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भ्रातृत्व प्रेम के अनूठे आयोजन पर ग्रहण, भव्य झांकी के दर्शन को तरसे अयोध्यावासी

भगवान श्रीराम और उनके भाई भरत के बीच अगाध प्रेम था. जब तक बड़े भाई राम का 14 वर्ष का वनवास पूरा नहीं हुआ तब तक वे भरतकुंड में तपस्वी बन कर रहे. अयोध्या में वर्षों से भ्रातृत्व प्रेम की इस अनोखी झांकी को देखने के लिए लोग हर वर्ष टकटकी लगाए रहते थे, लेकिन इस बार उन्हें निराशा हाथ लगी.

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Published : Oct 12, 2019, 7:50 AM IST

Updated : Oct 12, 2019, 8:52 AM IST

bharat milap jhanki closed in ayodhya

अयोध्याः दशकों पहले अयोध्या के राज दरबार के पास खाली ग्राउंड में रामलीला का मंचन शुरू किया गया था. यह आयोजन अयोध्या रियासत की ओर से कराया जाता था, जिसमें सरकार की ओर से अनुदान मिलता था. करीब 50 वर्ष पहले जब रामलीला बंद हो गई तो अयोध्या में मायूसी छा गई थी. बताया जाता है कि उस वक्त अयोध्या रियासत में यहीं एकमात्र रामलीला का मंचन होता था.

भ्रातृत्व प्रेम के अनूठे आयोजन पर लगा ग्रहण.

लंका दहन की झलक देखने को उमड़ती थी भीड़

इस रामलीला के आयोजक बताते हैं कि उस वक्त यहां का लंका दहन का मंचन देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती थी. हनुमान जी शिवाले की चोटी पर जाकर लंका दहन करते थे. यह अदृश्य अद्भुत होता था. इसके बाद विजयदशमी के अवसर पर रावण दहन भी मुख्य आयोजन में शामिल था. वर्षों बाद जब इस अनोखे आयोजन पर ग्रहण लगा तो लोगों में मायूसी छा गई. जन भावनाओं को देखते हुए संतों ने एक बैठक की, जिसमें इस रामलीला को संस्थागत रूप देने के लिए एक कमेटी गठित करने का निर्णय लिया. रामलीला के लिए संत तुलसीदास रामलीला कमेटी बनाई गई. इसके अध्यक्ष मणिराम छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास जी अध्यक्ष बने जो राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष भी हैं. कमेटी में शामिल सभी सदस्यों को बाकायदा जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसके बाद यह समिति लगातार हर वर्ष रामलीला कराती रही.

मोदनवाल समाज करता था भव्य आयोजन

रामलीला समाप्त होने के बाद एकादशी तिथि पर भागवताचार्य सदन से राम बारात निकलती थी, जिसकी अगुवाई प्रतीक रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम करते थे. सदन से निकलकर यह राम बारात हनुमानगढ़ी पहुंचती थी. जहां मोदनवाल समाज राम-भरत मिलाप का भव्य आयोजन करता था. वर्षों से इस अनोखे आयोजन का क्रम जारी रहा, लेकिन इस बार भागवतचार्य सदन में रामलीला का मंचन नहीं किया गया. इसके साथ ही विजयदशमी का उत्सव भी नहीं मनाया गया और राम बारात भी नहीं निकाली गई. इसके चलते हनुमानगढ़ी पर मोदनवाल समाज की ओर से होने वाला राम-भरत मिलाप का अनूठा आयोजन देखने को लोगों की आंखें तरस गईं.

भाइयों के बीच प्रेम देखकर आंखें नम हो जाती थीं

मोदनवाल समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व अयोध्या के पूर्व चेयरमैन राधेश्याम गुप्ता बताते हैं कि हनुमानगढ़ी पर हर वर्ष राम-भरत मिलाप को देखकर लोगों की आंखें नम हो जाती थीं. रामायण और रामचरितमानस में वर्णित राम और भरत दोनों भाइयों के बीच की जो झलक देखने को मिलती थी उसे शायद शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. इसी वजह से लोग वर्षों से लगातार इस आयोजन की प्रतीक्षा करते रहते थे, लेकिन संत तुलसीदास कमेटी द्वारा धन का अभाव बताकर रामलीला का मंचन नहीं कराने के बाद इस अनोखे आयोजन को भी बंद कर दिया गया.

