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न शौचालय न सफाईकर्मी, बदहाली में चल रही सरकारी पाठशाला - सरकारी स्कूलों में सफाई व्यवस्था

यूपी के अलीगढ़ जिले में स्कूलों की हालत खराब है. साफ सफाई की व्यवस्था नहीं होने से छात्र छात्राएं गंदगी के बीच में पढ़ने को मजबूर हैं. ईटीवी भारत की टीम ने कई विद्यालयों का दौरा कर जाना वहां का हाल....

बदहाली में चल रही सरकारी पाठशाला
बदहाली में चल रही सरकारी पाठशाला
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Published : Jan 30, 2021, 2:00 PM IST

अलीगढ़: जिले में सरकारी स्कूलों में सफाई कर्मी नदारद हैं. प्रधानमंत्री स्वच्छता पर जोर देते हैं, लेकिन स्कूलों की दशा अच्छी नहीं है. सरकारी स्कूलों में स्वच्छता कर्मचारी नहीं है. ग्राम पंचायतों में सफाई कर्मी तो तैनात हैं. लेकिन विद्यालय में यदा-कदा ही सफाई करने पहुंचते हैं. वहीं स्कूलों की दशा सुधारने के लिए सरकार हर साल अरबों रुपये खर्च कर रही है. लेकिन स्वच्छता पर खर्च किया जाने वाला फंड न के बराबर है. अलीगढ़ के कुछ स्कूलों में तो शौचालय भी नहीं है, जिससे छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है. वहीं स्कूलों के बाहर गंदगी के ढेर हैं, जिससे छात्रों को बदबू के बीच में विद्यालय में समय बिताना पड़ता है.

बदहाली में चल रही सरकारी पाठशालाओं की ग्राउंड रिपोर्ट
सफाई के लिए कोई फंड नहीं
स्कूलों में स्वच्छता और सफाईकर्मियों को लेकर ईटीवी भारत ने कई विद्यालयों का दौरा किया, जिसमें प्राथमिक बालक पाठशाला संख्या 60 जो कि क्वारसी कृषि फार्म हाउस में नया बनाया गया है. इसकी कक्षाएं पशुपालन विभाग के पोस्टमार्टम कक्ष में चलती है. कमरे के बाहर ही पशुपालन विभाग इलाज के लिए आए पशुओं को बांध देता है. यहां की अध्यापिका से जब बात की तो उन्होंने बताया कि कोई सफाई कर्मी नहीं आता है और न हीं विद्यालय को कोई सफाई के लिए फंड दिया जाता है. उन्होंने बताया कि साफ-सफाई की व्यवस्था अपने स्तर से ही करते हैं.
रसोईयां ही साफ सफाई करती है
वहीं रजा नगर के प्राथमिक विद्यालय के बाहर का नजारा देख सकते हैं. यहां जलभराव और गंदगी का अंबार है. हालांकि विद्यालय के अंदर प्रधानाध्यापिका राफिया निकहत ने साफ सफाई का ध्यान रखा है. क्लासरूम को बेहद खूबसूरत बनाया है. यहां विद्यालय की दीवार भी बच्चों को बहुत कुछ सिखाती है, लेकिन विद्यालय के बाहर निकलने पर छात्रों को गंदगी का सामना करना पड़ता है. हांलाकि प्रधानाध्यापिका राफिया निकहत स्वच्छता पर ज्यादा ध्यान देती हैं. यहां रसोईयां ही साफ सफाई का काम करती है. उन्होंने बताया कि कोई सफाई कर्मी नहीं है. वहीं सफाई के लिए कोई फंड भी नहीं मिलता है. केवल स्वच्छता किट मिलती है. राफिया निकहत भी स्कूल के बाहर की गंदगी से परेशान हैं. कई बार शिकायत कर चुकी हैं लेकिन समाधान नहीं होता.
