इंटरमीडिएट और संस्कृत में शास्त्रीय साहित्य की परीक्षा उत्तीर्ण की. 1930 में ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की. तभी से उन्हें आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कहा जाने लगा. हजारी प्रसाद द्विवेदी शांतिनिकेतन में जाकर अध्यापन का कार्य आरंभ किया. जहां से उन्हें स्वतंत्र लेखन के रूप में पहचान मिलने की शुरुआत हुई.

1957 में पद्म भूषण से किया गया सम्मानित
20 वर्षों तक शांतिनिकेतन में अध्यापन का कार्य करने के उपरांत वे काशी आ गए. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया. 1957 में देश के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही नहीं बल्कि पंजाब विश्वविद्यालय में भी हिंदी के प्रोफेसर रहे. इसके बाद पुनः काशी हिन्दू विश्विद्यालय के विभागाध्यक्ष बने.

अपने जीवनकाल में ढेरों लिखी रचनाएं
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने जीवनकाल में ढेरों रचनाएं लिखी. जिसमें साहित्य का मर्म, सूर साहित्य, हिंदी साहित्य की भूमिका, मेघदूत, अशोक के फूल, कुटज, बाण भट्ट की आत्मकथा, चारु चंद्रलेख अनामदास का पोथा काफी प्रसिद्ध है.

आज भी विकास से दूर हजारी का गांव
द्विवेदी जी गांव आज भी विकास कोसो दूर है. गांव में उनकी एक प्रतिमा तक नहीं लगाई गई है. पूर्व बीजेपी सांसद भरत सिंह ने इस गांव को गोद लिया था. इसके बाद विकास की एक उम्मीद जगी थी. लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी गांव बुनियादी सुविधाओं से महरूम ही रहा.

परेशानियों का सामना करने को मजबूर लोग
गांव में 4 हजार 2 सौ के करीब आबादी है. जिनमे से 3 हजार लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते है. ये सभी लोग टूटी सड़कें. बिजली, पानी, गंदगी, इसके अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य चिकित्सालय जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन जाने को मजबूर हैं.

गांव को मिले आदर्श गांव का दर्जा
गांव के युवाओं की मांग है कि सरकार इस गांव की ओर ध्यान दे. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रतिमा लगाई जाए. इसके साथ ही गांव को आदर्श गांव का दर्जा मिले. गांव में जो मूलभूत सुविधाओं का अभाव है उसे भी पूरा किया जाए.

यह भी पढ़े: बलिया: पति ने पत्नी को चाकू मारने के बाद खुद को उतारा मौत के घाट

Intro:बलिया
बलिया जिले का गाव ओझवलिया।19अगस्त 1907 अनमोल द्विवेदी के घर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ जिन्होंने अपनी लेखनी से पद्मविभूषण तक का सफर तय किया मगर सरकारी नुमाइंदों की लापरवाही और नेताओं के खोखले वादों से आचार्य हजारी प्रसाद जी का गाँव विकास से दूर है भाजपा के सांसद भरत सिंह ने इस गाव को गोद लिया था लेकिन अभी तक ऐसे व्यक्तित्व के लिए न तो गाव में कोई प्रतिमा लगी है और न ही कोई स्मृति शेष है ऐसे में साफ दिख रहा है कि आखिर कब हजारी के बाग में विकास रूपी अशोक के फूल खिलेंगे


Body:ज्योतिषाचार्य के परिवार में हुआ जन्म

हिंदी के निबंधकार,आलोचक और उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म बलिया जिले के ओझवलिया गांव में 19 अगस्त 1907 को ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध परिवार में हुआ था इनके पिता का नाम अनमोल द्विवेदी और माता का नाम ज्योतिषमति था अत्यंत सरल स्वभाव के आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई इसके बाद उन्होंने वरसियापुर के मिडिल स्कूल से आगे की पढ़ाई पूरी की इसके उपरांत काशी के रणवीर संस्कृत पाठशाला में संस्कृत की पढ़ाई करने चले गए