आयोजन को संचालित करने के लिए नहीं बढ़ाया हाथ

आपको बता दें कि योगी सरकार अयोध्या में पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है. एक ओर राम की पैड़ी और गुप्तार घाट का कायाकल्प करने के लिए तेजी से काम चल रहा है. प्रशासन और शासन स्तर पर लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है.

पढ़ेंः-अयोध्याः विवादित स्थल पर 51 हजार दीप जलाने की तैयारी में विश्व हिंदू परिषद्

वहीं दूसरी ओर अयोध्या की पहचान और प्रेम की मिसाल कायम करने वाली बरसों पुरानी परंपरा बंद हो गई है. राम-भरत मिलाप जैसे आयोजन को पुनः संचालित करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्था सामने नहीं आई हैं.

आपको बता दें कि योगी सरकार अयोध्या में पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है. एक ओर राम की पैड़ी और गुप्तार घाट का कायाकल्प करने के लिए तेजी से काम चल रहा है प्रशासन और शासन स्तर पर लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है. वहीं दूसरी ओर अयोध्या की पहचान और प्रेम की मिसाल कायम करने वाली बरसों पुरानी परंपरा बंद हो गई है इसके पीछे धन का भाव बताया जा रहा है.

अयोध्याः दशकों पहले अयोध्या के राज दरबार के पास खाली ग्राउंड में रामलीला का मंचन शुरू किया गया था. यह आयोजन अयोध्या रियासत की ओर से कराया जाता था, जिसमें सरकार की ओर से अनुदान मिलता था. करीब 50 वर्ष पहले जब रामलीला बंद हो गई तो अयोध्या में मायूसी छा गई थी. बताया जाता है कि उस वक्त अयोध्या रियासत में यहीं एकमात्र रामलीला का मंचन होता था.

भ्रातृत्व प्रेम के अनूठे आयोजन पर लगा ग्रहण.

लंका दहन की झलक देखने को उमड़ती थी भीड़

इस रामलीला के आयोजक बताते हैं कि उस वक्त यहां का लंका दहन का मंचन देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती थी. हनुमान जी शिवाले की चोटी पर जाकर लंका दहन करते थे. यह अदृश्य अद्भुत होता था. इसके बाद विजयदशमी के अवसर पर रावण दहन भी मुख्य आयोजन में शामिल था. वर्षों बाद जब इस अनोखे आयोजन पर ग्रहण लगा तो लोगों में मायूसी छा गई. जन भावनाओं को देखते हुए संतों ने एक बैठक की, जिसमें इस रामलीला को संस्थागत रूप देने के लिए एक कमेटी गठित करने का निर्णय लिया. रामलीला के लिए संत तुलसीदास रामलीला कमेटी बनाई गई. इसके अध्यक्ष मणिराम छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास जी अध्यक्ष बने जो राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष भी हैं. कमेटी में शामिल सभी सदस्यों को बाकायदा जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसके बाद यह समिति लगातार हर वर्ष रामलीला कराती रही.

मोदनवाल समाज करता था भव्य आयोजन

रामलीला समाप्त होने के बाद एकादशी तिथि पर भागवताचार्य सदन से राम बारात निकलती थी, जिसकी अगुवाई प्रतीक रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम करते थे. सदन से निकलकर यह राम बारात हनुमानगढ़ी पहुंचती थी. जहां मोदनवाल समाज राम-भरत मिलाप का भव्य आयोजन करता था. वर्षों से इस अनोखे आयोजन का क्रम जारी रहा, लेकिन इस बार भागवतचार्य सदन में रामलीला का मंचन नहीं किया गया. इसके साथ ही विजयदशमी का उत्सव भी नहीं मनाया गया और राम बारात भी नहीं निकाली गई. इसके चलते हनुमानगढ़ी पर मोदनवाल समाज की ओर से होने वाला राम-भरत मिलाप का अनूठा आयोजन देखने को लोगों की आंखें तरस गईं.

