अयोध्या: राम विवाह अयोध्या में ही नहीं जनकपुर में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यह आयोजन 1 दिसंबर को नेपाल की जनकपुर में होता है. यह विशेष उत्सव वहां की सांस्कृतिक पहचान है,जिसकी जड़ भारत से जुड़ी हुई है. इस दौरान जनकपुर में दूल्हा बने भगवान श्री राम के प्रतीक स्वरूप का विशेष तरीके से स्वागत सत्कार किया जाता है.
मिथिला नाट्य कला परिषद के मीडिया संयोजक श्यामसुंदर शशि का कहना
भारोपीय महाद्वीप में राम विवाह सदियों से आदर्श के रूप में माना जाता है. आज भी अधिकतर समाज इसी विवाह पद्धति को मानता है. प्रत्येक वर्ष जनकपुर में जानकी विवाह का आयोजन किया जाता है. जिसमें राम बरात के प्रतीक स्वरूप अयोध्या से भी बारात आती है इसमें बड़ी संख्या में साधु संत और महात्मा भी शामिल होते हैं. माना जाता है कि अगहन शुक्ल पंचमी तिथि को राम विवाह हुआ था. इसी मान्यता के चलते हर वर्ष मिथिला में जानकी विवाह का आयोजन होता है. हर 5 वर्ष में इस विवाह को बड़े स्तर पर मनाया जाता है. लोगों की आस्था है कि भगवान राम आज भी जमाई बनकर जनकपुर में विद्यमान है.
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प्रेम करने की कला मिथिला में व्याप्त
श्यामसुंदर शशि का कहना है कि प्रेम करने की अनोखी कला मिथलावासियों में व्याप्त है. जनकपुर के लोग सीता को बेतिया बहन के रूप में मानते हैं. उनमें सीता के प्रति इतना अगाध प्रेम है कि वह आज भी यह मानते हैं कि विवाह के बाद मा सीता को यहां से अयोध्या के लिए विदा नहीं किया गया था. जिसके चलते विवाह के बाद बेटी की विदाई के अवसर पर गाए जाने वाला समदावन गीत नहीं गाया जाता.
भगवान राम जनकपुर में जमाई बनकर रहे
मिथिला नाट्य कला परिषद के मीडिया कोऑर्डिनेटर श्यामसुंदर शशि का कहना है कि मिथिलावासियों में यह मान्यता आज भी कायम है कि जानकी विवाह के बाद भगवान राम यही जमाई बनकर रहे. वे सीता के साथ अयोध्या वापस नहीं गए. आमतौर पर सीता की जन्म के अवसर पर सोहर गीत गाया जाता है. जब विवाह होता है तो विवाह गीत के साथ अन्य सभी रस्मों वाले गीत गाए जाते हैं,लेकिन जब विदाई का समारोह याद आता है तो समदावन यानी विदाई गीत नहीं गाया जाता. यह परंपरा जनकपुर में सदियों से विद्यमान है. इसके चलते माना जाता है कि विवाह के बाद मां सीता की विदाई नहीं हुई. भगवान राम यहीं उनके साथ जमाई बनकर रहे.
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भगवान राम के लिए कुम्ड़ौरी विशेष
मिथलावासियों का कहना है कि भगवान राम जब जनकपुर में आए थे तो उन्हें यहां की डिश कुम्ड़ौरी विशेष पसंद आई थी. जिसके बाद कुम्ड़ौरी को जनकपुर की स्पेशल डिश माना जाने लगा.
नथिया का भार भी नहीं सहन कर सकी थी मां सीता की नाक
मिथिला नाथ कला परिषद की मीडिया कोऑर्डिनेटर श्यामसुंदर शशि बताते हैं कि विवाह के काफी दिन बाद मां सीता एक बार ससुराल आई थी. इस दौरान जानकी मंदिर के आदि महंत और जनकपुर के निर्माता सूर किशोर दास अयोध्या यह जानने के लिए आए कि सीता ससुराल में किस प्रकार रहती हैं.
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बेटी के घर पानी पीना भी है वर्जित
इसके चलते महंत सूर किशोर दास सरयू घाट पर बैठ गए और जानकी जी को संदेश भिजवाया कि वे यहां उनसे मिलने आए हैं. माना जाता है कि रात्रि के समय सीता उनसे मिलने आईं. उन्होंने उनके शरीर पर गहने नहीं देखे. इस दौरान वे अपने साथ एक नथिया उपहार स्वरूप देने के लिए आए थे. कई बार आग्रह करने के बाद जब सीता माता ने नथिया पहनी. उसी वक्त नथिया नीचे गिर गई और सीता के नाक से खून बहने लगा.
जानकी मंदिर में स्थापित मां सीता की मूर्ति में नाक पर कट का निशान
जनकपुर में जानकी मंदिर में स्थापित जानकी मां की मूर्ति में नाक पर कट का निशान आज भी मौजूद है. जनकपुर वासियों की मान्यता है कि यह मूल मूर्ति है, जो मां सरयू से प्राप्त हुई है.
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