अलीगढ़: सुर संगीत को समझने और कव्वाली सुनने वाला कोई ऐसा शौकीन नहीं होगा, जो हबीब पेंटर के नाम से वाकिफ न हो. उनकी 'बहुत कठिन है डगर पनघट की' कव्वाली को आज भी बड़े शौक से सुना जाता है. हालांकि उनकी याद में आज कोई आयोजन नहीं किया जाता और न ही उनकी स्मृति में श्रद्धा के दो फूल चढ़ाए जाते हैं. कव्वाली का सिलसिला हबीब पेंटर ने हाजी नन्हे मियां शाह के इशारे पर शुरू किया था. आजादी से पूर्व हबीब पेंटर की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई थी. उस दौरान उनकी कव्वालियों में कौमी एकता और आपसी भाईचारे का रंग नजर आता था. यही कारण था कि भारत-चीन युद्ध के दौरान पूरा देश एकता के सूत्र में बंध गया था. उस नाजुक दौर में अवाम को जगाने और सैनिकों का हौंसला बढ़ाने का बीड़ा कव्वाल हबीब पेंटर ने ही उठाया था.
पेंटर से बने कव्वाल
हबीबुर्रहमान उर्फ हबीब पेंटर का जन्म 19 मार्च 1920 को अलीगढ़ के उस्मान पाड़ा में हुआ था. हबीब अपने शुरुआती दिनों में घरों को पेंट करने का काम किया करते थे. यही कारण था कि उनका नाम हबीब पेंटर पड़ गया. लेकिन नन्हे मियां शाह के संपर्क में आने के बाद उन्होंने कव्वालियां गाने का सिलसिला शुरू कर दिया. वो कव्वालियों के अलावा सूफियाना कलाम भी गाने में माहिर थे. उन्होंने आध्यात्मिक कृष्ण, सत्संग व आध्यात्मिक गीतों को भी सुर दिए.
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पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने दिया था 'बुलबुल-ए-हिन्द' की उपाधि
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का हबीब पेंटर से विशेष लगाव था. उनकी कव्वालियों से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हबीब पेंटर को बुलबुल-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित किया. इनकी कव्वालियां बड़ी प्रसिद्ध थीं. '...बहुत कठिन है डगर पनघट की' और '...नहीं मालूम' जैसी कव्वालियों की उन दिनों धूम थी. महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, डॉक्टर राधाकृष्णन, ज्ञानी जैल सिंह, फखरुद्दीन अली अहमद, चौधरी चरण सिंह, मोरार जी देसाई और बख्शी गुलाम मोहम्मद उन्हें बहुत सम्मान देते थे. एक कार्यक्रम में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बक्शी गुलाम मोहम्मद, राष्ट्रपति डॉक्टर राधाकृष्णन की मौजूदगी में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें 'बुलबुल-ए-हिन्द' के सम्मान से नवाजा था. हबीब पेंटर ने कौमी एकता और भलाई के लिए प्रमुखता से कार्य किए. चीन से युद्ध के दौरान लड़ाकू विमान खरीदने के लिए प्रधानमंत्री फंड में धन दिया. 22 फरवरी 1987 के दिन वो देश प्रेमी फनकार दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कहकर चला गया.
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कव्वाली की विरासत को पौत्र ने संभाला
रेडियो और टेलीविजन के जरिए हबीब पेंटर की आवाज आज भी घरों में गूंजा करती हैं. हबीब पेंटर की कव्वाली की रिकॉर्डिंग एचएमवी की कैसेट में भी खूब गूंजी. हबीब पेंटर के चार बेटे अनीस पेंटर, राजू पेंटर, गुड्डू पेंटर, शाहनवाज पेंटर थे. अनीस पेंटर ने उनकी विरासत को संभाला और प्रसिद्धि पाई. वहीं अनीस की मृत्यु के बाद अब हबीब की विरासत को उनके दो पौत्र संभाल रहे हैं. हबीब के बाद उनके बेटे अनीस पेंटर और नाती गुलाम हबीब उनकी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और कव्वाली के क्षेत्र में नाम रौशन कर रहे हैं.
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हबीब पेंटर की स्मृति में बने पार्क और रोड का नाम
अलीगढ़ के उस्माना पाड़ा में हबीब पेंटर के नाम पर सड़क का नाम रखा गया है. वहीं सिविल लाइन दोदपुर क्षेत्र में 'बुलबुले हिंद' पार्क बनवाया गया है. हबीब पेंटर को भले ही शहर भूल गया. मगर दोदपुर में स्थित 'बुलबुले हिंद' पार्क उनकी याद ताजा कर देता है. गुलजार अहमद बताते हैं कि हबीब पेंटर बहुत सादगी से जीवन जीते थे. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक पहुंच रखने वाले हबीब पेंटर चाय के होटल और चौराहे की चौपाल पर लोगों से मिला करते थे.