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कहानी सुनना और कहना है एक कला: प्रोफेसर समीना खान

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की प्रोफेसर समीना खान ने एक नई पहल की है. उन्होंने एक शोध पत्र तैयार किया है. इसमें उन्होंने कहानी कहने और सुनने की एक नई विधा विकसित की है. उन्होंने कहा कि कहानी सुनना एक कला है. आइए जानते हैं कहानी सुनने की ये कला क्या है...

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Published : Apr 2, 2021, 12:41 AM IST

प्रोफेसर समीना खान ने की पहल
प्रोफेसर समीना खान ने की पहल

अलीगढ़: एएमयू (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) की अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर समीना खान ने एक शोध पत्र तैयार किया है. इसमें उन्होंने कहानी कहने और सुनने की एक नई विधा विकसित की है. वे बताती हैं कि कहानी सुनाना और कहानी बताना एक पारंपरिक तरीका है. इसमें विशिष्ट लहजे, अभिव्यक्ति की शैली, चेहरे के भाव और अभिनय कौशल कहानी के जीवन का निर्माण करते हैं. इससे सामने वाला प्रभावित होता है. कथाकार और सुनने वालों के बीच संबंध बनता है. आज के दौर में कहानी प्रथा कमजोर हो गई है. लेकिन, कहानी कहने की परंपराओं को और मजबूत करने का तरीका समीना खान ने अपने शोध पत्र में तैयार किया है. वे पिछले 36 साल से टीचिंग कर रही हैं. वह विभिन्न क्षेत्रों में आयोजनों के साथ कहानी को कहने की परंपरा को समीना खान कायम रखना चाहती हैं. वह आडियो और वीडियो के माध्यम से भी कहानी कहने की कला को मजबूत कर रही हैं.

कहानी पर तैयार किया शोधपत्र
सबसे सस्ता मनोरंजन

एएमयू में अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर समीना खान ने कहानी कहने की कला पर शोध पत्र तैयार किया है. इस शोधपत्र को उन्होंने राजस्थान के उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत भी किया. उनका यह शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन का हिस्सा भी बनने वाला है. प्रोफेसर समीना खान कहती हैं कि कहानी सुनाना, कहानी कहने का एक पारंपरिक रूप है, जो श्रोताओं को प्रभावित करता है. समीना बताती हैं कि कहानी कहने की परंपरा उत्तर भारत में पहले से थी. लेकिन, देश के बाकी हिस्सों में अरबी और पर्शियन में मौजूद था. दिल्ली, फैजाबाद, रामपुर, लखनऊ, हैदराबाद, कोलकाता, अलीगढ़ में इसकी विरासत समृद्ध है. ये सबसे सस्ता मनोरंजन भी है.

यह भी पढ़ेंः शंघाई रैंकिंग 2020 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को मिला चौथा स्थान

कहानी से भाषा का प्रमोशन

समीना बताती हैं कि कहानी कहना एक कला है. इस कला में भाषा का प्रमोशन भी होता है. समीना किस्सागोई की कला को पाठ्यक्रम में शामिल कराना चाहती हैं, ताकि हमारी वर्तमान पीढ़ी किस्सागोई के जरिए जानकारी हासिल कर सके. सच्चाई को भी जब कहानी बनाकर पेश किया जाता है तो वह दिलचस्प हो जाती है. इन कहानियों का मकसद सरकार की पॉलिसी का जायजा लेना भी होता है. कहानी का मकसद सिर्फ इंटरटेनमेंट नहीं होता, बल्कि सच्चाई को बताना भी होता है. देशभर में बहुत सी कहानियां हैं. पहले इसको सुनाने में पुरुषों का एकाधिकार था, लेकिन अब महिलाएं भी सामने आ रही हैं.


किस्सागोई की परंपरा कमजोर पड़ी

समीना खान बताती हैं कि किस्सागोई की परंपरा मुगलों के समय में अरब और पर्शिया से आई थी. मुगलों के काल में इस को संरक्षण भी मिला. लेकिन जब अंग्रेज आए तो उन्हें लगा कि हमारे सिस्टम की आलोचना हो रही है. अंग्रेजों को डर था कि कहानियों के जरिये हमारा विरोध होगा तो भारत पर शासन नहीं कर पायेंगे. इसलिए अंग्रेजों ने इसे दबाना शुरू कर दिया. समीना के शोध पत्र में जिस शासन काल में कहानीकारों को संरक्षण मिला. इसका भी वर्णन किया गया है.

