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कारीगर बना रहे इको फ्रेंडली गणेश मूर्ति, मिट्टी के साथ मूर्ति में मिला रहे पांच तरह की दाल और गेहूं-चावल

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 18, 2023, 9:15 PM IST

अलीगढ़ में गणेश चतुर्थी को देखते हुए इको फ्रेंडली मूर्तियां (eco friendly Ganesh idol) तैयार की जा रही है. कारीगरों ने मूर्तियों में अनाज मिलाया है, ताकि विसर्जन के बाद अनाज को मछलियां खा सके. क्योंकि पीओपी की मूर्तियां जलचर और नदियों के लिए बेहद खतरनाक है.

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कारीगर बना रहे है इको फ्रेंडली गणेश मूर्ति, लाडो और बुजुर्ग कारीगर छोटेलाल ने दी जानकारी

अलीगढ़: जिले में गणेश चतुर्थी को देखते हुए इको फ्रेडली मूर्ति तैयार हो रही है. मूर्तियों को बनाने में लगने वाली मिट्टी दाल, चावल, गेहूं भी मिलाया गया है, जिससे नदी में विसर्जन के बाद मिट्टी बह जाए. वहीं, दाल, चावल, गेहूं मछलियों के लिए काम आएं. समाजसेवी सुरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि गणेश की मूर्ति कोई शोपीस या खिलौना नहीं है, पूरे मार्केट में पीओपी की मूर्तियां सजी हुई हैं. राजस्थानी लोग यहां आकर पीओपी की मूर्तियां बनाते हैं. उन्होंने पांच साल से लोगों में जन जागृति अभियान चलाया हुआ है, क्योंकि पीओपी की मूर्तियों में केमिकल होता है. केमिकल से बनी मूर्तियां गलती नहीं है. लेकिन, हिंदुत्व परंपरा के अनुसार हम काम करते हैं.


मूर्तियों में मिलाया जाता है अनाज: सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि हिंदुत्व परंपरा के अनुसार हम मूर्तियां बनवा रहे हैं. मिट्टी से तैयार की गई इन मूर्तियों में अनाज मिलाया जाता हैं. विसर्जन के दौरान मिट्टी गल जाती है. दाल और अनाज जलचरों का भोजन बन जाता है. इससे एक फायदा तो यह होगा कि जन जागृति आएगी और पुरानी परंपरा पर वापस आएंगी. जितने भी ज्यादा जलचर नदी में होते हैं. उतनी ही ज्यादा ऑक्सीजन होती है. पुराने समय में जितनी भी मिट्टी की मूर्तियां रखी जाती थी. उन सब के साथ अनाज रखने की परंपरा होती थी. यह परंपरा इसलिए बनाई गई थी कि हमारे जितने भी जल स्रोत है वह जीवित रहें. नदियां, तालाब मूर्ति विसर्जन करने के काम में आया करती थी, हम पुरानी परंपरा को जीवित कर लोगों को जागरुक कर रहे हैं.

इको फ्रेंडली होती है मूर्ति: कारीगर लाडो ने बताया कि इको फ्रेंडली मूर्ति बना रहे हैं. यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं. इन मूर्तियों में पांच तरीके की दाल, गेहूं, चावल डाले हैं. जो पीओपी की मूर्तियां हैं, उनसे पर्यावरण को नुकसान होता है. मिट्टी की मूर्ति पानी में गल जाती है और पीओपी नहीं गल पाती है. इससे गंगा नदी में जलचर मर जाते हैं. इन मूर्तियों से यह फायदा होता है कि मिट्टी गल जाती है और अनाज को जलचर खा लेते हैं.

इसे भी पढ़े-संकष्टी गणेश चतुर्थी का पर्व आज, जानिए व्रत की कथा, विधि और पूजा करने का शुभ मुहुर्त

बुजुर्ग कारीगर छोटेलाल ने बताया कि हम गणेश जी की मूर्ति बचपन से बनाते हैं. इन मूर्तियों में हम दाल, चावल मिलाते हैं. यह मूर्तियां गंगा में जब विसर्जन होती है तो मिट्टी बह जाती है और दाल मछलियों के काम आ जाती है. जल में जो जानवर हैं वह चावल, दाल खा जाते हैं. हम इको फ्रेंडली गणेश बनाकर बेचते हैं. इस तरह की मूर्तियां लंबे अरसे से बनाते आ रहे हैं. दिवाली के साथ-साथ अन्य त्योहारों के लिए भी मूर्तियां बनाते हैं. अब गणेश चतुर्थी को देखते हुए गणेश की मूर्तियां तैयार कर रहे हैं. इन मूर्तियों को बनाने के लिए हमारा पूरा परिवार लगा रहता है.

