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औरेया: हाथ-पैर गंवा देने के बाद पत्नी बनी सहारा, पति की सेवा के लिए छोड़ी नौकरी

उत्तर प्रदेश के औरैया में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें शादी के 10 महीने के बाद एक युवक ने ट्रेन हादसे में अपने हाथ और पैर गंवा दिए थे. अब उनकी शादी के 23 साल पूरे हो चुके हैं. पत्नी ने दो दशक से अधिक समय हमसफर बनकर गुजार दिए.

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जिंदगी से जंग.
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Published : Jan 5, 2020, 5:21 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:17 PM IST

औरैयाः हमसफर साथ हो, तो हर मंजिल आसान हो जाती है. ऐसा ही वाकया औरैया का है, यहां घोर विपत्ति के दौरान पत्नी हमसफर के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ी रही. हमसफर के साथ ने बुरा वक्त यूं भूला दिया और दोनों का 23 साल का सुनहरा सफर यादगार बन गया. ये कहानी औरैया के दिबियापुर के शेखर यादव और पत्नी रीता यादव की है.

जिंदगी से जंग.

शेखर ने 23 साल पहले एक ट्रेन हादसे में खुद के हाथ और पैर गंवा दिए थे. शेखर अपनी शादी के महज 10 महीने के बाद ही हादसे का शिकार हो गए थे. अचानक जिन्दगी ने जंग छेड़ दी और जंग भी ऐसी जो न जीने दे रही थी और न मरने. मगर ऐसे में उनकी जिंदगी के लिए हमसफ़र बनकर खड़ी रहीं उनकी पत्नी.

यह मामला जिले के दिबियापुर निवासी शेखर यादव का है. जिनकी जिंदगी में शादी के महज दस माह बाद ही वो अंधेरा छाया गया, जिसने मानो उनके उजाले के रास्ते ही बंद कर दिए हों. वे कहते हैं जब पत्नी और परिवार वालों का साथ मिल जाए तो कोई आम आदमी कुछ भी कर सकता है. शेखर ने खुद को बेहतर बनाया और आगे खुद को साबित भी करते रहे.

सफर करते हुआ हादसा
शेखर बताते हैं कि वे 23 साल पहले किसी काम से कानपुर जा रहे थे. अचानक धक्का-मुक्की में वे ट्रेन के नीचे गिर गए और उनके दोनो पैरों और हाथ ने उनका सहारा छोड़ दिया. लेकिन आज पत्नी रीता यादव, मां, भाई और परिवार के लोग उनका सहारा बनकर जिंदगी जीने का मकसद सिखा दिया. आज शेखर बहुत खुश हैं और उनके दो बेटे और एक बेटी है.

पत्नी ने दिया साथ
आज शेखर की पत्नी रीता बताती हैं कि उनके पिता कहीं और शादी करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने सिर्फ शेखर के साथ जिंदगी बिताने का फैसला लिया. वचनों के उन बंधनों को निभाते हुए वे शेखर के लिए ढाल बनकर खड़ी हो गई. शेखर की पत्नी ने नौकरी को त्याग कर सिर्फ शेखर की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया.

औरैयाः हमसफर साथ हो, तो हर मंजिल आसान हो जाती है. ऐसा ही वाकया औरैया का है, यहां घोर विपत्ति के दौरान पत्नी हमसफर के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ी रही. हमसफर के साथ ने बुरा वक्त यूं भूला दिया और दोनों का 23 साल का सुनहरा सफर यादगार बन गया. ये कहानी औरैया के दिबियापुर के शेखर यादव और पत्नी रीता यादव की है.

जिंदगी से जंग.

शेखर ने 23 साल पहले एक ट्रेन हादसे में खुद के हाथ और पैर गंवा दिए थे. शेखर अपनी शादी के महज 10 महीने के बाद ही हादसे का शिकार हो गए थे. अचानक जिन्दगी ने जंग छेड़ दी और जंग भी ऐसी जो न जीने दे रही थी और न मरने. मगर ऐसे में उनकी जिंदगी के लिए हमसफ़र बनकर खड़ी रहीं उनकी पत्नी.

