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फिल्मी बैजू बावरा 'भारत भूषण' का कुछ ऐसा था अलीगढ़ से रिश्ता - बैजू बावरा फिल्म

भारत भूषण बैजू बावरा, मिर्जा गालिब जैसी फिल्मों के गीतों से आज तक लोगों के दिलों में जिंदा हैं. उन्होंने अपने पिता से खिलाफत कर एक्टिंग और संगीत की दुनिया में कदम रखा था. वहीं प्रशासन ने अलीगढ़ में भारत भूषण का प्रतिमा लगाने की बात कही थी, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है.

फिल्म अभिनेता भारत भूषण.
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Published : Jun 15, 2019, 2:56 PM IST

अलीगढ़: हिंदी फिल्म जगत का वो दौर जब 70mm का पर्दा सतरंगी रंगों के बजाय महज काले और सफेद रंगों में लिपटा हुआ था तब एक शख्स ने उस पर्दे को अपनी अमिट अदाकारी से रोशन किया. बैजू वावरा, भाई बहन, हमारी शान, आनंदमठ जैसी फिल्मों को भारत भूषण ने अपने जीवंत अभिनय से नई उचाइयों तक पहुंचाया. जी हां... हम बात कर रहे हैं हिंदी फिल्म जगत के आभूषण फिल्मी बैजू बाबरा की, जिनकी प्रतिमा लगाने की बात अलीगढ़ प्रशासन ने कही थी. मगर आज तक प्रतिमा की तो बात दूर प्रशासन ने इस बाबत उस फाइल को भी देखने की जहमत नहीं उठाई.

भारत भूषण का अलीगढ़ से रहा है खास नाता.

भारत भूषण का अलीगढ़ से पुराना नाता रहा है. भारत भूषण का जन्म मेरठ में 14 जून 1920 को हुआ था. भारत भूषण के पिता उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे, लेकिन बचपन से ही उनकी रुचि संगीत में थी. उनकी शुरुआती शिक्षा अलीगढ़ के डीएस इंटर कॉलेज से संपन्न हुई. बचपन में एक बार फिल्म देखने निकले तो पिता ने उनकी पिटाई कर दी. फिल्मों में काम करने के लिए पहले भारत भूषण कोलकाता गए. वहीं 1941 में 'भक्त कबीर' में उन्हें पहला रोल मिला. हालांकि, भारत भूषण गायक बनने का ख्वाब लिए मुंबई नगरी पहुंचे, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला.


1951 तक अभिनेता के रूप में उनकी खास पहचान नहीं बन पाई थी. इस दौरान उन्होंने भाईचारा, उधार, भाई बहन, हमारी शान, आनंदमठ और मां इत्यादि फिल्मों में काम किया. भारत भूषण की अदाकारी का सितारा फिल्म 'बैजू बावरा' से चमका. बैजू बावरा की सफलता से उत्साहित टीम ने एक बार फिर 'श्री चैतन्य महाप्रभु' फिल्म के लिए जुड़ी और इसमें अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. भक्त कबीर, श्री चैतन्य महाप्रभु, कवि कालिदास, संगीत सम्राट तानसेन आदि फिल्मों में काम किया. वहीं निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फिल्म 'मिर्जा गालिब' में अच्छा किरदार निभाने पर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाया था. भारत भूषण ने लगभग 143 फिल्मों में अपने अभिनय की छटा बिखेरी.


उस समय अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना एक अलग मुकाम बनाया. हालांकि भारत भूषण ने बाद में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म हिट नहीं रही. कभी शिखर पर रहने वाले भारत भूषण की फिल्में फ्लॉप होने लगी. इसके बाद उन्हें काम मिलना बंद हो गया. तब उन्होंने छोटे पर्दे की तरफ रुख किया. वहीं भारत भूषण ने 27 जनवरी 1992 को दुनिया को अलविदा कह दिया.


महान फिल्म अभिनेता स्वर्गीय भारत भूषण मार्ग का लोकार्पण 2011 में अलीगढ़ के महापौर आशुतोष वार्ष्णेय ने किया था. वहीं उनकी एक मूर्ति भी लगाई जानी थी, लेकिन आज तक भारत भूषण की प्रतिमा नहीं लगाई गई. भारत भूषण के परिजन ने बताया कि उनकी मूर्ति लगाने का प्रस्ताव शासन और प्रशासन में लटका हुआ है.

