अयोध्या: दीपावली के अवसर पर अयोध्या में दीपोत्सव कार्यक्रम के द्वारा एक नया रिकॉर्ड बनाया गया. वहीं श्रीराम जन्मभूमि क्षेत्र के 422 परिवार ऐसे हैं, जो उदासी, बदहाली और अंधेरे में रहने को मजबूर हैं. इनकी जिन्दगी में अंधेरा इसलिए है, क्योंकि इनकs जमीन, खेत छीन लिए गए हैं. अब इनका परिवार सड़कों पर ठेला लगाने और मजदूरी करने को मजबूर है.
ईटीवी भारत ने बयां किया इन परिवारों का दर्द
इस दीपावली पर ईटीवी भारत ने ऐसे ही कुछ परिवारों से बात कर उनके दर्द को बयां किया है. श्रीराम जन्मभूमि क्षेत्र के (जिसे रामकोट क्षेत्र भी कहते हैं) कुछ ऐसे परिवार भी हैं, जो आज भी बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत के दौरान जयकुमार, श्याम मौर्या, कमलेश और रागिनी ने अपनी ढलती उम्र के साथ अपना दर्द बयां किया.
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2 रुपये के हिसाब से मिला जमीन का मुआवजा
ईटीवी भारत से विशेष बातचीत के दौरान श्याम मौर्य ने बताया कि जब हम छोटे-छोटे थे. उस वक्त ही हमारी जमीन हमसे ले ली गई थी. सरकार ने कहा था कि हम इस जमीन का अधिग्रहण करते हैं और इसका मुआवजा भी दिया जाएगा. हमारी हजारों-लाखों की जमीन का सिर्फ 2 रुपये के हिसाब से हमें मुआवजा दिया गया.
परिवार ठेला लगाकर करता है गुजारा
जमीन लेते वक्त हमसे कहा गया कि सरकारी नौकरी मिलेगी, लेकिन आज तक न नौकरी मिली है और न मुआवजा मिला है. हम लोग बस सिलाई की दुकान पर काम करते हैं और भाई ठेला लगाता है.
पूरी जिंदगी निकल गई, लेकिन जमीन न मिली
इसी क्षेत्र से जुड़े बाबू रामानंद मौर्य की उम्र 80 साल से ऊपर हो चुकी है. इन्हें कम सुनाई देता है. रामानंद मौर्य कहते हैं कि मेरी पूरी जिंदगी अपने खेत और अपनी जमीन को पाने में निकल गई, लेकिन सिर्फ हमें 2 रुपये 34 पैसे ही मिले थे. वह कहते हैं कि हमारी 15 से 20 एकड़ की जमीन जो मेरे हिस्से में थी. उस वक्त मैं जवान था, सोचा था जमीन गई तो नौकरी से ही पेट भरेंगे, लेकिन सरकारी वादे हर बार की तरह झूठे ही निकले. तब हमने राज्य सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट में केस किया, जिसमे आज तक तारीख ही मिली है, फैसला नहीं आया.
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अपनी जमीन पर जलाना चाहता हूं दीप
संतराम मौर्य कहते हैं कि मेरीआंखें बंद होने से पहले एक बार मैं अपनी जमीन, अपने खेत में दीप जलाना चाहता हूं, ताकि मुझे सुकून मिल सके. उन्होंने बताया कि मुझे मेरी ही जमीन पर माली बनाकर सरकार डेढ़ सौ रुपये मजदूरी देती है, वो भी एक कॉन्ट्रैक्ट है. संतराम का कहना है कि मेरे लिए इससे ज्यादा दुख की बात और क्या होगी कि हर दिवाली के दिन मैं अपने घर में अकेले में जाकर रो लेता हूं, क्योंकि मेरी दीवाली बिना जमीन और बिना खेत के सूनी है.
परिवार सड़क पर रहने को मजबूर
बता दें कि श्रीराम जन्मभूमि के रामपुर क्षेत्र में लगभग 422 परिवार रहते हैं. इन 422 परिवारों की स्थिति लगभग खानाबदोश जैसी है. इसमें से कुछ परिवार तो ऐसे हैं जिनके खेत, घर, मकान सब कुछ श्रीराम जन्मभूमि क्षेत्र के बैरिकेडिंग के अंदर चली गई. इससे ये परिवार सड़कों पर रहने को मजबूर हैं.
अपनी जमीन पर नहीं जल पाए दिये
ये सभी ऐसे परिवार हैं, जिनकी जमीन का राज्य सरकार ने 1989 में अधिग्रहण किया था. सरकार ने यहां राम कथा पार्क और राम मंदिर बनाने की बात कही. उसके बाद जब 1992 में बाबरी विध्वंस हुआ, तब से लेकर आज तक यह अपनी ही जमीन में दिये भी नहीं जला पा रहे हैं.
भगवान राम ही दूर कर सकते हैं अंधेरा
इन परिवारों का कहना है कि सरकार की तरफ से मुआवजे के नाम पर सिर्फ मजाक किया गया, एक ऐसा मजाक जिसने हमारी दुनिया में अंधेरा कर दिया. हमारी जिंदगी के इस अंधेरे को भगवान राम ही दूर कर सकते हैं और वो राम कब आएंगे कोई नहीं जानता.