यह मामला जिले के दिबियापुर निवासी शेखर यादव का है. जिनकी जिंदगी में शादी के महज दस माह बाद ही वो अंधेरा छाया गया, जिसने मानो उनके उजाले के रास्ते ही बंद कर दिए हों. वे कहते हैं जब पत्नी और परिवार वालों का साथ मिल जाए तो कोई आम आदमी कुछ भी कर सकता है. शेखर ने खुद को बेहतर बनाया और आगे खुद को साबित भी करते रहे.

सफर करते हुआ हादसा
शेखर बताते हैं कि वे 23 साल पहले किसी काम से कानपुर जा रहे थे. अचानक धक्का-मुक्की में वे ट्रेन के नीचे गिर गए और उनके दोनो पैरों और हाथ ने उनका सहारा छोड़ दिया. लेकिन आज पत्नी रीता यादव, मां, भाई और परिवार के लोग उनका सहारा बनकर जिंदगी जीने का मकसद सिखा दिया. आज शेखर बहुत खुश हैं और उनके दो बेटे और एक बेटी है.

पत्नी ने दिया साथ
आज शेखर की पत्नी रीता बताती हैं कि उनके पिता कहीं और शादी करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने सिर्फ शेखर के साथ जिंदगी बिताने का फैसला लिया. वचनों के उन बंधनों को निभाते हुए वे शेखर के लिए ढाल बनकर खड़ी हो गई. शेखर की पत्नी ने नौकरी को त्याग कर सिर्फ शेखर की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया.

Intro:एंकर--ये कहानी नहीं बल्कि वो हक़ीक़त है जिसके साथ अब तक शेखर ने 23 वर्ष गुजार दिए।आज से तेईस वर्ष पहले ट्रेन हादसे में खुद के हाथ और पैर गंवाने वाले शेखर उस वक़्त शादी के 10 माह ही गुजार पाए थे कि अचानक ज़िन्दगी ने जंग छेड़ दी जंग भी ऐसी जो न जीने दे रही थी न मरने।मगर ऐसे में उनकी जिंदगी के लिए उनकी हमसफ़र बनकर खड़ी हुई पत्नी।जिसने पति को सहारा देने के लिए नौकरी तक छोड़ दी।


Body:मामला औरैया जनपद स्थित दिबियापुर निवासी शेखर यादव का है जिनकी जिंदगी में शादी के महज दस माह बाद ही वो अंधेरा छाया की जिसने उजालों के रास्ते ही बदल दिए लेकिन पत्नी और परिवारी जनो का साथ जो मिला तो शेखर ने खुद को बेहतर बना लिया।शेखर बताते हैं कि वो 23 वर्ष पहले किसी काम से कानपुर जा रहे थे कि तभी ट्रेन में धक्का मुक्की के चलते वह ट्रेन से नीचे गिर गए और उनके दोनो पैर व हाथ सहारा छोड़ गए।लेकिन किस तरह उनकी पत्नी भाई और परिवारी जन उनका सहारा बनकर जिंदगी का मक़सद दे रहे हैं।आज शेखर के दो बेटे और एक बेटी है।


Conclusion:शेखर की पत्नी बताती है कि उनके पिता कहीं और शादी करना चाहते थे लेकिन उन्होंने सिर्फ शेखर के साथ जिंदगी बिताने का फैसला किया बल्कि वचनों के उन बंधनो को निभाते हुए वो शेखर के लिए ढाल बनकर खड़ी हो गई।शेखर की पत्नी ने किस तरह नौकरी को त्याग कर सिर्फ शेखर की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया। ईटीवी भारत ने इस हक़ीक़त को इस लिए दिखाना उचित समझा जहाँ आज की पीढ़ी में आत्म हत्या जैसे विचारों को लाने वाले लोग खुद को हताश बताकर जरिया बना लेते हैं।वहीं शेखर की जिंदगी से आकलन करने पर शायद ही आत्म हत्या जैसे विचारों वाले लोग प्रेरणा लें।। बाइट--शेखर बाइट शेखर की पत्नी
Last Updated : Sep 10, 2020, 12:17 PM IST
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