न शौचालय न बिजली की व्यवस्था
जीवनगढ़ स्थित बालक पाठशाला संख्या 61 का हाल बहुत बुरा है. डेढ़ सौ रुपये किराए की बिल्डिंग में यह विद्यालय चलता है. एक कमरे में 45 छात्र पढ़ने को मजबूर हैं. स्कूल में ना तो शौचालय है और ना ही कोई सफाई कर्मी है. बोर्ड भी नहीं लगा है तो छात्रों को अंधेरे में ही पढ़ना पड़ता है. छात्राओं को शौचालय के लिए घर जाना पड़ता है. छात्रों को ही खुद सफाई करनी पड़ती है. विद्यालय का नाम भी दीवार पर अंकित नहीं है.
कम्पोजिट ग्रांट में 10 प्रतिशत स्वच्छता पर खर्च
हालांकि कुछ सरकारी विद्यालय बेहतर है, लेकिन बहुत से विद्यालयों में अव्यवस्थाएं हैं. उत्तर प्रदेश जूनियर हाई स्कूल पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष मोहम्मद अहमद बताते हैं कि स्कूलों में सफाई कर्मी नहीं है. ग्राम पंचायत में जो सफाई कर्मी है. वही सफाई के लिए आते हैं. लेकिन वह भी कभी कभार सफाई के लिए पहुंचते हैं. रोज सफाई नहीं होती है. मोहम्मद अहमद ने बताया कि स्वच्छता पर सरकार बहुत अधिक खर्चा कर रही है. कम्पोजिट धनराशि सरकारी विद्यालयों को दिया जाता है, जिसका दस प्रतिशत स्वच्छता पर खर्च करने को मिलता है. लेकिन सरकार की कंट्रोलिंग पावर कम है. अधिकारियों पर सरकार का अंकुश नहीं है. इसलिए स्कूल को मिलने वाले पैसे को अधिकारी अपनी मनमानी से यूज करते हैं, जिसके चलते स्कूलों की स्वच्छता नहीं हो पाती है.
विभाग को पता है हकीकत
विद्यालयों को अगर स्वच्छ बनाना है तो जो धनराशि सरकार द्वारा जारी की जा रही है उसका सही इस्तेमाल धरातल पर हो. कुछ स्कूलों में शौचालय नहीं है तो इसकी जिम्मेदारी बेसिक शिक्षा विभाग की है. क्योंकि शिक्षक के माध्यम से इसकी सूचना विभाग को जाती है.
कायाकल्प से दशा सुधार रही है
कई जनपदों में जिलाधिकारी के पद पर रह चुके अलीगढ़ कमिश्नर डॉ गौरव दयाल बताते हैं कि सफाई कर्मी की तैनाती हर पंचायत में होती है. कहीं कम कहीं ज्यादा हो सकते हैं. कमिश्नर डॉ. गौरव दयाल कहते हैं कि जब भी स्कूल खुलेंगे तो दिक्कत नहीं आएगी. सफाई की व्यवस्था कराई जाएगी. उन्होंने बताया कि ऑपरेशन कायाकल्प के संचालन के जरिए स्कूलों की दशा सुधारने का काम किया जा रहा है.

