आगरा: छावनी बोर्ड में भ्रष्टाचार का अजब गजब मामला सामने आया है. जिस कर्मचारी की 6 साल पहले मौत हो गई, उसका हर साल चिकित्सक परीक्षण करके जिंदा करने की रिपोर्ट बनाते रहे. इसी रिपोर्ट के आधार पर आगरा छावनी परिषद की ओर से 6 साल तक पेंशन का भुगतान होता रहा. मुर्दा के जीवित होने और पेंशन लेने का खेल खुला तो छावनी परिषद में खलबली मच गई.
जानकारी के मुताबिक सुलतानपुरा निवासी सुरेंद्र वीर दुबे सन् 1985 में छावनी परिषद कार्यालय से अकाउंटेंट पद से सेवानिवृत हुए थे. तब उनकी 20400 रुपये पेंशन निर्धारित हुई. आरोप है कि सुरेंद्र वीर दुबे की मृत्यु कई वर्ष पहले हो चुकी है. इसके बावजूद हर माह छावनी परिषद की ओर से उन्हें पेंशन का भुगतान किया गया. जबकि, पेंशनभोगी को हर वर्ष अपना जीवित होने का प्रमाण पत्र देना होता है. इसके बाद ही उसे पेंशन का भुगतान किया जाता है.
6 साल पहले हो चुकी है मौत: छावनी परिषद के मुताबिक, पेंशनभोगी सुरेद्र वीर दुबे की मृत्यु साल 2017 में हो गई थी. लिहाजा अब तक उनके खाते में तकरीबन 10 लाख से अधिक की धनराशि पेंशन के रूप में जमा की जा चुकी है. भ्रष्टाचार में छावनी परिषद कार्यालय के कर्मचारियों की साठगांठ भी उजागर हो रही है. कैसे मृतक को अब तक कागजातों में जिंदा दिखाकर छावनी के सामान्य अस्पताल से हर साल उसका जीवित होने का प्रमाण पत्र भी बनवाते रहे.
पहले यूं किया गया था गबन: छावनी परिषद में गबन का यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी आगरा छावनी परिषद में पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य तरह से भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं. सन् 2021 में छावनी कार्यालय में कार्यरत निजी कर्मचारी ने छावनी के कुछ कर्मचारियों की मदद से कर्मचारियों की ग्रेच्युटी पेंशन समेत अन्य का 11.23 लाख रुपये अपनी साली, सास और अन्य रिश्तेदारों के खाते में जमा करा दिया था.
पेंशन रोककर जांच शुरू हुई: छावनी परिषद के लेखाकार कुलविंदर सिंह ने बताया कि पेंशनभोगी के जीवित प्रमाण पत्र पर ही विभाग से पेंशन जारी होती रही है. अब जब मामला संज्ञान में आया तो तत्काल प्रभाव से पेंशन रोक दी है. इस मामले की जांच की जा रही है.
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