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AMU के 100 साल: शोध और शिक्षा में मील का पत्थर साबित हो रहा विश्वविद्यालय - सर सैयद अहमद खां

अलीगढ़ में सन 1877 में सर सैयद अहमद खां ने मदरसे से मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की आधारशिला रखी थी. उसके बाद आज से 100 साल पहले एक दिसंबर 1920 को ब्रितानी हुकूमत ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया था.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
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Published : Dec 1, 2020, 12:18 PM IST

अलीगढ़ : एक दिसंबर 1920 को आज से 100 साल पहले मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला था. सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में एक मदरसा बनाकर आधुनिक शिक्षा की नींव रखी थी. सन 1857 की क्रांति के बाद एक महत्वपूर्ण समय सन 1875 था, जब सर सैयद अहमद खां ने भारत के शैक्षिक और सामाजिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. सन 1877 में मदरसे से मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की आधारशिला रखी थी. वहीं एमएओ कॉलेज को ब्रितानी हुकूमत में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के द्वारा 1920 में केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया.

AMU के 100 साल.

1920 में मिला था विश्वविद्यालय का दर्जा
1920 में विश्वविद्यालय का जब दर्जा मिला, उस वक्त मुसलमानों ने इसके लिए 35 लाख रुपए जमा किए थे. सन 1981 में संसद में एक एक्ट मंजूर हुआ था, जिसके आधार पर यह व्यवस्था की गई थी कि एएमयू को संवैधानिक तौर पर अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिल गया है. वहीं 2004 में भी मनमोहन सिंह की सरकार की ओर से एक पत्र में कहा गया कि यह अल्पसंख्यक संस्थान है. इसलिए वह अपनी दाखिला नीति में परिवर्तन कर सकता है. लेकिन सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गई और अदालत ने अल्पसंख्यक दर्जे को गैर संवैधानिक करार दे दिया. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. वही नरेंद्र मोदी सरकार ने भी अदालत में बयान दाखिल किया, जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानती है.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

100 साल पूरा होने पर मना रहे उपलब्धियों का जश्न

आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 130 डिपार्टमेंट हैं. 350 से अधिक कोर्स हैं. छात्रों की संख्या करीब 30,000 है. 80 हॉस्टल, 1400 स्टाफ, करीब 6000 टीचिंग स्टाफ कार्यरत हैं. इसके साथ ही हर साल 500 विदेशी स्टूडेंट एएमयू में एडमिशन लेते हैं. यूनिवर्सिटी ने बहुत तरक्की की है. इसमें पढ़े हुए छात्र पूरी दुनिया में फैले हुए हैं. यहां के पढ़े हुए छात्र राष्ट्रपति बने, उपराष्ट्रपति भी बने. राज्यपाल व मुख्यमंत्री भी बने. भारत रत्न से नवाजे गए. पद्म विभूषण, पद्म भूषण, व पद्मश्री, ज्ञानपीठ पुरस्कार, सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के जज भी रहे. यहीं के पढ़े हुए डॉक्टर जाकिर हुसैन और खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न मिल चुका है. विश्वविद्यालय बनने के 100 वर्ष पूरे होने पर कैंपस में जश्न का माहौल है. विश्वविद्यालय की बिल्डिंगों को रोशनी से सजाया गया है. 100 साल पूरे होने की यादगार में सैंटनरी गेट बनाया गया है. हालांकि कोरोना वायरस के चलते छात्रों की संख्या कम है. 100 साल पूरे होने पर दुनिया भर में वेबीनार का आयोजन किया जा रहा है.

सर सैयद अहमद खां
सर सैयद अहमद खां

टाइन कैप्सूल में एएमयू का डाला जाएगा इतिहास

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की नींव रखने के वक्त सर सैयद अहमद खान ने जमीन के अंदर एक कैप्सूल भी डाला था. जनसंपर्क विभाग के राहत अबरार बताते हैं कि टाइम शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था. लेकिन 8 फरवरी 1877 में जब फाउंडेशन स्टोन रखा गया था, उस समय 4 टन के लोहे के बक्से में डॉक्यूमेंट और कुछ सामग्री जमीन के अंदर रखी गई थी. उन्होंने बताया कि कर्नल ग्राहम ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है और उससे संबंधित दस्तावेज भी मिले हैं, जिसकी पुष्टि जनसंपर्क विभाग के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार ने की है. सन 1877 में वायसराय लॉर्ड लिटन के समय में यह फाउंडेशन स्टोन डाला गया था. राहत अबरार बताते हैं कि सर सैयद अहमद खान की मौजूदगी में यह काम हुआ था और उन्होंने बताया कि अभी कोशिश होगी कि जो कैप्सूल स्ट्रेची हॉल में सर सैयद अहमद खान ने डलवाया था, उसको निकाला जाए, जिसके आधार पर बहुत सी बातें पता चलेंगी. वहीं राहत अबरार ने बताया कि सौ साल पूरे होने पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक डॉक्यूमेंट तैयार किया है, जो सौ साल की तरक्की का है. उसको टाइम कैप्सूल में फिट करके विक्टोरिया गेट के सामने जमीन के अंदर डाला गया.

एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरुप को लेकर उठे सवाल

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं. 1920 में ब्रिटेन सरकार की सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में एक्ट के जरिए इसे विश्वविद्यालय की मान्यता दी गई थी. हालांकि 1920 से लेकर 1965 तक कोई दिक्कत नहीं रही. सन 1965 से 1972 के दौरान तत्कालीन सरकारों ने इस पर पाबंदियां लगाई. हालांकि 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार ने इसको बहाल किया. उस समय जनसंघ के नेता अटल बिहारी बाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी ने भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक चरित्र व इसकी ऐतिहासिकता का समर्थन किया था. विश्वविद्यालय के सौ साल पूरे होने के बाद भी अल्पसंख्यक चरित्र का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ा है. कई बार इस विश्वविद्यालय से मुस्लिम शब्द हटाने को लेकर भी विवाद उठें. विश्वविद्यालय का नाम अलीगढ़ यूनिवर्सिटी रखने की मांग उठी. लेकिन इसे ज्यादा तबज्जो नहीं मिली.

सुप्रीम कोर्ट में लंबित है अल्पसंख्य स्वरुप का मामला

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एसटी-एससी व ओबीसी आरक्षण और अल्पसंख्यक स्वरूप को लेकर विवाद उठते रहे हैं. इस पर पीआरओ विभाग के राहत अबरार ने अपनी राय देते हुए कहा कि बुनियादी तौर पर इंस्टिट्यूट को मुसलमानों ने तैयार किया है. हालांकि सर सैयद अहमद खान ने कहा था की तालीम के लिए इसके दरवाजे सभी धर्मों के लिए खुले रहेंगे. उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय के पहले छात्र इगलास के रहने वाले ईश्वरी प्रसाद थे और यहां पहला ग्रेजुएट गैर मुस्लिम था. उन्होंने बताया कि दाखिले के लिए सभी धर्मों के लोगों का यहां स्वागत है. उन्होंने बताया कि 1920 के एक्ट में शर्त थी कि कोर्ट का मेंबर सिर्फ मुसलमान होगा और विश्वविद्यालय का कुलपति भी मुसलमान होगा. उन्होंने बताया कि एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए इस पर कोई कमेंट नहीं कर सकते और विश्वविद्यालय अपना पक्ष कोर्ट में रख रहा है.

अलीगढ़ : एक दिसंबर 1920 को आज से 100 साल पहले मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला था. सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में एक मदरसा बनाकर आधुनिक शिक्षा की नींव रखी थी. सन 1857 की क्रांति के बाद एक महत्वपूर्ण समय सन 1875 था, जब सर सैयद अहमद खां ने भारत के शैक्षिक और सामाजिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. सन 1877 में मदरसे से मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की आधारशिला रखी थी. वहीं एमएओ कॉलेज को ब्रितानी हुकूमत में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के द्वारा 1920 में केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया.

AMU के 100 साल.

1920 में मिला था विश्वविद्यालय का दर्जा
1920 में विश्वविद्यालय का जब दर्जा मिला, उस वक्त मुसलमानों ने इसके लिए 35 लाख रुपए जमा किए थे. सन 1981 में संसद में एक एक्ट मंजूर हुआ था, जिसके आधार पर यह व्यवस्था की गई थी कि एएमयू को संवैधानिक तौर पर अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिल गया है. वहीं 2004 में भी मनमोहन सिंह की सरकार की ओर से एक पत्र में कहा गया कि यह अल्पसंख्यक संस्थान है. इसलिए वह अपनी दाखिला नीति में परिवर्तन कर सकता है. लेकिन सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गई और अदालत ने अल्पसंख्यक दर्जे को गैर संवैधानिक करार दे दिया. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. वही नरेंद्र मोदी सरकार ने भी अदालत में बयान दाखिल किया, जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानती है.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