अलीगढ़: जिले में सरकारी स्कूलों में सफाई कर्मी नदारद हैं. प्रधानमंत्री स्वच्छता पर जोर देते हैं, लेकिन स्कूलों की दशा अच्छी नहीं है. सरकारी स्कूलों में स्वच्छता कर्मचारी नहीं है. ग्राम पंचायतों में सफाई कर्मी तो तैनात हैं. लेकिन विद्यालय में यदा-कदा ही सफाई करने पहुंचते हैं. वहीं स्कूलों की दशा सुधारने के लिए सरकार हर साल अरबों रुपये खर्च कर रही है. लेकिन स्वच्छता पर खर्च किया जाने वाला फंड न के बराबर है. अलीगढ़ के कुछ स्कूलों में तो शौचालय भी नहीं है, जिससे छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है. वहीं स्कूलों के बाहर गंदगी के ढेर हैं, जिससे छात्रों को बदबू के बीच में विद्यालय में समय बिताना पड़ता है.

बदहाली में चल रही सरकारी पाठशालाओं की ग्राउंड रिपोर्ट
सफाई के लिए कोई फंड नहीं
स्कूलों में स्वच्छता और सफाईकर्मियों को लेकर ईटीवी भारत ने कई विद्यालयों का दौरा किया, जिसमें प्राथमिक बालक पाठशाला संख्या 60 जो कि क्वारसी कृषि फार्म हाउस में नया बनाया गया है. इसकी कक्षाएं पशुपालन विभाग के पोस्टमार्टम कक्ष में चलती है. कमरे के बाहर ही पशुपालन विभाग इलाज के लिए आए पशुओं को बांध देता है. यहां की अध्यापिका से जब बात की तो उन्होंने बताया कि कोई सफाई कर्मी नहीं आता है और न हीं विद्यालय को कोई सफाई के लिए फंड दिया जाता है. उन्होंने बताया कि साफ-सफाई की व्यवस्था अपने स्तर से ही करते हैं.
रसोईयां ही साफ सफाई करती है
वहीं रजा नगर के प्राथमिक विद्यालय के बाहर का नजारा देख सकते हैं. यहां जलभराव और गंदगी का अंबार है. हालांकि विद्यालय के अंदर प्रधानाध्यापिका राफिया निकहत ने साफ सफाई का ध्यान रखा है. क्लासरूम को बेहद खूबसूरत बनाया है. यहां विद्यालय की दीवार भी बच्चों को बहुत कुछ सिखाती है, लेकिन विद्यालय के बाहर निकलने पर छात्रों को गंदगी का सामना करना पड़ता है. हांलाकि प्रधानाध्यापिका राफिया निकहत स्वच्छता पर ज्यादा ध्यान देती हैं. यहां रसोईयां ही साफ सफाई का काम करती है. उन्होंने बताया कि कोई सफाई कर्मी नहीं है. वहीं सफाई के लिए कोई फंड भी नहीं मिलता है. केवल स्वच्छता किट मिलती है. राफिया निकहत भी स्कूल के बाहर की गंदगी से परेशान हैं. कई बार शिकायत कर चुकी हैं लेकिन समाधान नहीं होता.
न शौचालय न बिजली की व्यवस्था
जीवनगढ़ स्थित बालक पाठशाला संख्या 61 का हाल बहुत बुरा है. डेढ़ सौ रुपये किराए की बिल्डिंग में यह विद्यालय चलता है. एक कमरे में 45 छात्र पढ़ने को मजबूर हैं. स्कूल में ना तो शौचालय है और ना ही कोई सफाई कर्मी है. बोर्ड भी नहीं लगा है तो छात्रों को अंधेरे में ही पढ़ना पड़ता है. छात्राओं को शौचालय के लिए घर जाना पड़ता है. छात्रों को ही खुद सफाई करनी पड़ती है. विद्यालय का नाम भी दीवार पर अंकित नहीं है.
कम्पोजिट ग्रांट में 10 प्रतिशत स्वच्छता पर खर्च
हालांकि कुछ सरकारी विद्यालय बेहतर है, लेकिन बहुत से विद्यालयों में अव्यवस्थाएं हैं. उत्तर प्रदेश जूनियर हाई स्कूल पूर्व माध्यमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष मोहम्मद अहमद बताते हैं कि स्कूलों में सफाई कर्मी नहीं है. ग्राम पंचायत में जो सफाई कर्मी है. वही सफाई के लिए आते हैं. लेकिन वह भी कभी कभार सफाई के लिए पहुंचते हैं. रोज सफाई नहीं होती है. मोहम्मद अहमद ने बताया कि स्वच्छता पर सरकार बहुत अधिक खर्चा कर रही है. कम्पोजिट धनराशि सरकारी विद्यालयों को दिया जाता है, जिसका दस प्रतिशत स्वच्छता पर खर्च करने को मिलता है. लेकिन सरकार की कंट्रोलिंग पावर कम है. अधिकारियों पर सरकार का अंकुश नहीं है. इसलिए स्कूल को मिलने वाले पैसे को अधिकारी अपनी मनमानी से यूज करते हैं, जिसके चलते स्कूलों की स्वच्छता नहीं हो पाती है.
विभाग को पता है हकीकत
विद्यालयों को अगर स्वच्छ बनाना है तो जो धनराशि सरकार द्वारा जारी की जा रही है उसका सही इस्तेमाल धरातल पर हो. कुछ स्कूलों में शौचालय नहीं है तो इसकी जिम्मेदारी बेसिक शिक्षा विभाग की है. क्योंकि शिक्षक के माध्यम से इसकी सूचना विभाग को जाती है.
कायाकल्प से दशा सुधार रही है
कई जनपदों में जिलाधिकारी के पद पर रह चुके अलीगढ़ कमिश्नर डॉ गौरव दयाल बताते हैं कि सफाई कर्मी की तैनाती हर पंचायत में होती है. कहीं कम कहीं ज्यादा हो सकते हैं. कमिश्नर डॉ. गौरव दयाल कहते हैं कि जब भी स्कूल खुलेंगे तो दिक्कत नहीं आएगी. सफाई की व्यवस्था कराई जाएगी. उन्होंने बताया कि ऑपरेशन कायाकल्प के संचालन के जरिए स्कूलों की दशा सुधारने का काम किया जा रहा है.
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