नदियों को जीवंत करने के लिए हमारी यह सनातन परंपरा है. मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करना उनका विसर्जन करना इसी परंपरा को हम आगे बढ़ाते हुए जन जागृति ला रहे हैं, ताकि लोग नदियों में पीओपी की मूर्ति न विसर्जित करें. पीओपी की मूर्तियां नदियों में विसर्जित करने से नदियां प्रदूषित होती है. क्योंकि पीओपी की मूर्तियों में केमिकल वाले रंग होते हैं. केमिकल वाले रंग से नदियों की सतह खराब हो जाती है जिससे मछलियां मर जाती हैं.

यह भी पढ़े-यहां गणेश जी का धड़कता है दिल, लेते हैं सांस और खाते मोदक, ये देखकर सब हैरान

कारीगर बना रहे है इको फ्रेंडली गणेश मूर्ति, लाडो और बुजुर्ग कारीगर छोटेलाल ने दी जानकारी

अलीगढ़: जिले में गणेश चतुर्थी को देखते हुए इको फ्रेडली मूर्ति तैयार हो रही है. मूर्तियों को बनाने में लगने वाली मिट्टी दाल, चावल, गेहूं भी मिलाया गया है, जिससे नदी में विसर्जन के बाद मिट्टी बह जाए. वहीं, दाल, चावल, गेहूं मछलियों के लिए काम आएं. समाजसेवी सुरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि गणेश की मूर्ति कोई शोपीस या खिलौना नहीं है, पूरे मार्केट में पीओपी की मूर्तियां सजी हुई हैं. राजस्थानी लोग यहां आकर पीओपी की मूर्तियां बनाते हैं. उन्होंने पांच साल से लोगों में जन जागृति अभियान चलाया हुआ है, क्योंकि पीओपी की मूर्तियों में केमिकल होता है. केमिकल से बनी मूर्तियां गलती नहीं है. लेकिन, हिंदुत्व परंपरा के अनुसार हम काम करते हैं.


मूर्तियों में मिलाया जाता है अनाज: सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि हिंदुत्व परंपरा के अनुसार हम मूर्तियां बनवा रहे हैं. मिट्टी से तैयार की गई इन मूर्तियों में अनाज मिलाया जाता हैं. विसर्जन के दौरान मिट्टी गल जाती है. दाल और अनाज जलचरों का भोजन बन जाता है. इससे एक फायदा तो यह होगा कि जन जागृति आएगी और पुरानी परंपरा पर वापस आएंगी. जितने भी ज्यादा जलचर नदी में होते हैं. उतनी ही ज्यादा ऑक्सीजन होती है. पुराने समय में जितनी भी मिट्टी की मूर्तियां रखी जाती थी. उन सब के साथ अनाज रखने की परंपरा होती थी. यह परंपरा इसलिए बनाई गई थी कि हमारे जितने भी जल स्रोत है वह जीवित रहें. नदियां, तालाब मूर्ति विसर्जन करने के काम में आया करती थी, हम पुरानी परंपरा को जीवित कर लोगों को जागरुक कर रहे हैं.

इको फ्रेंडली होती है मूर्ति: कारीगर लाडो ने बताया कि इको फ्रेंडली मूर्ति बना रहे हैं. यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं. इन मूर्तियों में पांच तरीके की दाल, गेहूं, चावल डाले हैं. जो पीओपी की मूर्तियां हैं, उनसे पर्यावरण को नुकसान होता है. मिट्टी की मूर्ति पानी में गल जाती है और पीओपी नहीं गल पाती है. इससे गंगा नदी में जलचर मर जाते हैं. इन मूर्तियों से यह फायदा होता है कि मिट्टी गल जाती है और अनाज को जलचर खा लेते हैं.

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बुजुर्ग कारीगर छोटेलाल ने बताया कि हम गणेश जी की मूर्ति बचपन से बनाते हैं. इन मूर्तियों में हम दाल, चावल मिलाते हैं. यह मूर्तियां गंगा में जब विसर्जन होती है तो मिट्टी बह जाती है और दाल मछलियों के काम आ जाती है. जल में जो जानवर हैं वह चावल, दाल खा जाते हैं. हम इको फ्रेंडली गणेश बनाकर बेचते हैं. इस तरह की मूर्तियां लंबे अरसे से बनाते आ रहे हैं. दिवाली के साथ-साथ अन्य त्योहारों के लिए भी मूर्तियां बनाते हैं. अब गणेश चतुर्थी को देखते हुए गणेश की मूर्तियां तैयार कर रहे हैं. इन मूर्तियों को बनाने के लिए हमारा पूरा परिवार लगा रहता है.

नदियों को जीवंत करने के लिए हमारी यह सनातन परंपरा है. मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करना उनका विसर्जन करना इसी परंपरा को हम आगे बढ़ाते हुए जन जागृति ला रहे हैं, ताकि लोग नदियों में पीओपी की मूर्ति न विसर्जित करें. पीओपी की मूर्तियां नदियों में विसर्जित करने से नदियां प्रदूषित होती है. क्योंकि पीओपी की मूर्तियों में केमिकल वाले रंग होते हैं. केमिकल वाले रंग से नदियों की सतह खराब हो जाती है जिससे मछलियां मर जाती हैं.

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