भाइयों के बीच प्रेम देखकर आंखें नम हो जाती थीं

मोदनवाल समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व अयोध्या के पूर्व चेयरमैन राधेश्याम गुप्ता बताते हैं कि हनुमानगढ़ी पर हर वर्ष राम-भरत मिलाप को देखकर लोगों की आंखें नम हो जाती थीं. रामायण और रामचरितमानस में वर्णित राम और भरत दोनों भाइयों के बीच की जो झलक देखने को मिलती थी उसे शायद शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. इसी वजह से लोग वर्षों से लगातार इस आयोजन की प्रतीक्षा करते रहते थे, लेकिन संत तुलसीदास कमेटी द्वारा धन का अभाव बताकर रामलीला का मंचन नहीं कराने के बाद इस अनोखे आयोजन को भी बंद कर दिया गया.

आयोजन को संचालित करने के लिए नहीं बढ़ाया हाथ

आपको बता दें कि योगी सरकार अयोध्या में पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है. एक ओर राम की पैड़ी और गुप्तार घाट का कायाकल्प करने के लिए तेजी से काम चल रहा है. प्रशासन और शासन स्तर पर लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है.

पढ़ेंः-अयोध्याः विवादित स्थल पर 51 हजार दीप जलाने की तैयारी में विश्व हिंदू परिषद्

वहीं दूसरी ओर अयोध्या की पहचान और प्रेम की मिसाल कायम करने वाली बरसों पुरानी परंपरा बंद हो गई है. राम-भरत मिलाप जैसे आयोजन को पुनः संचालित करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्था सामने नहीं आई हैं.

आपको बता दें कि योगी सरकार अयोध्या में पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है. एक ओर राम की पैड़ी और गुप्तार घाट का कायाकल्प करने के लिए तेजी से काम चल रहा है प्रशासन और शासन स्तर पर लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है. वहीं दूसरी ओर अयोध्या की पहचान और प्रेम की मिसाल कायम करने वाली बरसों पुरानी परंपरा बंद हो गई है इसके पीछे धन का भाव बताया जा रहा है.

Intro:अयोध्या: भगवान श्री राम और उनके भाई भरत के बीच अगाध प्रेम था. जब तक बड़े भाई राम का 14 वर्ष का वनवास पूरा नहीं हुआ तब तक वे भरतकुंड में तपस्वी बन कर रहे. उन्होंने सत्ता के सुख भोग का त्याग किया. अयोध्या में वर्षों से भ्रातत्व प्रेम की इस अनोखी झांकी को देखने के लिए लोग हर वर्ष टकटकी लगाए रहते थे, लेकिन इस बार उन्हें निराशा हाथ लगी है.


Body:दशकों पहले अयोध्या के राज दरबार के पास खाली ग्राउंड में रामलीला का मंचन शुरू किया गया था. यह आयोजन अयोध्या रियासत की ओर से कराया जाता था, जिसमें सरकार की ओर से अनुदान मिलता था. करीब 50 वर्ष पहले जब रामलीला बंद हो गई तो अयोध्या में मायूसी छा गई थी. बताया जाता है कि उस वक्त अयोध्या रियासत में यहीं एकमात्र रामलीला का मंचन होता.

लंका दहन की झलक देखने को उमड़ती थी भीड़
इस रामलीला के आयोजक बताते हैं कि उस वक्त यहां का लंका दहन का मंचन देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती थी. हनुमान जी शिवाले की चोटी पर जाकर लंका दहन करते थे. यह अदृश्य अद्भुत होता था. इसके बाद विजयदशमी के अवसर पर रावण दहन भी मुख्य आयोजन में शामिल था. वर्षों बाद जब इस अनोखे आयोजन पर ग्रहण लगा तो लोगों में मायूसी छा गई.