अलीगढ़: हिंदी फिल्म जगत का वो दौर जब 70mm का पर्दा सतरंगी रंगों के बजाय महज काले और सफेद रंगों में लिपटा हुआ था तब एक शख्स ने उस पर्दे को अपनी अमिट अदाकारी से रोशन किया. बैजू वावरा, भाई बहन, हमारी शान, आनंदमठ जैसी फिल्मों को भारत भूषण ने अपने जीवंत अभिनय से नई उचाइयों तक पहुंचाया. जी हां... हम बात कर रहे हैं हिंदी फिल्म जगत के आभूषण फिल्मी बैजू बाबरा की, जिनकी प्रतिमा लगाने की बात अलीगढ़ प्रशासन ने कही थी. मगर आज तक प्रतिमा की तो बात दूर प्रशासन ने इस बाबत उस फाइल को भी देखने की जहमत नहीं उठाई.

भारत भूषण का अलीगढ़ से रहा है खास नाता.

भारत भूषण का अलीगढ़ से पुराना नाता रहा है. भारत भूषण का जन्म मेरठ में 14 जून 1920 को हुआ था. भारत भूषण के पिता उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे, लेकिन बचपन से ही उनकी रुचि संगीत में थी. उनकी शुरुआती शिक्षा अलीगढ़ के डीएस इंटर कॉलेज से संपन्न हुई. बचपन में एक बार फिल्म देखने निकले तो पिता ने उनकी पिटाई कर दी. फिल्मों में काम करने के लिए पहले भारत भूषण कोलकाता गए. वहीं 1941 में 'भक्त कबीर' में उन्हें पहला रोल मिला. हालांकि, भारत भूषण गायक बनने का ख्वाब लिए मुंबई नगरी पहुंचे, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला.


1951 तक अभिनेता के रूप में उनकी खास पहचान नहीं बन पाई थी. इस दौरान उन्होंने भाईचारा, उधार, भाई बहन, हमारी शान, आनंदमठ और मां इत्यादि फिल्मों में काम किया. भारत भूषण की अदाकारी का सितारा फिल्म 'बैजू बावरा' से चमका. बैजू बावरा की सफलता से उत्साहित टीम ने एक बार फिर 'श्री चैतन्य महाप्रभु' फिल्म के लिए जुड़ी और इसमें अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. भक्त कबीर, श्री चैतन्य महाप्रभु, कवि कालिदास, संगीत सम्राट तानसेन आदि फिल्मों में काम किया. वहीं निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फिल्म 'मिर्जा गालिब' में अच्छा किरदार निभाने पर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाया था. भारत भूषण ने लगभग 143 फिल्मों में अपने अभिनय की छटा बिखेरी.


उस समय अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना एक अलग मुकाम बनाया. हालांकि भारत भूषण ने बाद में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म हिट नहीं रही. कभी शिखर पर रहने वाले भारत भूषण की फिल्में फ्लॉप होने लगी. इसके बाद उन्हें काम मिलना बंद हो गया. तब उन्होंने छोटे पर्दे की तरफ रुख किया. वहीं भारत भूषण ने 27 जनवरी 1992 को दुनिया को अलविदा कह दिया.


महान फिल्म अभिनेता स्वर्गीय भारत भूषण मार्ग का लोकार्पण 2011 में अलीगढ़ के महापौर आशुतोष वार्ष्णेय ने किया था. वहीं उनकी एक मूर्ति भी लगाई जानी थी, लेकिन आज तक भारत भूषण की प्रतिमा नहीं लगाई गई. भारत भूषण के परिजन ने बताया कि उनकी मूर्ति लगाने का प्रस्ताव शासन और प्रशासन में लटका हुआ है.

Intro:अलीगढ़ : महान फिल्म अभिनेता भारत भूषण का अलीगढ़ से पुराना नाता रहा है. भले ही मुंबई में जाकर हिंदी फिल्मों में न भूलने वाली अदाकारी की हो. लेकिन अलीगढ़ में उनके परिवार और प्रशंसक मौजूद है. भारत भूषण का जन्म मेरठ में 14 जून 1920 को हुआ था. जन्म के 2 साल बाद मां का निधन हो गया. तो नाना अलीगढ लेकर दुबे के पड़ाव पर रहने लगे थे. हालांकि भारत भूषण के पिता उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे. लेकिन बचपन से ही भारत भूषण की संगीत में रुचि थी. दुबे का पड़ाव स्थित डी एस इंटर कॉलेज में शुरुआती शिक्षा हुई थी. बचपन में उन्हें फिल्म देखने पर प्रतिबंध था. एक बार फिल्म देखने निकले तो पिता ने पिटाई कर दी थी. फिल्मों में काम करने के लिए पहले भारत भूषण कोलकाता गए .वहीं 1941 में भक्त कबीर में उन्हें पहला रोल मिला. हालांकि भारत भूषण गायक बनने का ख्वाब लिए मुंबई नगरी पहुंचे थे . लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला . सन 1951 तक अभिनेता के रूप में उनकी खास पहचान नहीं बन पाई थी. इस दौरान उन्होंने भाईचारा, सुहागरात, उधार, रंगीला राजस्थान, एक थी लड़की , राम दर्शन, किसी की याद, भाई बहन, आंखें, सागर, हमारी शान, आनंदमठ और मां फिल्मों में काम किया . भारत भूषण की अदाकारी का सितारा क्लासिकल फिल्म बैजू बावरा से चमका. बेहतरीन गीत संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की गोल्डन जुबली कामयाबी के शिखर पर पहुंची थी. बैजू बावरा फिल्म से ही भारत भूषण और फिल्म की नायिका मीना कुमारी को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया. आज भी इस फिल्म के सदाबहार गाने दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं.


