अलीगढ़: हिंदी फिल्म जगत का वो दौर जब 70mm का पर्दा सतरंगी रंगों के बजाय महज काले और सफेद रंगों में लिपटा हुआ था तब एक शख्स ने उस पर्दे को अपनी अमिट अदाकारी से रोशन किया. बैजू वावरा, भाई बहन, हमारी शान, आनंदमठ जैसी फिल्मों को भारत भूषण ने अपने जीवंत अभिनय से नई उचाइयों तक पहुंचाया. जी हां... हम बात कर रहे हैं हिंदी फिल्म जगत के आभूषण फिल्मी बैजू बाबरा की, जिनकी प्रतिमा लगाने की बात अलीगढ़ प्रशासन ने कही थी. मगर आज तक प्रतिमा की तो बात दूर प्रशासन ने इस बाबत उस फाइल को भी देखने की जहमत नहीं उठाई.
भारत भूषण का अलीगढ़ से पुराना नाता रहा है. भारत भूषण का जन्म मेरठ में 14 जून 1920 को हुआ था. भारत भूषण के पिता उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे, लेकिन बचपन से ही उनकी रुचि संगीत में थी. उनकी शुरुआती शिक्षा अलीगढ़ के डीएस इंटर कॉलेज से संपन्न हुई. बचपन में एक बार फिल्म देखने निकले तो पिता ने उनकी पिटाई कर दी. फिल्मों में काम करने के लिए पहले भारत भूषण कोलकाता गए. वहीं 1941 में 'भक्त कबीर' में उन्हें पहला रोल मिला. हालांकि, भारत भूषण गायक बनने का ख्वाब लिए मुंबई नगरी पहुंचे, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला.
1951 तक अभिनेता के रूप में उनकी खास पहचान नहीं बन पाई थी. इस दौरान उन्होंने भाईचारा, उधार, भाई बहन, हमारी शान, आनंदमठ और मां इत्यादि फिल्मों में काम किया. भारत भूषण की अदाकारी का सितारा फिल्म 'बैजू बावरा' से चमका. बैजू बावरा की सफलता से उत्साहित टीम ने एक बार फिर 'श्री चैतन्य महाप्रभु' फिल्म के लिए जुड़ी और इसमें अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. भक्त कबीर, श्री चैतन्य महाप्रभु, कवि कालिदास, संगीत सम्राट तानसेन आदि फिल्मों में काम किया. वहीं निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फिल्म 'मिर्जा गालिब' में अच्छा किरदार निभाने पर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाया था. भारत भूषण ने लगभग 143 फिल्मों में अपने अभिनय की छटा बिखेरी.
उस समय अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना एक अलग मुकाम बनाया. हालांकि भारत भूषण ने बाद में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म हिट नहीं रही. कभी शिखर पर रहने वाले भारत भूषण की फिल्में फ्लॉप होने लगी. इसके बाद उन्हें काम मिलना बंद हो गया. तब उन्होंने छोटे पर्दे की तरफ रुख किया. वहीं भारत भूषण ने 27 जनवरी 1992 को दुनिया को अलविदा कह दिया.
महान फिल्म अभिनेता स्वर्गीय भारत भूषण मार्ग का लोकार्पण 2011 में अलीगढ़ के महापौर आशुतोष वार्ष्णेय ने किया था. वहीं उनकी एक मूर्ति भी लगाई जानी थी, लेकिन आज तक भारत भूषण की प्रतिमा नहीं लगाई गई. भारत भूषण के परिजन ने बताया कि उनकी मूर्ति लगाने का प्रस्ताव शासन और प्रशासन में लटका हुआ है.