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वासुदेव तीर्थ मंदिर का इतिहास है 5 हजार साल पुराना, जानें क्या है खासियत

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Published : Nov 9, 2020, 3:06 PM IST

Updated : Nov 11, 2020, 6:40 PM IST

यूपी के अमरोहा जनपद में स्थित वासुदेव तीर्थ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. प्राचीन समय से यहां श्रद्धालु आकर पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के कारण श्रद्धालुओं की आस्था पर ग्रहण लगा है.

वासुदेव तीर्थ मंदिर.
वासुदेव तीर्थ मंदिर.

अमरोहा: शहर के प्राचीन वासुदेव तीर्थ मंदिर का इतिहास 5 हजार साल पुराना रहा है. इसमें वासुदेव मंदिर पांडवों के अज्ञातवास का साक्षी रहे हैं, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते श्रद्धालुओं का आना बंद हो गया. इसके चलते आषाढ़ माघ के महीने में लगने वाला मेला भी निरस्त हो गया. दरअसल, काफी लोगों की तादाद में लगने वाला मेला बड़ा ही रोचक होता है. इसमें कई हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूरदराज से वासुदेव मंदिर के दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना मांगते हैं. कोरोना काल के चलते प्रशासन ने आने-जाने वाले लोगों पर रोक लगा दी थी, लेकिन अब कुछ दिन पहले से श्रद्धालु आने शुरू हुए है. श्रद्धालु बड़ी ही सावधानी के साथ आकर दर्शन करते हैं.

जानकारी देते पुजारी और श्रद्धालु.

बटेश्वर शिवालय की स्थापना
श्री वासुदेव तीर्थ मंदिर 5000 ईसवीं पूर्व इंद्रप्रस्थ दिल्ली के राजा अमरचौड़ ने अमरोहा शहर को बसाया था. इसके बाद श्री वासुदेव सरोवर के किनारे पर बटेश्वर शिवालय की स्थापना की गई. इस दौरान पीपल और बरगद के पेड़ आपस में एक-दूसरे से लिपटे हुए थे. महाभारत के दौरान कुरुक्षेत्र जाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ संभल के निकले थे. इस दौरान उन्होंने पांडवों के साथ मंदिर में रात्रि विश्राम किया था. सुबह सरोवर में भगवान श्रीकृष्ण ने स्नान किया, जिसके बाद सरोवर 'श्री वासुदेव सरोवर' के नाम से मशहूर हुआ.

सरोवर के दक्षिण तट पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अपने हाथों से शिवलिंग आज भी मौजूद है. सरोवर के पश्चिम तट पर राधा-कृष्ण, राम-सीता, शिव-पार्वती, दुर्गा मां और हनुमानजी आदि देवी-देवता की मूर्तियां विराजमान हैं. हनुमानजी की विशाल मूर्ति के पास कदम का वृक्ष आज भी मौजूद है. सरोवर के बीच में एक बड़े चबूतरे पर भगवान शिव मूर्ति की स्थापति है. मंदिर तक जाने के लिए सरोवर में दो तरफ से पुल बने हुए हैं. एक पुराने विशाल पेड़ के नीचे अन्य कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई का मंदिर है. मीराबाई के दरबार के बराबर में काली देवी का प्राचीन मंदिर है. इसके किनारे हजारों वर्ष पुराने पीपल बरगद और पीपल के पेड़ खड़े हैं. सरोवर के नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है. इस सरोवर में रात दिन बत्तख चहल चहलकदमी करती रहती हैं. वासुदेव तीर्थ मंदिर की मान्यता अधिक है.

कोरोना संक्रमण ने लगाई भक्तों पर पाबंदी
इसके चलते त्योहारों पर भक्तों का तांता लगा रहता है, जिसमें इस बार कोरोना संक्रमण के चलते भक्तों का आना-जाना नहीं हुआ. वहीं, इस बार वासुदेव मंदिर सुना रहा. भक्तों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी थी, जिसमें कुछ दिन पहले से ही वासुदेव तीर्थ मंदिर पर भक्तों का आना शुरू हो गया है, जिसमें भगत बड़े ही सावधानी के साथ आ रहे हैं और एक खास बात वासुदेव तीर्थ कि यह कि यहां पर हर वर्ग का व्यक्ति आता है चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम यहां पर हर जाति धर्म का व्यक्ति वासुदेव तीर्थ पर दर्शन करने के लिए आता है. यहां किसी जाति धर्म का कोई भेदभाव नहीं होता.

