अलीगढ़: देशभर में आज जन्माष्टमी की धूम है. आज के दिन लोग मथुरा में जाकर भगवान की जन्मस्थली पर दर्शन पूजन करते हैं. वहीं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढे़ एक ऐसे मौलाना भी थे जो हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा जाकर श्री कृष्ण के दरबार में हाजिरी लगाते थे. हम बात कर रहे हैं मौलाना हसरत मोहानी की. वह मथुरा, बरसाना, नंदगांव बराबर जाया करते थे. उन्होंने श्री कृष्ण पर अवधी और उर्दू में शायरी भी की. मथुरा से उन्हें बड़ा लगाव था. खुद इस्लाम में विश्वास करते हुए दूसरे धर्म का आदर मौलाना हसरत मोहानी करते थे. एक नेता होने के साथ हसरत मोहानी ने साहित्यकार, पत्रकार और देश की आजादी में अहम रोल निभाया था. उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया तो वहीं संविधान निर्माण सभा के सदस्य भी रहे. उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया है.
हसरत मोहानी का जन्म 1 जनवरी 1875 को उन्नाव जिले के मोहान गांव में हुआ था. उस समय अंग्रेजों का शासन था. उनका जीवन देश भक्ति के साथ कृष्ण प्रेम से भी सराबोर था. वह मथुरा के मंदिरों में बैठकर कृष्ण लीला के प्रवचन सुनते थे. मथुरा की गलियों में रह कर श्री कृष्ण भक्ति की रचनाएं भी लिखी. उनका कृष्ण प्रेम इतना गहरा था कि वे अपने साथ बांसुरी भी रखते थे. उनकी कृष्ण भक्ति की झलकियां कविताओं और गजलों में भी मिलती है. वह भगवान श्री कृष्ण को रसूल या पैगंबर मानते थे. उनके शब्दों में कृष्ण प्रेम और सौंदर्य का मानव रूप झलकता था. यहीं बातें उन्हें कृष्ण भक्ति में रंगती थी.
हसरत मोहानी ने देश की आजादी के लिए भी काम किया. वे जेल भी गए और क्रांतिकारियों में देशभक्ति का जज्बा बढ़ाने वाला इंकलाब जिंदाबाद का नारा देश को आजाद कराने के लिये दिया था. 20 साल की उम्र में ही उन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ अपनी पत्रिका 'उर्दू मोअल्ला' में लेख भी प्रकाशित किया. उनकी लिखी एक गजल 'चुपके-चुपके रात दिन, आंसू बहाना याद है'. बहुत मशहूर हुई और प्रख्यात ग़ज़ल गायक गुलाम अली, जगजीत सिंह द्वारा गाई भी गई.
उनके बारे में बताते हुए एएमयू के जनसंपर्क विभाग सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार ने बताया कि हसरत मोहानी हर साल जन्माष्टमी पर मथुरा जाते थे. मथुरा और वृंदावन में होने वाले कार्यक्रमों में भी पहुंचते थे. 'मथुरा नगर है आशिकी का, दम भर्ती है आरजू' जैसी तमाम रचनाएं उनके कृष्ण प्रेम का उदाहरण है. बताया जाता है कि मरने से पहले वह मथुरा आए थे और भगवान कृष्ण के मंदिर के दर्शन किए थे. हसरत मोहानी का निधन 13 मई 1951 को हुआ था.
हसरत मोहनी ने जहां गजल और कविता मथुरा की गलियों में घूम कर लिखी तो वहीं जेल के अंदर भी रचनाएं की. हसरत मोहानी के सियासी गुरु बाल गंगाधर तिलक थे. एएमयू के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार बताते है कि हसरत मोहानी वे शख्स थे जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता की विरासत को संजोया था. उन्होंने भारत विभाजन का विरोध भी किया था.