जन भावनाओं को देखते हुए संतों ने एक बैठक की, जिसमें इस रामलीला को संस्थागत रूप देने के लिए एक कमेटी गठित करने का निर्णय लिया. रामलीला के लिए संत तुलसीदास रामलीला कमेटी बनाई गई इसके अध्यक्ष मणिराम छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास जी अध्यक्ष बने जो राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष भी हैं. कमेटी में शामिल सभी सदस्यों को बकायदा जिम्मेदारी सौंपी गई जिसके बाद यह समिति लगातार हर वर्ष रामलीला कराती रही.

मोदनवाल समाज करता था भव्य आयोजन
रामलीला समाप्त होने के बाद एकादशी तिथि पर भागवताचार्य सदन से राम बारात निकलती थी जिसकी अगुवाई प्रतीक रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम करते थे. सदन से निकलकर यह राम बारात हनुमानगढ़ी पहुंचती थी. जहां मोदनवाल समाज राम भरत मिलाप का भव्य आयोजन करता था. वर्षों से इस अनोखे आयोजन का क्रम जारी रहा, लेकिन इसबार भागवतचार्य सदन में रामलीला का मंचन नहीं किया गया. इसके साथ ही विजयदशमी का उत्सव भी नहीं मनाया गया और राम बारात भी नहीं निकाली गई. जिसके चलते हनुमानगढ़ी पर मोदनवाल समाज की ओर से होने वाला राम भरत मिलाप का अनूठा आयोजन देखने को लोगों की आंखें तरस गईं.





Conclusion:भाइयों के बीच प्रेम देखकर आंखें नम हो जाती थीं
मोदनवाल समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व अयोध्या के पूर्व चेयरमैन राधेश्याम गुप्ता बताते हैं कि हनुमानगढ़ी पर हर वर्ष राम भरत मिलाप को देख कर लोगी आंखें नम हो जाती थी. रामायण और रामचरितमानस में वर्णित राम और भरत दोनों भाइयों के बीच इसने की जो झलक देखने को मिलती थी उसे शायद शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. इसी वजह से लोग वर्षों से लगातार इस आयोजन के प्रतीक्षा करते रहते थे. लेकिन संत तुलसीदास कमेटी द्वारा धन का अभाव बताकर रामलीला का मंचन नहीं कराने के बाद इस अनोखे आयोजन को भी बंद कर दिया गया.

आयोजन को संचालित करने के लिए नहीं बढ़ाया हाथ
आपको बता दें कि योगी सरकार अयोध्या में पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है. एक ओर राम की पैड़ी और गुप्तार घाट का कायाकल्प करने के लिए तेजी से काम चल रहा है. प्रशासन और शासन स्तर पर लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है.

वहीं दूसरी ओर अयोध्या की पहचान और बात तो प्रेम की मिसाल कायम करने वाली बरसों पुरानी परंपरा बंद हो गई है. राम भरत मिलाप जैसे आयोजन को पुनः संचालित करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्था सामने नहीं आई है.

आपको बता दें कि योगी सरकार अयोध्या में पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने के नाम पर करोड़ों खर्च कर रही है. एक ओर राम की पैड़ी और गुप्तार घाट का कायाकल्प करने के लिए तेजी से काम चल रहा है प्रशासन और शासन स्तर पर लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है. वहीं दूसरी ओर अयोध्या की पहचान और बात तो प्रेम की मिसाल कायम करने वाली बरसों पुरानी परंपरा बंद हो गई है इसके पीछे धन का भाव बताया जा रहा है.

बाइट01- राधेश्याम गुप्ता, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, मोदनवाल समाज (आयोजक, राम भरत मिलाप उत्सव)
Last Updated : Oct 12, 2019, 8:52 AM IST
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