1929 में इंटरमीडिएट और संस्कृत में शास्त्रीय साहित्य की परीक्षा इन्होंने उत्तीर्ण की और 1930 में ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की तभी से उन्हें आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कहा जाने लगा हजारी प्रसाद द्विवेदी शांतिनिकेतन में जाकर अध्यापन का कार्य आरंभ किया जहां से ही उन्होंने स्वतंत्र लेखन के रूप में अपने आप को एक अलग पहचान दिलाने की शुरुआत की


पश्चिम बंगाल से लेकर पंजाब तक किया था अध्यापन का कार्य

20 वर्षों तक शांतिनिकेतन में अध्यापन का कार्य करने के उपरांत वे काशी आ गए और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया 1957 में देश के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उन्हें पद्म भूषण की उपाधि से भी सम्मानित किया गया आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही नहीं बल्कि पंजाब विश्वविद्यालय में भी हिंदी के प्रोफेसर रह चुके है। इसके बाद पुनः काशी हिन्दू विश्विद्यालय के विभागाध्यक्ष बने


ऐसे महान व्यक्तित्व ने अपने जीवनकाल में ढेरों रचनाएँ लिखी है निबंध, उपन्यास और आलोचनाओ में साहित्य का मर्म,सूर साहित्य,हिंदी साहित्य की भूमिका,मेघदूत, अशोक के फूल,कुटज,बाण भट्ट की आत्मकथा, चारु चंद्रलेख अनामदास का पोथा काफी प्रसिद्ध है।

ऐसे महान साहित्यकार के गाँव मे आज भी विकास कोसो दूर है ओझवलिया गाव में 4200 की आबादी है जिनमे से 3000 लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते है किंतु इतने बड़े गाव में महान साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी की एक प्रतिमा तक नही है इतना ही नही केंद्र की मोदी सरकार में बलिया का प्रतिनिधि करने वाले पूर्व सांसद भरत सिंह ने हजारी जी के गाव को गोद लेकर विकास करने का संकल्प लिया था लेकिन 5 साल के कार्यकाल पूर्ण होने के बाद भी इस गाव में बुनियादी सुविधाओं की कमी है।

गाव में नही है अस्पताल

सांसद द्वारा गोद लिए गए आदर्श गांव ओझवलिया के ग्रामीणों को उम्मीद जगी थी कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के गाव का अब विकास होगा गाव में वाचनालय संग्रहालय सड़कें वाई-फाई सुविधा और बिजली जैसी मूलभूत व्यवस्थाएं सुदृढ़ होगी लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में गोद लेने वाले गांव का जो हाल है वह शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की सरकार के दावे तब और खोखले दिखाई देने लगते हैं जब इस गांव में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ना कोई प्राथमिक स्वास्थ्य चिकित्सालय है और ना ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बीमार लोगों को अपना इलाज कराने के लिए बलिया जिला चिकित्सालय जाना पड़ता है




Conclusion:जिले के दुबहड़ विकास खंड के इस गाव में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का पुश्तैनी मकान दिए जहां उनका परिवार रहता था लेकिन अब यहां कोई नहीं रहता इस गांव में प्राथमिक एवं माध्यमिक परिषदीय स्कूल भी है जहां 1998 में तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की मूर्ति लगाने के लिए स्मारक बनाया गया था लेकिन आज तक यहां उनकी मूर्ति नहीं लगाई गई

गांव के युवाओं की मांग है कि सरकार इस ओर ध्यान देकर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रतिमा लगाएं साथ ही आदर्श गांव का दर्जा मिले इस गांव में जो मूलभूत सुविधाओं का अभाव है उसे भी पूरा किया जाए

बाइट1--शुशील द्विवेदी---ग्रामीण
बाइट2--विनोद सिंह--ग्रामीण

पीटीसी--प्रशान्त बनर्जी


प्रशान्त बनर्जी
बलिया

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST
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