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आजमगढ़: 1935 से निकलती आ रही है बुढ़वा की बारात, हर वर्ष दूल्हा रह जाता है कुंवारा - आजमगढ़ में बुढ़वा की बारात

आजमगढ़ जिले में बजरंग गोला दल अखाड़ा की तरफ से हर साल होली से एक दिन पूर्व बुढ़वा की बारात निकलती है. शहर के प्रमुख चौराहों से गुजरने वाली इस बारात में बड़ी संख्या में बाराती भी शामिल होते हैं.

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बुढ़वा की बारात
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Published : Mar 10, 2020, 6:38 AM IST

आजमगढ़ः शहर के बिहारी मंदिर से प्रतिवर्ष लगातार 1935 से होली के एक दिन पूर्व बुढ़वा की बारात निकलती है. इस बारात की सबसे खास बात यह है कि हर वर्ष बुढ़वा कुंवारा ही रह जाता है और उसे अकेले ही घर वापस आना होता है.

धूमधाम से निकाली गई बुढ़वा की बारात.

1935 से हर साल निकलती आ रही है बारात
बारात की अगवानी कर रहे समाजसेवी संत प्रसाद अग्रवाल ने बताया कि बजरंग दल अखाड़ा की तरफ से 1935 से होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन के दिन यह बारात निकाली जाती है. इस बारात में झांकी के रूप में महाबली हनुमान जी का दृश्य, राम जानकी का दृश्य, भगवान भोलेनाथ का दृश्य रहता है. बारात के साथ कीर्तन मंडली भी चलती है.

प्रमुख चौराहों से गुजरती है बुढ़वा की बारात
बुढ़वा की यह बारात बिहारी मंदिर से निकलकर मुख्य चौक, शंकर फुहारा, लाल दिग्गी, पुरानी सब्जी मंडी, तकिया दलाल घाट सहित जनपद के प्रमुख चौराहों और बाजारों से गुजरती है. इस बारात में बड़ी संख्या में बाराती साथ चलते हैं और बुढ़वा की बारात का लुत्फ उठाते हैं. हर वर्ष बुढ़वा कुंवारा ही बारात से लौट आता है और बुढ़वा को दुल्हनिया नहीं मिलती है.

यह भी पढ़ेंः-होली के त्योहार पर छाया कोरोना का साया, प्रभावित हुआ व्यवसाय

इस बारात में दूल्हा रह जाता है कुंवारा
बताते चलें कि वर्ष 1935 से निकलने वाली बुढ़वा की बारात का आजमगढ़ जिले में देखने वालों की भीड़ लग जाती है. लगभग 75 वर्ष से अधिक समय से निकलने वाली बारात को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं, लेकिन बुढ़वा हर बार निराश हो जाता है.

आजमगढ़ः शहर के बिहारी मंदिर से प्रतिवर्ष लगातार 1935 से होली के एक दिन पूर्व बुढ़वा की बारात निकलती है. इस बारात की सबसे खास बात यह है कि हर वर्ष बुढ़वा कुंवारा ही रह जाता है और उसे अकेले ही घर वापस आना होता है.

धूमधाम से निकाली गई बुढ़वा की बारात.

1935 से हर साल निकलती आ रही है बारात
बारात की अगवानी कर रहे समाजसेवी संत प्रसाद अग्रवाल ने बताया कि बजरंग दल अखाड़ा की तरफ से 1935 से होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन के दिन यह बारात निकाली जाती है. इस बारात में झांकी के रूप में महाबली हनुमान जी का दृश्य, राम जानकी का दृश्य, भगवान भोलेनाथ का दृश्य रहता है. बारात के साथ कीर्तन मंडली भी चलती है.

प्रमुख चौराहों से गुजरती है बुढ़वा की बारात
बुढ़वा की यह बारात बिहारी मंदिर से निकलकर मुख्य चौक, शंकर फुहारा, लाल दिग्गी, पुरानी सब्जी मंडी, तकिया दलाल घाट सहित जनपद के प्रमुख चौराहों और बाजारों से गुजरती है. इस बारात में बड़ी संख्या में बाराती साथ चलते हैं और बुढ़वा की बारात का लुत्फ उठाते हैं. हर वर्ष बुढ़वा कुंवारा ही बारात से लौट आता है और बुढ़वा को दुल्हनिया नहीं मिलती है.

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इस बारात में दूल्हा रह जाता है कुंवारा
बताते चलें कि वर्ष 1935 से निकलने वाली बुढ़वा की बारात का आजमगढ़ जिले में देखने वालों की भीड़ लग जाती है. लगभग 75 वर्ष से अधिक समय से निकलने वाली बारात को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं, लेकिन बुढ़वा हर बार निराश हो जाता है.

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