यह भी पढ़ेंः AMU के प्रोफेसर कयूम हुसैन क्लस्टर यूनिवर्सिटी ऑफ श्रीनगर के कुलपति बने

कहानी जनमानस तैयार करता है

उन्होंने बताया कि किस्सागोई आज भी एक जरिया है. इससे इतिहास को संरक्षित कर सकते हैं और इतिहास को पेश कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि किसी भी दौर की कहानियों को दबाया नहीं जा सकता. आज भी छोटे से बड़ा मुद्दा कहानी के रूप में सामने आता है. निर्भया की दास्तां भी कहानी बनकर लोगों के सामने आई. तभी सरकार को कानून बनाना पड़ा. समाज का एक मानस भी तैयार हुआ. उन्होंने बताया कि कहानी का एक रोल है, जो इतिहास को संरक्षित करती है. इसके साथ ही हुक्मरानों की सच्चाई भी बताई जाती है और जवाबदेही भी तय की जाती है.

कहानी में विचार होता है

उन्होंने बताया कि अब स्टोरी टेलिंग में बहुत बदलाव आया है. अब बहुत दिनों तक चलने वाले किस्से नहीं होते. पांच दिन चलने वाला टेस्ट मैच भी अब 20-20 क्रिकेट मैच पर आ गया है. इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है. अब कहानी का एक्सपोजर जरूरी है. क्योंकि, आज वीडियो माध्यम भी उपलब्ध है. कहानियां 10 से 15 मिनट की हो गई हैं. हालांकि, इसमें वही सब फीचर और वैरायटी होती है. उन्होंने कहा कि कोई भी आर्ट फॉर्म खत्म नहीं होती. वह दूसरे रूप में मर्ज होकर जिंदा रहती है. उन्होंने बताया कि फिल्में भी अपने दौर की कहानियां बताती हैं. अलिफ लैला, लैला मजनू, दुविधा आदि दास्तान के बाद फिल्म बन कर सामने आई. जादू और तिलिस्म से संबंधित कहानियां बच्चों और बड़ों को आकर्षित करती हैं. कहानी अदब का रूप प्रस्तुत करती हैं. इसमें एक विचार होता है. इसमें विरोध करने का वैचारिक तरीका भी है. कलाकारों ने हमेशा कहानी का सहारा लिया है. उन्होंने बताया कि एक अच्छे आर्टिस्ट को बेशर्म होना चाहिए.

अलीगढ़: एएमयू (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) की अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर समीना खान ने एक शोध पत्र तैयार किया है. इसमें उन्होंने कहानी कहने और सुनने की एक नई विधा विकसित की है. वे बताती हैं कि कहानी सुनाना और कहानी बताना एक पारंपरिक तरीका है. इसमें विशिष्ट लहजे, अभिव्यक्ति की शैली, चेहरे के भाव और अभिनय कौशल कहानी के जीवन का निर्माण करते हैं. इससे सामने वाला प्रभावित होता है. कथाकार और सुनने वालों के बीच संबंध बनता है. आज के दौर में कहानी प्रथा कमजोर हो गई है. लेकिन, कहानी कहने की परंपराओं को और मजबूत करने का तरीका समीना खान ने अपने शोध पत्र में तैयार किया है. वे पिछले 36 साल से टीचिंग कर रही हैं. वह विभिन्न क्षेत्रों में आयोजनों के साथ कहानी को कहने की परंपरा को समीना खान कायम रखना चाहती हैं. वह आडियो और वीडियो के माध्यम से भी कहानी कहने की कला को मजबूत कर रही हैं.

कहानी पर तैयार किया शोधपत्र
सबसे सस्ता मनोरंजन

एएमयू में अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर समीना खान ने कहानी कहने की कला पर शोध पत्र तैयार किया है. इस शोधपत्र को उन्होंने राजस्थान के उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत भी किया. उनका यह शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन का हिस्सा भी बनने वाला है. प्रोफेसर समीना खान कहती हैं कि कहानी सुनाना, कहानी कहने का एक पारंपरिक रूप है, जो श्रोताओं को प्रभावित करता है. समीना बताती हैं कि कहानी कहने की परंपरा उत्तर भारत में पहले से थी. लेकिन, देश के बाकी हिस्सों में अरबी और पर्शियन में मौजूद था. दिल्ली, फैजाबाद, रामपुर, लखनऊ, हैदराबाद, कोलकाता, अलीगढ़ में इसकी विरासत समृद्ध है. ये सबसे सस्ता मनोरंजन भी है.

