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Independence Day: नहीं भुलाई जा सकती अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की भूमिका - aligarh muslim university

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों का भी देश की आजादी में अहम योगदान दिया था. एएमयू के कई छात्रों ने गांधी जी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया.

aligarh muslim university
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
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Published : Aug 14, 2020, 10:47 PM IST

अलीगढ़: ताला और तालीम की नगरी अलीगढ़ का देश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका रही है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भी आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में ऐसे छात्र भी पढ़े हैं, जिन्होंने आजादी के आंदोलनों में भाग लिया. गांधी जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे. गांधी जी के आंदोलनों से पहले ही देश की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष किया. एएमयू में ऐसे छात्र भी पढ़ते थे, जो देश की आजादी के लिए जेल भी गए थे.

देश की आजादी में एएमयू के छात्रों ने निभाई थी भूमिका.

जेल गए थे खान अब्दुल गफ्फार खान
खान अब्दुल गफ्फार खान ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था. वह अपने कार्य और निष्ठा के कारण सरहदी गांधी, सीमांत गांधी, बच्चा खान, बादशाह खान आदि नाम से पुकारे जाते थे. वह गांधी जी के पदचिन्हों पर चलकर अहिंसा के माध्यम से देश को आजाद कराने में सार्थक भूमिका निभाई थी. 1920 में उन्होंने खुदाई खिदमतगार नाम के संगठन की भी स्थापना की. इनका ज्यादातर समय जेल में ही बीता था. खान अब्दुल गफ्फार खान भी अलीगढ़ में एएमयू कॉलेज के स्टूडेंट रहे थे.

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सर सैयद अहमद खान.

सर सैयद अहमद खान ने किया संघर्ष
सन् 1857 से देश की आजादी के लिए आंदोलन शुरू हो गया था और 1947 में आजादी मिलने तक लोग संघर्ष करते रहे. एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान पर 1857 की क्रांति का बहुत गहरा असर पड़ा था. इस संबंध में उनकी तीन किताबें भी मिलती है. पहली किताब 'असबाबे बगावते हिन्द' है. जिस में बगावत के कारणों पर प्रकाश डाला गया है. दूसरी किताब 'द काजेज आफ इंडियन रिवोल्ट' और तीसरी किताब 'लॉयल मोहम्मडन ऑफ हिंदुस्तान' है.

सर सैयद अहमद खान ने भी स्वतंत्रता के आंदोलनों में हिस्सा लिया. उनको यह एहसास हो गया था कि अंग्रेज हम पर जुर्म कर रहे हैं. भारतीय इसे ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं करेंगे. सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेजों के जुल्म और ज्यादती के शिकार लोगों के बारे में लिखा है. उन्होंने यह भी वर्णन किया है कि एक वक्त ऐसा आएगा जब हिंदुस्तान के लोग खुद अपना कानून और अपनी हुकूमत बनाएंगे. सर सैयद अहमद खान ने मोहम्मद एंग्लो ऑरियन्टल कॉलेज की स्थापना की. यह बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना. एएमयू की स्थापना ऐसे ही नहीं हो गई. इसके लिए जो संघर्ष, त्याग उन्होने किया वह इतिहास में एक मिसाल है. अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलेगा कि सर सैयद ने केवल एक शैक्षिक संस्थान की स्थापना ही नहीं की, बल्कि एक आंदोलन शुरू किया. इस कॉलेज में जो प्रिंसिपल और टीचर थे, वह अधिकतर अंग्रेज हुआ करते थे. लेकिन यहां छात्रों में देश को आजाद कराने का जज्बा था.

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हसरत मोहानी.

'एएमयू के कई छात्र शामिल'
एएमयू के छात्रों ने गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन में भाग लिया था. एएमयू में पढ़े प्रमुख क्रांतिकारियों में मौलाना मोहम्मद अली, मौलाना शौकत अली, हसरत मोहानी, राजा महेंद्र प्रताप, जाकिर हुसैन, रफी अहमद किदवई, सैफुद्दीन किचलू, शेख मुहम्मद अब्दुला बड़े क्रांतिकारी रहे. गांधी जी के स्वाधीनता आंदोलन से पहले और बाद में भी आजादी के लिए बिगुल फूंक दिया था.

सन् 1906 की एक घटना का जिक्र करते हुए एएमयू के जनसंपर्क विभाग के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार बताते हैं कि अलीगढ़ में नुमाइश के दौरान एएमयू के छात्रों को अंग्रेज पुलिस ने पीट दिया. इसकी शिकायत जब अंग्रेज मजिस्ट्रेट से की गई. तो कोई सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद एएमयू के छात्रों ने अंग्रेजों के खिलाफ मूवमेंट चलाया था.

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राजा महेंद्र प्रताप सिंह.

'विदेशी कपड़ों को जलाया'
सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार ने बताया कि हसरत मोहानी भी एएमयू में पढ़ें और उस दौरान उन्होंने गांधीजी के पद चिन्हों पर चलकर खादी भंडार खोला. विदेशी वस्त्रों की होली जलाई. हसरत मोहानी ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तीन बार आजादी के महानायक एएमयू आए. राजा महेंद्र प्रताप सिंह भी देश की आजादी के लिए संघर्ष किया और काबुल में जाकर के अपदस्थ सरकार बनाई, जिसमें बरकत उल्ला भोपाली को प्रधानमंत्री बनाया और खुद प्रेसीडेंट बने.

independence day
एएयमू आए थे गांधी जी.

एएमयू के पीआरओ आफिस में सहायक मेंबर इंचार्च राहत अबरार कहते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी कई क्रांतिकारी लोगों ने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया. गांधी जी के आंदोलन को आगे बढ़ाने में योगदान दिया. देश आजादी का 74 वां जश्न मना रहा है. उसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़े लोगों का भी संघर्ष शामिल है.