100 साल पूरा होने पर मना रहे उपलब्धियों का जश्न

आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 130 डिपार्टमेंट हैं. 350 से अधिक कोर्स हैं. छात्रों की संख्या करीब 30,000 है. 80 हॉस्टल, 1400 स्टाफ, करीब 6000 टीचिंग स्टाफ कार्यरत हैं. इसके साथ ही हर साल 500 विदेशी स्टूडेंट एएमयू में एडमिशन लेते हैं. यूनिवर्सिटी ने बहुत तरक्की की है. इसमें पढ़े हुए छात्र पूरी दुनिया में फैले हुए हैं. यहां के पढ़े हुए छात्र राष्ट्रपति बने, उपराष्ट्रपति भी बने. राज्यपाल व मुख्यमंत्री भी बने. भारत रत्न से नवाजे गए. पद्म विभूषण, पद्म भूषण, व पद्मश्री, ज्ञानपीठ पुरस्कार, सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के जज भी रहे. यहीं के पढ़े हुए डॉक्टर जाकिर हुसैन और खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न मिल चुका है. विश्वविद्यालय बनने के 100 वर्ष पूरे होने पर कैंपस में जश्न का माहौल है. विश्वविद्यालय की बिल्डिंगों को रोशनी से सजाया गया है. 100 साल पूरे होने की यादगार में सैंटनरी गेट बनाया गया है. हालांकि कोरोना वायरस के चलते छात्रों की संख्या कम है. 100 साल पूरे होने पर दुनिया भर में वेबीनार का आयोजन किया जा रहा है.

सर सैयद अहमद खां
सर सैयद अहमद खां

टाइन कैप्सूल में एएमयू का डाला जाएगा इतिहास

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की नींव रखने के वक्त सर सैयद अहमद खान ने जमीन के अंदर एक कैप्सूल भी डाला था. जनसंपर्क विभाग के राहत अबरार बताते हैं कि टाइम शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था. लेकिन 8 फरवरी 1877 में जब फाउंडेशन स्टोन रखा गया था, उस समय 4 टन के लोहे के बक्से में डॉक्यूमेंट और कुछ सामग्री जमीन के अंदर रखी गई थी. उन्होंने बताया कि कर्नल ग्राहम ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है और उससे संबंधित दस्तावेज भी मिले हैं, जिसकी पुष्टि जनसंपर्क विभाग के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार ने की है. सन 1877 में वायसराय लॉर्ड लिटन के समय में यह फाउंडेशन स्टोन डाला गया था. राहत अबरार बताते हैं कि सर सैयद अहमद खान की मौजूदगी में यह काम हुआ था और उन्होंने बताया कि अभी कोशिश होगी कि जो कैप्सूल स्ट्रेची हॉल में सर सैयद अहमद खान ने डलवाया था, उसको निकाला जाए, जिसके आधार पर बहुत सी बातें पता चलेंगी. वहीं राहत अबरार ने बताया कि सौ साल पूरे होने पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक डॉक्यूमेंट तैयार किया है, जो सौ साल की तरक्की का है. उसको टाइम कैप्सूल में फिट करके विक्टोरिया गेट के सामने जमीन के अंदर डाला गया.

एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरुप को लेकर उठे सवाल

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं. 1920 में ब्रिटेन सरकार की सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में एक्ट के जरिए इसे विश्वविद्यालय की मान्यता दी गई थी. हालांकि 1920 से लेकर 1965 तक कोई दिक्कत नहीं रही. सन 1965 से 1972 के दौरान तत्कालीन सरकारों ने इस पर पाबंदियां लगाई. हालांकि 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार ने इसको बहाल किया. उस समय जनसंघ के नेता अटल बिहारी बाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी ने भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक चरित्र व इसकी ऐतिहासिकता का समर्थन किया था. विश्वविद्यालय के सौ साल पूरे होने के बाद भी अल्पसंख्यक चरित्र का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ा है. कई बार इस विश्वविद्यालय से मुस्लिम शब्द हटाने को लेकर भी विवाद उठें. विश्वविद्यालय का नाम अलीगढ़ यूनिवर्सिटी रखने की मांग उठी. लेकिन इसे ज्यादा तबज्जो नहीं मिली.

सुप्रीम कोर्ट में लंबित है अल्पसंख्य स्वरुप का मामला

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एसटी-एससी व ओबीसी आरक्षण और अल्पसंख्यक स्वरूप को लेकर विवाद उठते रहे हैं. इस पर पीआरओ विभाग के राहत अबरार ने अपनी राय देते हुए कहा कि बुनियादी तौर पर इंस्टिट्यूट को मुसलमानों ने तैयार किया है. हालांकि सर सैयद अहमद खान ने कहा था की तालीम के लिए इसके दरवाजे सभी धर्मों के लिए खुले रहेंगे. उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय के पहले छात्र इगलास के रहने वाले ईश्वरी प्रसाद थे और यहां पहला ग्रेजुएट गैर मुस्लिम था. उन्होंने बताया कि दाखिले के लिए सभी धर्मों के लोगों का यहां स्वागत है. उन्होंने बताया कि 1920 के एक्ट में शर्त थी कि कोर्ट का मेंबर सिर्फ मुसलमान होगा और विश्वविद्यालय का कुलपति भी मुसलमान होगा. उन्होंने बताया कि एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए इस पर कोई कमेंट नहीं कर सकते और विश्वविद्यालय अपना पक्ष कोर्ट में रख रहा है.

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