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नवाब ने कराया था हनुमानगढ़ी का निर्माण, बड़ी दिलचस्प है कहानी

हनुमान जयंती के मौके पर ईटीवी भारत अयोध्या के प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी की एक ऐसी दिलचस्प कहानी आपके सामने लेकर आया है, जिसे सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे कि जिस शहर में मंदिर-मस्जिद के नाम पर कई सदियों से खून-खराबे का माहौल रहा, वहां पर एक प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण एक मुगल बादशाह ने आखिर क्यों कराया. पढ़ें ईटीवी भारत की इस स्पेशल रिपोर्ट में....

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Published : Nov 13, 2020, 2:03 AM IST

हनुमान जयंती 2020.
हनुमान जयंती 2020.

अयोध्या: 13 नवंबर को पूरे उत्तर भारत में हर्षोल्लास के साथ पवनसुत हनुमान की जयंती मनाई जाएगी. अयोध्या में प्रमुख सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी सहित अयोध्या के सभी मंदिरों में हनुमान जयंती का यह पर्व पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, लेकिन प्रमुख आयोजन सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी में होता है.

देखें हनुमान जयंती पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

वैसे तो हर वर्ष इस आयोजन में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु राम नगरी अयोध्या पहुंचते हैं, लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण आयोजन कुछ सिमटा हुआ नजर आ रहा है. फिर भी अयोध्या के प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी परिसर में बजरंगबली का जन्मदिन मनाने के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है. ईटीवी भारत ने हनुमान जयंती के मौके पर अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर के उस इतिहास को खंगाला है, जिसे जानकर आपको भी हैरानी होगी आखिर क्यों एक मुगल बादशाह ने बजरंगबली के इतने बड़े मंदिर का निर्माण कराया, जबकि धर्म और मजहब की ऊंची दीवारें कई सदियों से दोनों समुदायों के बीच खड़ी हैं.

हनुमानगढ़ी के प्रसाद से ठीक हो गए थे नवाब के बेटे
इतिहासकारों का दावा है कि अयोध्या में स्थित प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी मंदिर का निर्माण नवाब शुजाउद्दौला ने कराया था. बताया जाता है कि इस मंदिर के निर्माण से पहले टीलेनुमा उस स्थान पर एक छोटी सी मूर्ति रखी हुई थी. उसी मूर्ति की लोग पूजा करते थे. इस सिद्ध स्थान पर बाबा अभय रामदास हनुमंत लला की पूजा-अर्चना करते थे. बताया जाता है कि एक बार नवाब शुजाउद्दौला के बेटे की तबीयत बहुत खराब हो गई और उन्हें चर्म रोग भी हो गया. उस समय बाबा अभय रामदास ने हनुमान जी के प्रसाद और चरणामृत से नवाब शुजाउद्दौला के बेटे का इलाज कर दिया.

नवाब ने दान देने की इच्छा जाहिर की
यह घटना सन 1739 से लेकर 1754 के बीच की बताई जाती है. जब हनुमंत लला की कृपा से नवाब के बेटे ठीक हो गए तो प्रसन्न होकर नवाब ने बाबा अभय रामदास को कुछ दान देने की इच्छा जाहिर की, जिस पर बाबा अभय रामदास ने हनुमानगढ़ी का निर्माण कराने की इच्छा जाहिर की, जिसके बाद नवाब शुजाउद्दौला ने इस प्रसिद्ध सिद्ध पीठ का निर्माण कराया. इस बात का जिक्र प्रसिद्ध साहित्यकार इतिहासकार राय बहादुर लाला सीताराम ने सन 1933 में अपनी पुस्तक 'श्री अवध की झांकी' में भी किया है. वहीं मशहूर लेखक किशोर कुमार ने भी इस तथ्य को माना था.