अलीगढ़: ताला और तालीम की नगरी अलीगढ़ का देश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका रही है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भी आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में ऐसे छात्र भी पढ़े हैं, जिन्होंने आजादी के आंदोलनों में भाग लिया. गांधी जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे. गांधी जी के आंदोलनों से पहले ही देश की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष किया. एएमयू में ऐसे छात्र भी पढ़ते थे, जो देश की आजादी के लिए जेल भी गए थे.

देश की आजादी में एएमयू के छात्रों ने निभाई थी भूमिका.

जेल गए थे खान अब्दुल गफ्फार खान
खान अब्दुल गफ्फार खान ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था. वह अपने कार्य और निष्ठा के कारण सरहदी गांधी, सीमांत गांधी, बच्चा खान, बादशाह खान आदि नाम से पुकारे जाते थे. वह गांधी जी के पदचिन्हों पर चलकर अहिंसा के माध्यम से देश को आजाद कराने में सार्थक भूमिका निभाई थी. 1920 में उन्होंने खुदाई खिदमतगार नाम के संगठन की भी स्थापना की. इनका ज्यादातर समय जेल में ही बीता था. खान अब्दुल गफ्फार खान भी अलीगढ़ में एएमयू कॉलेज के स्टूडेंट रहे थे.

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सर सैयद अहमद खान.

सर सैयद अहमद खान ने किया संघर्ष
सन् 1857 से देश की आजादी के लिए आंदोलन शुरू हो गया था और 1947 में आजादी मिलने तक लोग संघर्ष करते रहे. एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान पर 1857 की क्रांति का बहुत गहरा असर पड़ा था. इस संबंध में उनकी तीन किताबें भी मिलती है. पहली किताब 'असबाबे बगावते हिन्द' है. जिस में बगावत के कारणों पर प्रकाश डाला गया है. दूसरी किताब 'द काजेज आफ इंडियन रिवोल्ट' और तीसरी किताब 'लॉयल मोहम्मडन ऑफ हिंदुस्तान' है.

सर सैयद अहमद खान ने भी स्वतंत्रता के आंदोलनों में हिस्सा लिया. उनको यह एहसास हो गया था कि अंग्रेज हम पर जुर्म कर रहे हैं. भारतीय इसे ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं करेंगे. सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेजों के जुल्म और ज्यादती के शिकार लोगों के बारे में लिखा है. उन्होंने यह भी वर्णन किया है कि एक वक्त ऐसा आएगा जब हिंदुस्तान के लोग खुद अपना कानून और अपनी हुकूमत बनाएंगे. सर सैयद अहमद खान ने मोहम्मद एंग्लो ऑरियन्टल कॉलेज की स्थापना की. यह बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना. एएमयू की स्थापना ऐसे ही नहीं हो गई. इसके लिए जो संघर्ष, त्याग उन्होने किया वह इतिहास में एक मिसाल है. अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलेगा कि सर सैयद ने केवल एक शैक्षिक संस्थान की स्थापना ही नहीं की, बल्कि एक आंदोलन शुरू किया. इस कॉलेज में जो प्रिंसिपल और टीचर थे, वह अधिकतर अंग्रेज हुआ करते थे. लेकिन यहां छात्रों में देश को आजाद कराने का जज्बा था.

aligarh muslim university
हसरत मोहानी.

'एएमयू के कई छात्र शामिल'
एएमयू के छात्रों ने गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन में भाग लिया था. एएमयू में पढ़े प्रमुख क्रांतिकारियों में मौलाना मोहम्मद अली, मौलाना शौकत अली, हसरत मोहानी, राजा महेंद्र प्रताप, जाकिर हुसैन, रफी अहमद किदवई, सैफुद्दीन किचलू, शेख मुहम्मद अब्दुला बड़े क्रांतिकारी रहे. गांधी जी के स्वाधीनता आंदोलन से पहले और बाद में भी आजादी के लिए बिगुल फूंक दिया था.

सन् 1906 की एक घटना का जिक्र करते हुए एएमयू के जनसंपर्क विभाग के सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार बताते हैं कि अलीगढ़ में नुमाइश के दौरान एएमयू के छात्रों को अंग्रेज पुलिस ने पीट दिया. इसकी शिकायत जब अंग्रेज मजिस्ट्रेट से की गई. तो कोई सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद एएमयू के छात्रों ने अंग्रेजों के खिलाफ मूवमेंट चलाया था.

aligarh muslim university
राजा महेंद्र प्रताप सिंह.

'विदेशी कपड़ों को जलाया'
सहायक मेंबर इंचार्ज राहत अबरार ने बताया कि हसरत मोहानी भी एएमयू में पढ़ें और उस दौरान उन्होंने गांधीजी के पद चिन्हों पर चलकर खादी भंडार खोला. विदेशी वस्त्रों की होली जलाई. हसरत मोहानी ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तीन बार आजादी के महानायक एएमयू आए. राजा महेंद्र प्रताप सिंह भी देश की आजादी के लिए संघर्ष किया और काबुल में जाकर के अपदस्थ सरकार बनाई, जिसमें बरकत उल्ला भोपाली को प्रधानमंत्री बनाया और खुद प्रेसीडेंट बने.

independence day
एएयमू आए थे गांधी जी.

एएमयू के पीआरओ आफिस में सहायक मेंबर इंचार्च राहत अबरार कहते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी कई क्रांतिकारी लोगों ने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया. गांधी जी के आंदोलन को आगे बढ़ाने में योगदान दिया. देश आजादी का 74 वां जश्न मना रहा है. उसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़े लोगों का भी संघर्ष शामिल है.

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