Body:ओ दुनिया के रखवाले... मन तडपत हरी दर्शन को आज... तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा जैसी फिल्म के मधुर गीतों की तासीर आज भी बरकरार है. फिल्म के संगीतकार नौशाद और शास्त्रीय गायन के धुरंधर उस्ताद आमिर खान, गीतकार शकील बदायूनी और गायक मोहम्मद रफी सभी मुसलमान थे . और उन्होंने मिलकर भक्ति गीत मन तडपत हरी दर्शन को आज... जैसी उत्कृष्ट रचना का सृजन किया था . बैजू बावरा की सफलता से उत्साहित यही टीम एक बार फिर श्री चैतन्य महाप्रभु फिल्म के लिए जुड़ी और इसमें सशक्त अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. हिस्टोरिकल कैरेक्टर से संबंधित फिल्म में काम करने का सिलसिला भारत भूषण का जारी रहा. भक्त कबीर, श्री चैतन्य महाप्रभु ,मिर्जा गालिब , रानी रूपमती, सोहनी महिवाल, सम्राट चंद्रगुप्त, कवि कालिदास, संगीत सम्राट तानसेन, नवाब सिराजुद्दौला आदि फिल्मों में काम किया. वहीं निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फिल्म मिर्जा गालिब का किरदार असरदार ढंग से निभाया. इस किरदार के सफल अदाकारी के लिए उस समय के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाया था .भारत भूषण ने लगभग 143 फिल्मों में अपने अभिनय की छटा बिखेरी . उस समय अशोक कुमार, दिलीप कुमार , राज कपूर और देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना एक अलग मुकाम बनाया. हालांकि भारत भूषण ने बाद में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा . लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म हिट नहीं रही. फिल्मी दुनिया में कभी शिखर पर रहने वाले भारत भूषण की फिल्में फ्लॉप होने लगी. तो भारत भूषण को फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया. तब उन्होंने छोटे पर्दे की तरफ रुख किया और धारावाहिकों में भी अभिनय किया. हालात की मार और वक्त के सितम से टूट चुके हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के इस अभिनेता ने 27 जनवरी 1992 को दुनिया को अलविदा कह दिया था. 50 और 60 के दशक में भारत भूषण ने मशहूर फिल्म अभिनेत्रियों के साथ काम किया. एक समय मुंबई में उनके पास मकान और गाड़ियों की कमी नहीं थी. लेकिन बाद में कर्ज में डूब गए. बंगला और मोटर कार सब बिक गया. वही उन्होंने लाइब्रेरी भी बनाई थी.


Conclusion:अलीगढ़ में महान फिल्म अभिनेता स्वर्गीय भारत भूषण मार्ग का लोकार्पण 2011 में अलीगढ़ के महापौर आशुतोष वार्ष्णेय ने किया था. वहीं उनकी एक मूर्ति भी लगाई जानी थी .लेकिन आज तक भारत भूषण जी की कोई प्रतिमा नहीं लगाई गई. भारत भूषण जी के नाम से एक सड़क का नाम रखा गया है और वही सिलापट पर भारत भूषण मार्ग लिखा गया है . लेकिन इसी सिलापट के नीचे कूड़े का ढेर लगा है. भारत भूषण के परिजन ने बताया कि उनकी मूर्ति लगाने का प्रस्ताव शासन और प्रशासन में लटका हुआ है. जिस पर अभी तक कोई कवायद नहीं की गई है . भारत भूषण ने अपने अभिनय के रंगों से कालिदास, तानसेन, कबीर दास, और मिर्जा गालिब जैसे चरित्रों को एक नया रूप दिया था. तानसेन संगीत विद्यालय में उनका 99वा जन्म दिवस मनाया गया, इस मौके पर अनिल वर्मा ने उनके गीतों को गुनगुनाया।

बाईट - अभिषेक अग्रवाल, नाती
bite- अनिल वर्मा, संयोजक, स्वर साधना


आलोक सिंह,अलीगढ़
9837830535
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