मंदिर को तोड़ने का किया गया प्रयास
हनुमानगढ़ी के प्रसिद्ध संत राजू दास का कहना है कि एक मुगल बादशाह ने जहां इस पवित्र सिद्ध पीठ का निर्माण कराया. वहीं उनके काल के बाद कई मुस्लिम आक्रांताओं ने इसे तोड़ने का भी प्रयास किया. यही वजह थी कि मंदिर के निर्माण के बाद जब मुस्लिम समुदाय के कई लोग इस परिसर में आने-जाने लगे तब अपने बुद्धि और विवेक का परिचय देते हुए नवाब शुजाउद्दौला ने ताम्रपत्र पर स्पष्ट शब्दों में लिखा कि यहां पर सिर्फ हिंदुओं का प्रवेश मान्य है, जिससे कि अन्य धर्म के लोग इस पवित्र स्थल पर कोई दावा न कर सकें और कभी इसे क्षति न पहुंचा सके. यह ताम्रपत्र आज भी मौजूद है. मंदिर परिसर में एक सिलावट पर भी इसका जिक्र है.

हर शनिवार-मंगलवार लगती है भक्तों की भीड़
अयोध्या में प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी की महिमा अपरंपार बताई जाती है. यही वजह है कि प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को भक्तों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इस मंदिर परिसर में उमड़ती है. वहीं वर्ष भर में पड़ने वाले आधा दर्जन से अधिक मेलों के दौरान कई लाख श्रद्धालु इस प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन करने आते हैं. बजरंगबली का दर्शन करने आए श्रद्धालु घनश्याम सैनी ने बताया कि बचपन से माता-पिता ने उन्हें जानकारी दी कि संकट के समय में इस मंदिर में आकर बजरंगबली की पूजा करने से सारे कष्ट मिट जाते हैं. इस वजह से वह समय निकालकर दर्शन करने आते हैं.

इस दर पर पूरी होती है हर मुराद
गोण्डा से आए श्रद्धालु रविशंकर मिश्रा ने कहा कि हर कोई जानता है कि बजरंगबली के दरबार में सबकी मुराद पूरी होती है. अयोध्या में भगवान राम की सेवा में बजरंगबली सदैव तत्पर रहते हैं. इसलिए राम भक्तों की सदा वो रक्षा करते हैं. उन्हीं की कृपा पाने के लिए हम सभी उनका दर्शन करने के लिए आते हैं.

ऊंचे टीले पर बजरंगबली का दर्शन करते हैं श्रद्धालु
बजरंगबली को कलयुग का देवता भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि अयोध्या में भगवान राम के सरयू में गुप्त हो जाने के बाद हनुमंत लला ही अयोध्या और अयोध्या वासियों की सुरक्षा करते रहे हैं. इसी वजह से राम नगरी के मध्य में स्थित इस विशालकाय टीले पर विराजमान हनुमंत लला के दर्शन करने के लिए 76 सीढ़ियां चढ़कर श्रद्धालु मां अंजनी की गोद में विराजमान हनुमंत लला के दर्शन करते हैं.

अयोध्या: 13 नवंबर को पूरे उत्तर भारत में हर्षोल्लास के साथ पवनसुत हनुमान की जयंती मनाई जाएगी. अयोध्या में प्रमुख सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी सहित अयोध्या के सभी मंदिरों में हनुमान जयंती का यह पर्व पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, लेकिन प्रमुख आयोजन सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी में होता है.

देखें हनुमान जयंती पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

वैसे तो हर वर्ष इस आयोजन में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु राम नगरी अयोध्या पहुंचते हैं, लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण आयोजन कुछ सिमटा हुआ नजर आ रहा है. फिर भी अयोध्या के प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी परिसर में बजरंगबली का जन्मदिन मनाने के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है. ईटीवी भारत ने हनुमान जयंती के मौके पर अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर के उस इतिहास को खंगाला है, जिसे जानकर आपको भी हैरानी होगी आखिर क्यों एक मुगल बादशाह ने बजरंगबली के इतने बड़े मंदिर का निर्माण कराया, जबकि धर्म और मजहब की ऊंची दीवारें कई सदियों से दोनों समुदायों के बीच खड़ी हैं.

हनुमानगढ़ी के प्रसाद से ठीक हो गए थे नवाब के बेटे
इतिहासकारों का दावा है कि अयोध्या में स्थित प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी मंदिर का निर्माण नवाब शुजाउद्दौला ने कराया था. बताया जाता है कि इस मंदिर के निर्माण से पहले टीलेनुमा उस स्थान पर एक छोटी सी मूर्ति रखी हुई थी. उसी मूर्ति की लोग पूजा करते थे. इस सिद्ध स्थान पर बाबा अभय रामदास हनुमंत लला की पूजा-अर्चना करते थे. बताया जाता है कि एक बार नवाब शुजाउद्दौला के बेटे की तबीयत बहुत खराब हो गई और उन्हें चर्म रोग भी हो गया. उस समय बाबा अभय रामदास ने हनुमान जी के प्रसाद और चरणामृत से नवाब शुजाउद्दौला के बेटे का इलाज कर दिया.

