अयोध्या: श्री राम जन्मभूमि मामले में आए फैसले का पूरे विश्व में सभी ने स्वागत किया. पिछले 24 सालों से श्री राम जन्म भूमि मामले की पैरवी कर रही विश्व हिंदू परिषद ने अब सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को घर-घर पहुंचाने का निर्णय लिया है. वह 10 लाख पर्चे बांटकर श्रीराम मंदिर का संघर्ष बताएगी.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में जिस तरह से व्यापक और अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग है, उससे देश की आम जनता तक सही जानकारी कई मायने में नहीं पहुंच पा रही है. विश्व हिंदू परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले और विश्व हिंदू परिषद के संघर्ष को 4 पेज के पंपलेट में उतार दिया है. साल 2020 के अंत तक 10 लाख पर्चे गांव में घर-घर जाकर बांटने की योजना है.
सरल भाषा में है सूचना
विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट के व्यापक फैसले और उसके शब्दों को आम आदमी को समझने में थोड़ी दिक्कत होती है. इस वजह से हमने सरल और सरलतम शब्दों के प्रयोग से देश में अपने संघर्ष को दिखाने का निर्णय लिया है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी सरल भाषा में लोगों तक पहुंचाया जाएगा.
आगामी चुनाव को देखते हुए बना रहे कार्य योजना
9 नवंबर 2019 को आए ऐतिहासिक फैसले को विश्व हिंदू परिषद अब राजनीतिक और सामाजिक तौर पर रंग देने की तैयारी में है. इसे सरल भाषा में 10 लाख पर्चे गांव तक पहुंचाने की योजना है. बता दें कि आगामी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव और 2024 में लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर विश्व हिंदू परिषद इस कार्य योजना को आगे बढ़ा रहा है.
हर परिवार को जोड़ने का मकसद
इसे जमीन पर उतार कर कार्यकर्ताओं के माध्यम से घर-घर भेजने की तैयारी में है. इसका मकसद हर एक परिवार को इस मामले से जोड़ते हुए उसे विश्व हिंदू परिषद और भाजपा के संघर्ष को दिखाना भी है, जिससे निश्चित तौर पर उसे कहीं न कहीं फायदा होने की उम्मीद भी नजर आ रही है.
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कई राज्यों की क्षेत्रीय भाषाओं में बांटी जाएगी पर्ची
विश्व हिंदू परिषद से जुड़े अन्य विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक इस पर्चे को 3 क्षेत्रीय भाषाओं में बदला गया है, जिनमें हिंदी, मराठी और कन्नड़ प्रमुख है. इसके अलावा आने वाले समय में इसे अन्य कई राज्यों की क्षेत्रीय भाषाओं में भी कन्वर्ट किया जाएगा. फिलहाल इसकी शुरुआत अयोध्या से हिंदी भाषा के पर्चे के रूप में हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सरलतम और भाषाई रूपांतरण करने में वरिष्ठ वकीलों की सहायता ली गई है, जो इस मामले में शामिल थे, जिससे कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कहीं भी तकनीकी रूप से इधर-उधर न होने पाए.