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कहानी से भाषा का प्रमोशन

समीना बताती हैं कि कहानी कहना एक कला है. इस कला में भाषा का प्रमोशन भी होता है. समीना किस्सागोई की कला को पाठ्यक्रम में शामिल कराना चाहती हैं, ताकि हमारी वर्तमान पीढ़ी किस्सागोई के जरिए जानकारी हासिल कर सके. सच्चाई को भी जब कहानी बनाकर पेश किया जाता है तो वह दिलचस्प हो जाती है. इन कहानियों का मकसद सरकार की पॉलिसी का जायजा लेना भी होता है. कहानी का मकसद सिर्फ इंटरटेनमेंट नहीं होता, बल्कि सच्चाई को बताना भी होता है. देशभर में बहुत सी कहानियां हैं. पहले इसको सुनाने में पुरुषों का एकाधिकार था, लेकिन अब महिलाएं भी सामने आ रही हैं.


किस्सागोई की परंपरा कमजोर पड़ी

समीना खान बताती हैं कि किस्सागोई की परंपरा मुगलों के समय में अरब और पर्शिया से आई थी. मुगलों के काल में इस को संरक्षण भी मिला. लेकिन जब अंग्रेज आए तो उन्हें लगा कि हमारे सिस्टम की आलोचना हो रही है. अंग्रेजों को डर था कि कहानियों के जरिये हमारा विरोध होगा तो भारत पर शासन नहीं कर पायेंगे. इसलिए अंग्रेजों ने इसे दबाना शुरू कर दिया. समीना के शोध पत्र में जिस शासन काल में कहानीकारों को संरक्षण मिला. इसका भी वर्णन किया गया है.

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कहानी जनमानस तैयार करता है

उन्होंने बताया कि किस्सागोई आज भी एक जरिया है. इससे इतिहास को संरक्षित कर सकते हैं और इतिहास को पेश कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि किसी भी दौर की कहानियों को दबाया नहीं जा सकता. आज भी छोटे से बड़ा मुद्दा कहानी के रूप में सामने आता है. निर्भया की दास्तां भी कहानी बनकर लोगों के सामने आई. तभी सरकार को कानून बनाना पड़ा. समाज का एक मानस भी तैयार हुआ. उन्होंने बताया कि कहानी का एक रोल है, जो इतिहास को संरक्षित करती है. इसके साथ ही हुक्मरानों की सच्चाई भी बताई जाती है और जवाबदेही भी तय की जाती है.

कहानी में विचार होता है

उन्होंने बताया कि अब स्टोरी टेलिंग में बहुत बदलाव आया है. अब बहुत दिनों तक चलने वाले किस्से नहीं होते. पांच दिन चलने वाला टेस्ट मैच भी अब 20-20 क्रिकेट मैच पर आ गया है. इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है. अब कहानी का एक्सपोजर जरूरी है. क्योंकि, आज वीडियो माध्यम भी उपलब्ध है. कहानियां 10 से 15 मिनट की हो गई हैं. हालांकि, इसमें वही सब फीचर और वैरायटी होती है. उन्होंने कहा कि कोई भी आर्ट फॉर्म खत्म नहीं होती. वह दूसरे रूप में मर्ज होकर जिंदा रहती है. उन्होंने बताया कि फिल्में भी अपने दौर की कहानियां बताती हैं. अलिफ लैला, लैला मजनू, दुविधा आदि दास्तान के बाद फिल्म बन कर सामने आई. जादू और तिलिस्म से संबंधित कहानियां बच्चों और बड़ों को आकर्षित करती हैं. कहानी अदब का रूप प्रस्तुत करती हैं. इसमें एक विचार होता है. इसमें विरोध करने का वैचारिक तरीका भी है. कलाकारों ने हमेशा कहानी का सहारा लिया है. उन्होंने बताया कि एक अच्छे आर्टिस्ट को बेशर्म होना चाहिए.

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