बलिया : समाजवादी पार्टी द्वारा पूर्व मंत्री व बसपा नेता अंबिका चौधरी के पुत्र आनंद चौधरी को बलिया से जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है. इसके पश्चात पूर्व मंत्री ने भी बसपा की प्राथमिक सदस्यता से अपना इस्तीफा दे दिया है. पूर्व मंत्री के बसपा से इस्तीफा देने के बाद उनकी सपा में जाने की अटकलें तेज हो गई हैं.
पूर्व मंत्री के सपा में जाने की अटकलें तेज
पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी ने अपने द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में लिखा है कि " विगत विधानसभा चुनाव के पूर्व जनवरी 2017 से मैं बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने के पश्चात एक निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में पार्टी को अपनी सेवाएं दे रहा हूं. मुझको जब भी छोटा-बड़ा कोई उत्तरदायित्व दिया गया, उसकी पूरी लगन से मैंने निर्वहन किया. इस दौरान बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन कुमारी मायावती एवं दल के अन्य सभी नेताओं एवं सहयोगियों का जो स्नेह एवं सम्मान मिला, इसके लिए मैं कृतज्ञता पूर्वक आभार व्यक्त करता हूं.
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मायावती को भेजा इस्तीफा
उन्होंने आगे लिखा है कि " 2019 में लोकसभा चुनाव के उपरांत अज्ञात कारणों से पार्टी की किसी मीटिंग में मुझे छोटा या बड़ा कोई उत्तरदायित्व भी नहीं सौंपा गया. इस स्थिति में मैं अपने को पार्टी में उपेक्षित और अनुपयोगी पा रहा हूं. विज्ञप्ति में पूर्व मंत्री ने आगे लिखा है कि " आज दिनांक 19 जून 2021 को मेरे पुत्र आनंद चौधरी को आसन्न जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचन में समाजवादी पार्टी द्वारा प्रत्याशी घोषित किया गया है. ऐसी स्थिति में मेरी निष्ठा पर कोई प्रश्न चिन्ह प्रस्तुत हो इसके पूर्व ही मैंने नैतिक कारणों से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से अपना त्यागपत्र राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन कुमारी मायावती जी को प्रेषित कर दिया है. पूर्व मंत्री के बसपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफे को उनकी पुन: घर वापस से जोड़कर देखा जा रहा है.
सपा के पुराने सहयोगी रहे हैं अंबिका चौधरी
वरिष्ठ नेता अंबिका चौधरी बलिया जिले के मूल निवासी हैं. न्यायिक सेवा की नौकरी छोड़कर उन्होंने सियासी सफर की शुरूआत की थी. 65 वर्षीय अंबिका चौधरी मुलायम सिंह के काफी करीबी माने जाते थे. कभी समाजवादी पार्टी के थिंक टैक के साथ ही मुलायम और शिवपाल के विश्वासपात्र रहे हैं. मुलायम सरकार में भी अंबिका चौधरी राजस्व मंत्री थे. मंत्री बनने के लिए दोनों में से किसी एक सदन का सदस्य होना जरूरी है, इसलिए सपा ने उन्हें विधान परिषद भेजा था. हालांकि, चौधरी के कार्यशैली से न तो मुलायम खुश रहे और न ही अखिलेश यादव. आखिर में जुलाई 2013 में राजस्व महकमा उनसे छीनकर उन्हें पिछड़ा वर्ग और विकलांग कल्याण जैसे महत्वहीन विभाग का मंत्री बना दिया गया था.
मंत्रिमंडल से किए गए बर्खास्त
अंबिका चौधरी को अक्टूबर 2015 में मंत्रिमंडल से ही बर्खास्त कर दिया गया. हालांकि इन सबके बावजूद अंबिका चौधरी मुलायम के करीब बने रहे और शिवपाल के विश्वासपात्र भी. वहीं अखिलेश यादव को हटाकर मुलायम ने जैसे ही शिवपाल को सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो शिवपाल ने उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बना दिया.
परिवार में हुए विवाद के बाद मुलायम और शिवपाल के कमजोर पड़ने पर, अंबिका के लिए स्थितियां अनुकूल नहीं थीं. मुलायम ने सपा के जिन 393 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी, उसमें फेफना सीट से अंबिका को सपा प्रत्याशी बनाया गया, लेकिन अगले ही दिन अखिलेश की ओर से जारी की गई प्रत्याशियों की लिस्ट में उनका नाम नहीं था. अखिलेश जब पार्टी में सर्वेसर्वा बनकर उभरे, तो सपा सरकार और पार्टी में लगातार अपनी उपेक्षा से कुंठित अंबिका ने साइकिल छोड़, हाथी पर सवारी करना ही उचित समझा. उस समय बसपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद मीडिया से मुखातिब अंबिका चौधरी ने कहा था कि वह समाजवादी पार्टी से बीते 25 वर्षों से उसकी स्थापना के समय से ही जुड़े रहे हैं.
सपा से बसपा में हुए शामिल
साल 2017 में अंबिका चौधरी ने साइकिल छोड़ हाथी पर सवार हो गए. बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के प्रदेश कार्यालय में उन्हें बसपा की सदस्यता ग्रहण कराई थी. मायावती ने अंबिका को बलिया की फेफना सीट से बतौर बसपा प्रत्याशी विधानसभा चुनाव लड़वाने का एलान भी किया था. अंबिका चौधरी का बसपा में शामिल होना सपा के लिए बहुत बड़ा झटका था, लेकिन आप को बता दें कि 1993 से लेकर 2007 तक लगातार 4 बार सपा प्रत्याशी के रूप में बलिया के कोपाचीट विधानसभा क्षेत्र से अंबिका चौधरी ने जीत दर्ज की. हालांकि, 2012 में जिले की फेफना सीट से अंबिका चौधरी जब चुनाव हार गए, उसके बाद भी अखिलेश के मंत्रिमंडल में उन्हें राजस्व मंत्री बनाया गया था. लेकिन अब परिवार में उनके बेटे को सपा की ओर से जिला पंचायत अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया गया है. इससे एक बार फिर से अंबिका चौधरी का दोबारा से सपा में जाने की अटकलें तेज हो गई हैं.