बहराइच: बहराइच विकास मंच की ओर से शनिवार को सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर सेनानी भवन में उनके चित्र पर माल्यार्पण किया गया. कार्यक्रम में आए लोगों ने उनके जीवन पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम की अध्यक्षता बहराइच विकास मंच के अध्यक्ष हर्षित त्रिपाठी ने की. मंच का संचालन बहराइच विकास मंच की उपाध्यक्ष मोहम्मद आजाद ने किया.
नेता जी को किया याद
बहराइच विकास मंच के संरक्षक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से सहायता लेने का प्रयास किया था, तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें खत्म करने का आदेश दिया था. बहराइच विकास मंच के अध्यक्ष हर्षित त्रिपाठी ने कहा कि नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने सुप्रीम कमाण्डर के रूप में सेना को संबोधित किया था. उन्होंने वहां पर दिल्ली चलो का नारा दिया. जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश और कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इंफाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा खोला.
नेता जी की मौत नहीं हुई
21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई. इसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशों की सरकारों ने मान्यता दी थी. जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप अस्थायी सरकार को दे दिेए. सुभाष चंद्र बोस उन द्वीपों पर गए और उनका नया नामकरण किया. सेनानी उत्तराधिकारी के स्थायी मंत्री रमेश मिश्रा ने कहा कि नेताजी की मौत को लेकर आज भी विवाद है. जहां जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष चंद्र बोस की मौत 1945 में नहीं हुईं. वे उसके बाद रूस में नजरबन्द थे. यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से संबंधित दस्तावेज अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किए. इस मौके पर बहराइच विकास मंच के सचिव मंगलम बाजपाई, लोक नाथ पांडे, अजय त्रिपाठी, राम सिंह, रीता मिश्रा, आदर्श गुप्त आदि उपस्थित रहे.