नवाब ने दान देने की इच्छा जाहिर की
यह घटना सन 1739 से लेकर 1754 के बीच की बताई जाती है. जब हनुमंत लला की कृपा से नवाब के बेटे ठीक हो गए तो प्रसन्न होकर नवाब ने बाबा अभय रामदास को कुछ दान देने की इच्छा जाहिर की, जिस पर बाबा अभय रामदास ने हनुमानगढ़ी का निर्माण कराने की इच्छा जाहिर की, जिसके बाद नवाब शुजाउद्दौला ने इस प्रसिद्ध सिद्ध पीठ का निर्माण कराया. इस बात का जिक्र प्रसिद्ध साहित्यकार इतिहासकार राय बहादुर लाला सीताराम ने सन 1933 में अपनी पुस्तक 'श्री अवध की झांकी' में भी किया है. वहीं मशहूर लेखक किशोर कुमार ने भी इस तथ्य को माना था.

मंदिर को तोड़ने का किया गया प्रयास
हनुमानगढ़ी के प्रसिद्ध संत राजू दास का कहना है कि एक मुगल बादशाह ने जहां इस पवित्र सिद्ध पीठ का निर्माण कराया. वहीं उनके काल के बाद कई मुस्लिम आक्रांताओं ने इसे तोड़ने का भी प्रयास किया. यही वजह थी कि मंदिर के निर्माण के बाद जब मुस्लिम समुदाय के कई लोग इस परिसर में आने-जाने लगे तब अपने बुद्धि और विवेक का परिचय देते हुए नवाब शुजाउद्दौला ने ताम्रपत्र पर स्पष्ट शब्दों में लिखा कि यहां पर सिर्फ हिंदुओं का प्रवेश मान्य है, जिससे कि अन्य धर्म के लोग इस पवित्र स्थल पर कोई दावा न कर सकें और कभी इसे क्षति न पहुंचा सके. यह ताम्रपत्र आज भी मौजूद है. मंदिर परिसर में एक सिलावट पर भी इसका जिक्र है.

हर शनिवार-मंगलवार लगती है भक्तों की भीड़
अयोध्या में प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी की महिमा अपरंपार बताई जाती है. यही वजह है कि प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को भक्तों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इस मंदिर परिसर में उमड़ती है. वहीं वर्ष भर में पड़ने वाले आधा दर्जन से अधिक मेलों के दौरान कई लाख श्रद्धालु इस प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन करने आते हैं. बजरंगबली का दर्शन करने आए श्रद्धालु घनश्याम सैनी ने बताया कि बचपन से माता-पिता ने उन्हें जानकारी दी कि संकट के समय में इस मंदिर में आकर बजरंगबली की पूजा करने से सारे कष्ट मिट जाते हैं. इस वजह से वह समय निकालकर दर्शन करने आते हैं.

इस दर पर पूरी होती है हर मुराद
गोण्डा से आए श्रद्धालु रविशंकर मिश्रा ने कहा कि हर कोई जानता है कि बजरंगबली के दरबार में सबकी मुराद पूरी होती है. अयोध्या में भगवान राम की सेवा में बजरंगबली सदैव तत्पर रहते हैं. इसलिए राम भक्तों की सदा वो रक्षा करते हैं. उन्हीं की कृपा पाने के लिए हम सभी उनका दर्शन करने के लिए आते हैं.

ऊंचे टीले पर बजरंगबली का दर्शन करते हैं श्रद्धालु
बजरंगबली को कलयुग का देवता भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि अयोध्या में भगवान राम के सरयू में गुप्त हो जाने के बाद हनुमंत लला ही अयोध्या और अयोध्या वासियों की सुरक्षा करते रहे हैं. इसी वजह से राम नगरी के मध्य में स्थित इस विशालकाय टीले पर विराजमान हनुमंत लला के दर्शन करने के लिए 76 सीढ़ियां चढ़कर श्रद्धालु मां अंजनी की गोद में विराजमान हनुमंत लला के दर्शन करते हैं.

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