औरैयाः हमसफर साथ हो, तो हर मंजिल आसान हो जाती है. ऐसा ही वाकया औरैया का है, यहां घोर विपत्ति के दौरान पत्नी हमसफर के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ी रही. हमसफर के साथ ने बुरा वक्त यूं भूला दिया और दोनों का 23 साल का सुनहरा सफर यादगार बन गया. ये कहानी औरैया के दिबियापुर के शेखर यादव और पत्नी रीता यादव की है.
शेखर ने 23 साल पहले एक ट्रेन हादसे में खुद के हाथ और पैर गंवा दिए थे. शेखर अपनी शादी के महज 10 महीने के बाद ही हादसे का शिकार हो गए थे. अचानक जिन्दगी ने जंग छेड़ दी और जंग भी ऐसी जो न जीने दे रही थी और न मरने. मगर ऐसे में उनकी जिंदगी के लिए हमसफ़र बनकर खड़ी रहीं उनकी पत्नी.
यह मामला जिले के दिबियापुर निवासी शेखर यादव का है. जिनकी जिंदगी में शादी के महज दस माह बाद ही वो अंधेरा छाया गया, जिसने मानो उनके उजाले के रास्ते ही बंद कर दिए हों. वे कहते हैं जब पत्नी और परिवार वालों का साथ मिल जाए तो कोई आम आदमी कुछ भी कर सकता है. शेखर ने खुद को बेहतर बनाया और आगे खुद को साबित भी करते रहे.
सफर करते हुआ हादसा
शेखर बताते हैं कि वे 23 साल पहले किसी काम से कानपुर जा रहे थे. अचानक धक्का-मुक्की में वे ट्रेन के नीचे गिर गए और उनके दोनो पैरों और हाथ ने उनका सहारा छोड़ दिया. लेकिन आज पत्नी रीता यादव, मां, भाई और परिवार के लोग उनका सहारा बनकर जिंदगी जीने का मकसद सिखा दिया. आज शेखर बहुत खुश हैं और उनके दो बेटे और एक बेटी है.
पत्नी ने दिया साथ
आज शेखर की पत्नी रीता बताती हैं कि उनके पिता कहीं और शादी करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने सिर्फ शेखर के साथ जिंदगी बिताने का फैसला लिया. वचनों के उन बंधनों को निभाते हुए वे शेखर के लिए ढाल बनकर खड़ी हो गई. शेखर की पत्नी ने नौकरी को त्याग कर सिर्फ शेखर की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया.