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अमेठी: अमृत की रक्षा के लिए अमृतकुंड की शिला पर विराजमान हुईं मां - sangrampur

जनपद के संग्रामपुर में अमृतकुंड पर विराजमान मां कालिकन भवानी का पौराणिक इतिहास है. माना जाता है कि महश्री च्यवन मुनि की तपोस्थली के बारह तालिका के सरोवर में स्नान करके समस्त चर्मरोगों का सही होना यहां के शक्तिपीठ अध्यात्म से जुड़ा है.

जानकारी देेतें मंदिर के पुजारी पंडित श्री हरि
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Published : Feb 2, 2019, 1:51 PM IST

Updated : Feb 4, 2019, 5:41 PM IST

अमेठी: जनपद के संग्रामपुर में अमृतकुंड पर विराजमान मां कालिकन भवानी का रोचक इतिहास है. माना जाता है कि, महश्री च्यवन मुनि की तपोस्थली के बारह तालिका के सरोवर में स्नान करके समस्त चर्मरोगों का सही होना यहां के शक्तिपीठ अध्यात्म से जुड़ा है.

पौराणिक मान्यता
कहा जाता है कि अयोध्या के राजा सरियाद की एक ही पुत्री थी. उसका नाम सुकन्या था. वन विहार के दौरान वह यहां के जंगल मे आयी थी, जहां महश्री च्यवन मुनि तपस्या कर रहे थे. तप करते-करते महश्री के शरीर पर दीमक लग गई और उनकी आंखें दीमक के बीच मणि की तरह चमक रही थीं. सुकन्या ने मणि समझ कर दीमक के बीच से कांटे द्वारा मणि निकालने का प्रयास करने लगी तभी महश्री की आंखे फूट गईं. इससे उन्हें कष्ट होने लगा. इसके बाद राजा सरियाद के पशुओ में ज्वर फैल गया.

जानकारी देेतें मंदिर के पुजारी पंडित श्री हरि
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पशुओं में एक साथ एक ही बीमारी होने पर राजा को दैवीय प्रकोप की आशंका हुई. राजा द्वारा जानकारी करने पर सुकन्या ने बताया कि उन्होंने ऐसा अपराध किया है. राजा ने महर्षि च्यवन के पास पहुंच कर उनके शरीर को साफ कराकर बाहर निकाला और शाप से बचने के लिए सुकन्या का विवाह महश्री के साथ करके वापस चले गए.


कालांतर में अश्विनी कुमार महश्री की तपोस्थली पर आए और उन्होंने महश्री को युवा व उनकी ज्योति वापस करने की बात कही. अश्विनी कुमार ने कहा कि बदले में महश्री को यज्ञ में हिस्सा व सोमपान करना होगा. अश्विनी कुमार ने तपोस्थली के पास बारह तालिका बनाई,जो आज सगरा का रूप ले लिया है. उस सरोवर में अश्विनी कुमार ने औषधि डाल दी और महश्री के साथ सरोवर में डुबकी लगाई. डुबकी लगाने के बाद बाहर निकलने पर तीनों एक रूप के निकले जिससे सुकन्या विचलित हो गई. सुकन्या ने अश्विनी कुमार की आराधना की तो वे देव लोक वापस चले गए. महश्री के आंखों की ज्योति व युवा हो जाने पर सुकन्या और महश्री एक साथ प्रेम से रहने लगे.

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राजा सरियाद कुछ दिन बाद बेटी का हालचाल जानने तपोस्थली पर आए तो युवा ऋषि देखकर उन्हें बेटी पर क्रोध आ गया. सुकन्या द्वारा घटना की जानकारी पर वे शांत हो गए. महश्री ने राजा सरियाद को सोमयज्ञ कराने का निर्देश दिया. यज्ञ में सारे देवता आए. उनमें अश्विनी कुमार को भी बुलाया गया. सबको सोमपान करने के बाद जैसे अश्विनी कुमार को सोमपान कराया जाने लगा तभी इंद्र क्रोधित होकर आसन से खड़े हो गए. राजा सरियाद को मारने के लिए इंद्र ने वज्र उठा लिया. महश्री ने वज्र को स्तंभित कर कहा कि देवताओं की सेवा करते हैं इसलिए इन्हें यज्ञ में हिस्से के साथ-साथ सोमपान करने का भी पूरा अधिकार है. इसके बाद यज्ञ समाप्त हो गया.


