आजमगढ़: देश को आजाद कराने में आजमगढ़ के लालजी तिवारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अंग्रेजों की खिलाफत करने के लिए उन्हें 2 साल की जेल और 15 वेत की सजा सुनाई गई थी. बावजूद इसके लालजी तिवारी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना अभियान जारी रखा था.
197 वर्ष के लालजी तिवारी के हौसले आज भी बुलंद हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि उस समय वे ब्रिटानिया हुकूमत की संपत्ति लूटते थे. इसके साथ ही वे सड़कों को खोद देते थे. उन्होंने बताया कि एक बार जब वह गांव की सड़क खोद रहे थे. उसी समय किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. मौके पर पुलिस आ गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
इसके बाद उन्हें आजमगढ़ की जेल में बंद कर दिया गया. यहां लालजी को 2 साल की जेल और 15 वेत की सजा सुनाई गई. लालजी ने बताया कि आजमगढ़ जेल में 6 महीने गुजारने के बाद उनका ट्रांसफर रायबरेली की जेल में हो गया. यहां 6 महीने गुजारने के बाद उन्हें लखनऊ जेल भेज दिया गया. बाकी एक वर्ष की सजा लालजी ने लखनऊ जेल में काटी.
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लालजी तिवारी देश के वर्तमान राजनीतिक हालात से काफी दुखी हैं. उनका कहना है कि पहले लोग निस्वार्थ भाव से लड़ाइयां लड़ते थे, लेकिन अब तो हर चीज का दिखावा किया जाता है. वर्तमान भारत में जो भी आंदोलन होते हैं उनमें लोगों का निजी स्वार्थ छिपा होता है.
सरकार की उपेक्षा से दुखी लालजी का कहना है कि देश के लिए अपना जीवन त्यागने वालों से सिर्फ वादे ही किए जाते हैं. एक समय के बाद सब उन्हें भूल जाते हैं. बता दें कि आजादी की लड़ाई में आजमगढ़ जनपद का काफी लंबा इतिहास रहा है. 1857 क्रांति के समय भी कुंवर सिंह की सेना आजमगढ़ जनपद में ही रुकी थी.