अयोध्या : राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तय किए गए पैनल को लेकर लगातार विवाद बढ़ता जा रहा है. खासतौर पर इसमें श्रीश्री रविशंकर को शामिल किए जाने पर ये और गंभीर होता जा रहा है. ऐसे में अयोध्या के संत अब सीधे तौर पर एक मत होकर श्रीश्री को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट से उन्हें बाहर करके यहां के लोकल संत और मामले से जुड़े जानकार लोगों को शामिल करने के लिए अड़े हुए हैं.
संतों का मानना है कि रामजन्मभूमि को लेकर किसी भी तरह से श्रीश्री रविशंकर का कोई भी लेना-देना नहीं है. श्री राम वल्लभा कुंज मंदिर के अधिकारी महंत राजकुमार दास ने राम मंदिर मामले को सुलह-समझौते से हल करने के लिए गठित किए गए पैनल में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर को शामिल किए जाने को लेकर कहा है कि मैं सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान करता हूं और इसी के साथ उन्होंने अपनी भावना प्रकट करते हुए कहा कि यदि पैनल में अयोध्या की परंपरा और परिस्थितियों में जीने वाले संत या गृहस्थ होता, तो कहीं ज्यादा बेहतर होता.
उन्होंने कहा कि पक्षकारों को चाहिए कि वे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस आशय का एक निवेदन प्रस्तुत करें कि पैनल में अयोध्या की परंपरा से जुड़ा संत या गृहस्थ जोड़ा जाए, जो समूची वास्तविकता के संदर्भ में सुलह-समझौते को सकारात्मकता तक पहुंचा सके. यदि सुप्रीम कोर्ट वाकई में चाहता है कि बेहतर निर्णय हो, तो उसे इसकी सकारात्मक पहल भी करनी चाहिए.
वहीं श्री राम जन्म भूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य और मणिराम दास छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयन दास ने आरोप लगाया है कि राम मंदिर निर्माण को लटकाने का लगातार प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि सुलह-समझौते के लिए बनाए गए पैनल में जो लोग हैं, उनका राम जन्मभूमि से न कोई लेना देना है और न ही वे इसके संबंध में कुछ जानते हैं. यही नहीं इन लोगों की हिंदू समाज में कोई मान्यता भी नहीं है. यह स्थिति साफ करती है कि पैनल का गठन केवल मंदिर निर्माण को लटकाने के लिए किया गया है.
उन्होंने कहा कि हमारी राम मंदिर निर्माण की तैयारी तो काफी दिनों से पूरी हो चुकी है, किंतु उसमें तरह-तरह की बाधा डाली जा रही है. उन्होंने कहा कि हिंदुओं की जन भावनाओं को समझते हुए सर्वोच्च न्यायालय को शीघ्र से शीघ्र निर्णय देना चाहिए.