अयोध्या: साहित्यकार विजय रंजन ने हिंदी भाषा की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. अयोध्या के रहने वाले विजय रंजन सिंह ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अपने गांव की जमीन के साथ-साथ अपनी पसंदीदा कार भी बेच दी.
17 मई 1949 को गोंडा जिले में जन्मे विजय रंजन सिंह ने सन 1964 से हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार की शुरुआत की. इसके लिए पहली बार उन्होंने अवध अर्चना नामक किताब निकाली. इसके बाद अलग-अलग माध्यम से वे हिंदी की सेवा करते रहे हैं. वर्तमान में अभी तक उनकी हिंदी भाषा की 9 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जबकि कई किताबें प्रकाशन में लंबित हैं. पिछले 35 सालों से हिंदी की सेवा करते आए विजय रंजन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
जनपद के बेनीगंज इलाके में स्थित आवास विकास कॉलोनी में रहने वाले विजय रंजन और उनकी पत्नी डॉ. निरुपमा हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और उत्थान के लिए बीते 35 सालों से कार्य कर रहे हैं. साल 1976 में उन्होंने पहली बार 'अवध अर्चना' नाम का हिंदी अखबार निकालने के बाद से अनवरत विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और किताबों का प्रकाशन अपने माध्यम से कर रहे हैं. हिंदी भाषा के प्रति पति-पत्नी (विजय-निरुपमा) का अनुराग ही है कि इन्होंने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए न सिर्फ अपने जीवन को समर्पित किया, बल्कि धन के अभाव में पत्रिकाओं का प्रकाशन न रुके, इसके लिए अपने गांव की जमीन और अपनी पसंदीदा कार भी बेच दी.
कई अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके हैं विजय रंजन
साहित्यकार विजय रंजन को हिंदी साहित्य के बहुमूल्य योगदान के लिए राष्ट्रीय गौरव सम्मान, विद्यावाचस्पति मानद उपाधि, साहित्य भूषण सम्मान, साहित्य शिरोमणि सम्मान, अवध श्री सम्मान के साथ ही एबीआई अमेरिका के बोर्ड डायरेक्टर्स में मानद सदस्यता मिल चुकी है. साहित्यकार विजय रंजन बिना किसी सरकारी मदद के हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं.
क्या कहते हैं साहित्यकार विजय रंजन
विजय रंजन ने बताया कि वर्तमान में भले ही सरकार हिंदी को लेकर गंभीर दिखाई दे रही हो, लेकिन बीती सरकारों की उपेक्षा ने हिंदी भाषा को वो स्थान नहीं दिया, जो उसे मिलना चाहिए था. आज भी हिंदी साहित्य से जुड़े लेखक उपेक्षा के शिकार हैं.
क्या कहती हैं विजय रंजन की पत्नी
साहित्यकार विजय रंजन की पत्नी डॉ. निरुपमा भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में उनका कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं. डॉ. निरुपमा बताती हैं कि हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार को जरूरी कदम उठाने पड़ेंगे. डॉ. निरुपमा भी हिंदी साहित्य के बढ़ावे के लिए तमाम पत्र-पत्रिकाओं में संपादन का कार्य कर रही हैं.
हिंदी दिवस के मौके पर भले ही देश भर में विभिन्न आयोजन हो रहे हों और हिंदी भाषा की भूमिका और उसके महत्व पर चर्चा हो रही हो, लेकिन असल हकीकत में हिंदी भाषा के असली पुजारी ऐसे ही लोग हैं, जिन्होंने इस भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अपना जीवन (तन-मन-धन) समर्पित कर दिया हो.
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