इसे भी पढ़ें- अमरोहा: सपा नेता पर शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण का आरोप

अमरोहा: शहर के प्राचीन वासुदेव तीर्थ मंदिर का इतिहास 5 हजार साल पुराना रहा है. इसमें वासुदेव मंदिर पांडवों के अज्ञातवास का साक्षी रहे हैं, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते श्रद्धालुओं का आना बंद हो गया. इसके चलते आषाढ़ माघ के महीने में लगने वाला मेला भी निरस्त हो गया. दरअसल, काफी लोगों की तादाद में लगने वाला मेला बड़ा ही रोचक होता है. इसमें कई हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूरदराज से वासुदेव मंदिर के दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना मांगते हैं. कोरोना काल के चलते प्रशासन ने आने-जाने वाले लोगों पर रोक लगा दी थी, लेकिन अब कुछ दिन पहले से श्रद्धालु आने शुरू हुए है. श्रद्धालु बड़ी ही सावधानी के साथ आकर दर्शन करते हैं.

जानकारी देते पुजारी और श्रद्धालु.

बटेश्वर शिवालय की स्थापना
श्री वासुदेव तीर्थ मंदिर 5000 ईसवीं पूर्व इंद्रप्रस्थ दिल्ली के राजा अमरचौड़ ने अमरोहा शहर को बसाया था. इसके बाद श्री वासुदेव सरोवर के किनारे पर बटेश्वर शिवालय की स्थापना की गई. इस दौरान पीपल और बरगद के पेड़ आपस में एक-दूसरे से लिपटे हुए थे. महाभारत के दौरान कुरुक्षेत्र जाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ संभल के निकले थे. इस दौरान उन्होंने पांडवों के साथ मंदिर में रात्रि विश्राम किया था. सुबह सरोवर में भगवान श्रीकृष्ण ने स्नान किया, जिसके बाद सरोवर 'श्री वासुदेव सरोवर' के नाम से मशहूर हुआ.

सरोवर के दक्षिण तट पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अपने हाथों से शिवलिंग आज भी मौजूद है. सरोवर के पश्चिम तट पर राधा-कृष्ण, राम-सीता, शिव-पार्वती, दुर्गा मां और हनुमानजी आदि देवी-देवता की मूर्तियां विराजमान हैं. हनुमानजी की विशाल मूर्ति के पास कदम का वृक्ष आज भी मौजूद है. सरोवर के बीच में एक बड़े चबूतरे पर भगवान शिव मूर्ति की स्थापति है. मंदिर तक जाने के लिए सरोवर में दो तरफ से पुल बने हुए हैं. एक पुराने विशाल पेड़ के नीचे अन्य कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई का मंदिर है. मीराबाई के दरबार के बराबर में काली देवी का प्राचीन मंदिर है. इसके किनारे हजारों वर्ष पुराने पीपल बरगद और पीपल के पेड़ खड़े हैं. सरोवर के नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है. इस सरोवर में रात दिन बत्तख चहल चहलकदमी करती रहती हैं. वासुदेव तीर्थ मंदिर की मान्यता अधिक है.

कोरोना संक्रमण ने लगाई भक्तों पर पाबंदी
इसके चलते त्योहारों पर भक्तों का तांता लगा रहता है, जिसमें इस बार कोरोना संक्रमण के चलते भक्तों का आना-जाना नहीं हुआ. वहीं, इस बार वासुदेव मंदिर सुना रहा. भक्तों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी थी, जिसमें कुछ दिन पहले से ही वासुदेव तीर्थ मंदिर पर भक्तों का आना शुरू हो गया है, जिसमें भगत बड़े ही सावधानी के साथ आ रहे हैं और एक खास बात वासुदेव तीर्थ कि यह कि यहां पर हर वर्ग का व्यक्ति आता है चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम यहां पर हर जाति धर्म का व्यक्ति वासुदेव तीर्थ पर दर्शन करने के लिए आता है. यहां किसी जाति धर्म का कोई भेदभाव नहीं होता.

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Last Updated : Nov 11, 2020, 6:40 PM IST
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