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बहराइचः बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं आजादी के दीवानों के वंशज - बहराइच समाचार

उत्तर प्रदेश के बहराइच में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के वंशजों को सरकारी सुविधा के नाम पर खोखले वादे ही मिल रहे हैं. इस हकीकत को जानने के बाद तो ऐसा लगता है कि उनके बलिदान को सरकारें भूल ही गई है.

सेनानियों के प्रशस्तिपत्र.
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Published : Aug 15, 2019, 12:28 PM IST

बहराइच: पूरा देश आज 73वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा है. स्वतंत्रता संग्राम में फिरंगी हुकूमत के छक्के छुड़ाने वाले जिले के रणबांकुरों के त्याग और बलिदान को याद कर पूरा देश जहां उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है. तो वहीं आजादी के दीवानों के वंशज बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं. उन्हें उम्मीद है कि पूर्वजों के बलिदान को याद कर सरकार उनकी बदहाली दूर करने के लिए कदम उठाएगी.

स्वतंत्रता सेनानियों के वंशज जी रहे बदहाल जिंदगी.

वंशजों को सरकारों से उम्मीद-

  • नेपाल सीमावर्ती जनपद बहराइच के आजादी के दीवानों का योगदान किसी से कम नहीं है.
  • ‘1857 की क्रांति’ हो या ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन, फिरंगी हुकूमत के खिलाफ सभी आंदोलनों में जिले के सैनिकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.
  • वंशजों को उम्मीद थी कि आजाद भारत में उनका और परिवार का विकास होगा.
  • हालात यह है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के वंशज बदहाल जीवन जी रहे हैं.
  • कोई घरों पर बर्तन मांजकर, ठेला लगाकर तो कोई मजदूरी कर परिवार का पेट पालने को मजबूर है.

इसे भी पढ़ेः- बहराइच में शहीद नमन यात्रा का किया गया आयोजन

बहराइच: पूरा देश आज 73वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा है. स्वतंत्रता संग्राम में फिरंगी हुकूमत के छक्के छुड़ाने वाले जिले के रणबांकुरों के त्याग और बलिदान को याद कर पूरा देश जहां उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है. तो वहीं आजादी के दीवानों के वंशज बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं. उन्हें उम्मीद है कि पूर्वजों के बलिदान को याद कर सरकार उनकी बदहाली दूर करने के लिए कदम उठाएगी.

स्वतंत्रता सेनानियों के वंशज जी रहे बदहाल जिंदगी.

वंशजों को सरकारों से उम्मीद-

  • नेपाल सीमावर्ती जनपद बहराइच के आजादी के दीवानों का योगदान किसी से कम नहीं है.
  • ‘1857 की क्रांति’ हो या ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन, फिरंगी हुकूमत के खिलाफ सभी आंदोलनों में जिले के सैनिकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.
  • वंशजों को उम्मीद थी कि आजाद भारत में उनका और परिवार का विकास होगा.
  • हालात यह है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के वंशज बदहाल जीवन जी रहे हैं.
  • कोई घरों पर बर्तन मांजकर, ठेला लगाकर तो कोई मजदूरी कर परिवार का पेट पालने को मजबूर है.

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Intro:एंकर- जब जरूरत थी चमन को लहू की तो मैंने दिया अब बाहर आई तो कहते हैं तुम्हारा काम नहीं ।
फिरंगी हुकूमत के छक्के छुड़ाने वाले रणबांकुरे के त्याग और बलिदान को याद कर पूरा देश उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है . लेकिन आजादी के दीवानों के वंशज आज बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर है . उन्हें उम्मीद है कि उनके पूर्वजों के बलिदान को याद कर सरकार उनकी बदहाली दूर करने के लिए कदम उठाएगी.


Body:वीओ-1- स्वतंत्रता आंदोलन में नेपाल सीमावर्ती जनपद बहराइच श्रावस्ती के आजादी के दीवानों का योगदान किसी से कम नहीं है . 1857 की क्रांति हो या अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन फिरंगी हुकूमत के खिलाफ छेड़े गए सभी आंदोलनों में बहराइच के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया . आतताई अंग्रेजों के हाथों राजा महाराजाओं की रियासत ही नहीं आजादी के दीवानों की घर गृहस्ती तब तबाह बर्बाद कर दी गयी . उनके खेत खलियानो को जप्त कर लिया गया . उनके वंशजों को उम्मीद थी कि आजाद भारत में उनका और उनके परिवार का विकास होगा . लेकिन ऐसा नहीं हुआ . जिसको लेकर उनमें निराशा है . आजादी के लिए अपने प्राण निछावर करने का संकल्प लेकर निकले रणबांकुरो के वंशज आज बदहाल जिंदगी जीने को भी विवश है . हालात यह है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के वंशज आज लोगों के घरो पर बर्तन मांज कर , ठेला लगाकर , मजदूरी करके , कथा वाच कर किसी तरह अपनी और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं . उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनके पूर्वजों के बलिदानों को याद कर उनके लिए कोई ठोस पहल करेगी.


Conclusion:एफवीओ- देश को आजादी दिलाने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले आजादी के मतवालों की बदहाली दुर्भाग्यपूर्ण है . आजादी के रणबांकुरे के वंशजों उम्मीद है कि सरकार उनकी बदहाली दूर करने के लिए ठोस पहल करेगी .

सैयद मसूद कादरी
94 15 15 1963
बहराइच
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