यज्ञ के बाद देवताओं ने निर्णय लिया कि अमृत की रक्षा कौन करेगा. देवताओं व महश्री ने शक्ति का आहवान किया तो मां भगवती अष्टभुजी के रूप में प्रकट हुई. देवताओं व महश्री के अनुरोध पर मां भगवती अमृत की रक्षा के लिए तैयार हुईं तथा अमृतकुंड की शिला के रूप में स्थान ले लिया. इसके बाद देवता देव लोक वापस चले गए और महश्री व सुकन्या भी मथुरा चले गए. पुजारी पंडित श्री हरि ने मां कालिकन भवानी के मंदिर के बारे में बताते हुए कहा कि यहां श्रद्धालु जो भी मनोकामना लेकर मां के पास आते हैं मां उनकी मनोकामना जरुर पूर्ण करती हैं. उन्होंने बताया कि मनोकामना पूर्ण हो जाने पर श्रद्धालु मंदिर में घंटी बांधते हैं.

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अमेठी: जनपद के संग्रामपुर में अमृतकुंड पर विराजमान मां कालिकन भवानी का रोचक इतिहास है. माना जाता है कि, महश्री च्यवन मुनि की तपोस्थली के बारह तालिका के सरोवर में स्नान करके समस्त चर्मरोगों का सही होना यहां के शक्तिपीठ अध्यात्म से जुड़ा है.

पौराणिक मान्यता
कहा जाता है कि अयोध्या के राजा सरियाद की एक ही पुत्री थी. उसका नाम सुकन्या था. वन विहार के दौरान वह यहां के जंगल मे आयी थी, जहां महश्री च्यवन मुनि तपस्या कर रहे थे. तप करते-करते महश्री के शरीर पर दीमक लग गई और उनकी आंखें दीमक के बीच मणि की तरह चमक रही थीं. सुकन्या ने मणि समझ कर दीमक के बीच से कांटे द्वारा मणि निकालने का प्रयास करने लगी तभी महश्री की आंखे फूट गईं. इससे उन्हें कष्ट होने लगा. इसके बाद राजा सरियाद के पशुओ में ज्वर फैल गया.

जानकारी देेतें मंदिर के पुजारी पंडित श्री हरि
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पशुओं में एक साथ एक ही बीमारी होने पर राजा को दैवीय प्रकोप की आशंका हुई. राजा द्वारा जानकारी करने पर सुकन्या ने बताया कि उन्होंने ऐसा अपराध किया है. राजा ने महर्षि च्यवन के पास पहुंच कर उनके शरीर को साफ कराकर बाहर निकाला और शाप से बचने के लिए सुकन्या का विवाह महश्री के साथ करके वापस चले गए.


कालांतर में अश्विनी कुमार महश्री की तपोस्थली पर आए और उन्होंने महश्री को युवा व उनकी ज्योति वापस करने की बात कही. अश्विनी कुमार ने कहा कि बदले में महश्री को यज्ञ में हिस्सा व सोमपान करना होगा. अश्विनी कुमार ने तपोस्थली के पास बारह तालिका बनाई,जो आज सगरा का रूप ले लिया है. उस सरोवर में अश्विनी कुमार ने औषधि डाल दी और महश्री के साथ सरोवर में डुबकी लगाई. डुबकी लगाने के बाद बाहर निकलने पर तीनों एक रूप के निकले जिससे सुकन्या विचलित हो गई. सुकन्या ने अश्विनी कुमार की आराधना की तो वे देव लोक वापस चले गए. महश्री के आंखों की ज्योति व युवा हो जाने पर सुकन्या और महश्री एक साथ प्रेम से रहने लगे.

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राजा सरियाद कुछ दिन बाद बेटी का हालचाल जानने तपोस्थली पर आए तो युवा ऋषि देखकर उन्हें बेटी पर क्रोध आ गया. सुकन्या द्वारा घटना की जानकारी पर वे शांत हो गए. महश्री ने राजा सरियाद को सोमयज्ञ कराने का निर्देश दिया. यज्ञ में सारे देवता आए. उनमें अश्विनी कुमार को भी बुलाया गया. सबको सोमपान करने के बाद जैसे अश्विनी कुमार को सोमपान कराया जाने लगा तभी इंद्र क्रोधित होकर आसन से खड़े हो गए. राजा सरियाद को मारने के लिए इंद्र ने वज्र उठा लिया. महश्री ने वज्र को स्तंभित कर कहा कि देवताओं की सेवा करते हैं इसलिए इन्हें यज्ञ में हिस्से के साथ-साथ सोमपान करने का भी पूरा अधिकार है. इसके बाद यज्ञ समाप्त हो गया.


यज्ञ के बाद देवताओं ने निर्णय लिया कि अमृत की रक्षा कौन करेगा. देवताओं व महश्री ने शक्ति का आहवान किया तो मां भगवती अष्टभुजी के रूप में प्रकट हुई. देवताओं व महश्री के अनुरोध पर मां भगवती अमृत की रक्षा के लिए तैयार हुईं तथा अमृतकुंड की शिला के रूप में स्थान ले लिया. इसके बाद देवता देव लोक वापस चले गए और महश्री व सुकन्या भी मथुरा चले गए. पुजारी पंडित श्री हरि ने मां कालिकन भवानी के मंदिर के बारे में बताते हुए कहा कि यहां श्रद्धालु जो भी मनोकामना लेकर मां के पास आते हैं मां उनकी मनोकामना जरुर पूर्ण करती हैं. उन्होंने बताया कि मनोकामना पूर्ण हो जाने पर श्रद्धालु मंदिर में घंटी बांधते हैं.

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Intro:अमेठी। माँ कालिकन भवानी जनपद अमेठी के संग्रामपुर में विराजमान है। अमृतकुंड पर विराजमान माँ कालिकन भवानी का रोचक इतिहास है। माना जाता है कि महश्री च्यवन मुनि की तपोस्थली के बारह तालिका के सरोवर में स्नान करके समस्त चर्मरोगों का सही होना यह के शक्तिपीठ अध्यात्म से जुड़ा है।

पौराणिक मान्यता

अयोध्या के राजा सरियाद के एक ही पुत्री थी।जिसका नाम सुकन्या था। वन विहार के दौरान वह यह के जंगल मे आयी थी। महश्री च्यवन मुनि यहा पर तपस्या कर रहे थे। तप करते-करते महश्री के शरीर पर दिमाकलग गया तथा उनकी आँखें दीमक के बीच मणि की तरह चमक रही थी। सुकन्या ने मणि समझ कर दीमक के बीच से काटे द्वारा मणि निकालने का प्रयास करने लगी तभी महश्री की आँखे फूट गयी और उन्हें कष्ट हो गया। इसके बाद राजा सरियाद के पशुओ में ज्वर फैल गया।एक साथ पशुओ में एक ही बीमारी होने पर राजा को दैवीय प्रकोप की आशंका हो गयी। राजा द्वारा जानकारी करने पर सुकन्या ने बताया कि उन्होने ऐसा अपराध किया है। राजा ने तपस्वी के पास पहुच कर महश्री के शरीर को साफ कराकर बाहर निकाला तथा शाप से बचने के लिए सुकन्या का विवाह महश्री के साथ करके वापस चले गए। कालांतर में अश्विनी कुमारमहश्री की तपोस्थली पर आए और उन्होंने महश्री को युवा व उनकी ज्योति वापस करने की बात कही। अश्विनी कुमार ने कहा कि बदले में महश्री को यज्ञ में हिस्सा व सोमपान करना होगा। अश्विनी कुमार ने तपोस्थली के पास बारह तालिका बनाई,जो आज सगरा का रूप ले लिया है। उस सरोवर में अश्विनी कुमार ने औसधि डाल दी।महश्री कि साथ सरोवर में डुबकी लगाई।डुबकी लगाने के बाद बाहर निककने पर तीनों एक रुप के निकले जिससे सुकन्या विचलित हो गयी। सुकन्या ने अश्विनी कुमार की आराधना की तो व देव लोक वापस चले गए।महश्री कि ज्योति व युवा हो जाने पर सुकन्या व महश्री एक साथ प्रेम से रहने लगे।


Body:राजा सरियाद कुछ दिन बाद बेटी का हालचाल जानने तपोस्थली पर आए तो युवा ऋषि देखकर उन्हें बेटी पर क्रोध आ गया। सुकन्या द्वारा घटना की जानकारी पर वे शांत हो गए। महश्री ने राजा सरियाद को सोमयज्ञ कराने का निर्देश दिया।यज्ञ में सारे देवता आये उनमे अश्विनी कुमार को भी बुलाया गया।सबको सोमपान करने के बाद जैसे अश्विनी कुमार को सोमपान कराया जाने लगा। तभी इंद्र क्रोधित होकर आसान से खड़े हो गए। राजा सरियाद को मारने के लिए इंद्र ने वज्र उठा लिया।महश्री ने वज्र को स्तंभित कर कहा कि देवताओ की सेवा करते है इसलिए इन्हें यज्ञ में हिस्से के साथ-साथ सोमपान करने का पूरा अधिकार है। इसके बाद यज्ञ समाप्त हो गया। यज्ञ के बाद देवताओ ने निर्णय लिया कि अमृत की रक्षा कौन करेगा। देवताओ व महश्री ने शक्ति का आहवान किया तो माँ भगवती अष्टभुजी के रूप में प्रकट हुयी देवताओं व महश्री के अनुनय पर भगवती अमृत की रक्षा के लिए तैयार हुयी तथा अमृतकुंड की शिला के रूप में स्थान ले लिया। इसके बाद देवता देव लोक चले गए और महश्री व सुकन्या मथुरा चले गए।


Conclusion:श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर माँ के पास आते है। माँ उनकी मनोकामना पूर्ण करती है। मनोकामना पूर्ण हो जाने पर श्रद्धालु मंदिर में घंटी बांधते है।

बाइट- पंडित श्री हरि (पुजारी)
Last Updated : Feb 4, 2019, 5:41 PM IST
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