आगराः G20 देशों के प्रतिनिधि आगरा में दो दिन महिला सशक्तीकरण पर मंथन करेंगे. आगरा से देश-दुनिया में महिलाओं की आवाज बुलंद होगी. महिला सशक्तीकरण के लिए आगरा को चुनने की कहानी बेहद दिलचस्प है. गुलाम वंश से लेकर मुगलकाल तक आगरा की राजनीति में महिलाओं का दबदबा रहा. आज से 787 साल पहले गुलाम वंश की रजिया सुल्तान ने दिल्ली की गद्दी संभालकर महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश की थी, तब आगरा गुलाम वंश का हिस्सा था.
इसके बाद मुगल वंश के संस्थापक बाबर की बेटी गुलबदन बेगम ने भाई हुमांयू की जीवनी पर हुमायूंनामा लिखा था, जो बेहद दिलचस्प है. जहांगीर की बेगम नूरजहां ने अपने नाम के सिक्के चलवाए. शाहजहां की बेटी जहांआरा और रोशनआरा की भी राजनीति में खूब दखल थी. जहांआरा उस समय दुनियां की सबसे अमीर शहजादी थी.
भारत की पहली महिला मुस्लिम शासक थी रजिया सुल्तान
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि, गुलाम वंश में कुतुबुददीन ऐबक के बाद दिल्ली का सुल्तान इल्तुतमिश बना था. सुल्तान इल्तुतमिश की बेगम कुतुब की कोख से बदायूं में सन 1205 में रजिया सुल्ताना पैदा हुई थी. उनका पूरा नाम जलाल उद्दीन रजिया था. रजिया सुल्तान भारत की पहली और आखिरी महिला सुल्तान थी. रजिया सुल्तान सबसे सशक्त महिला थी. वह अपने भाई फिरोज को हराकर सन 1236 में दिल्ली की सुल्तान बनी थी. रजिया के सुल्तान बनने का तुर्क मंसबदारों ने विरोध किया. रजिया ने अपने कुशल नेतृत्व से लाहौर, भठिंडा, मुल्तान और बंदायू समेत अन्य मंसबदारों का दमन किया. उसने सन 1240 तक दिल्ली दरबार पर शासन किया था, तब आगरा भी दिल्ली दरबार में आता था.
रजिया को अन्य मुस्लिम राजकुमारियों की तरह सेना का नेतृत्व तथा प्रशासन के कार्यों में अभ्यास कराया गया था. अपने शासन काल में रजिया सुल्ताना को अपने भाइयों और शक्तिशाली तुर्क मसंबदारों के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा था. रजिया सुल्तान और अफ्रीकी गुलाम मंसबदार जलालुद्दीन याकूत की प्रेम कहानी खूब चर्चा में रही थी. दोनों के प्यार के चलते ही विद्रोह हुआ. तुर्क मनसबारों ने याकूत की हत्या कर दी थी. रजिया सुल्ताना ने सत्ता पाने के लिए मलिक अल्तुनिया से निकाह किया था. सत्ता हाथ से जानें पर दोनों जंगल में गए, जहां पर डाकुओं ने रजिया सुल्तान और मलिक अल्तुनिया की हत्या कर दी थी.
भाई की हर मुश्किल में मदद की और लिखा हुमायूंनामा
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि बाबर की बड़ी बेटी गुलबदन बेगम थी. उसका जन्म काबुल अफगानिस्तान में हुआ था. गुलबदन बेगम बेहद प्रतिभाशाली थी. वह अपने सौतेले भाई मुगल बादशाह हिमायूं की बेहद करीबी और मददगार थी. गुलबदन बेगम इतिहासकार थी. उसने हिमायूं के जीवन पर हुमायूंनामा किताब लिखी थी, जो बेहद चर्चित है. हुमायूं जब शेरशाह से हारकर अफगानिस्तान होकर ईरान भागा, तो गुलबदन बेगम ने हुमांयू की मदद की थी. हुमायूं के ज्यादातर निर्णय गुलबदन बेगम से प्रभावित रहते थे. गुलबदन बेगम का दबदबा बादशाह अकबर के समय में भी था.
अकबर के समय पर गुलबदन बेगम सन 1575 में हज करने गई थी. वह तीन साल बाद हज से लौटी थी. अकबर के समय पर भारत से हज करने मक्का मदीना जाने वाली पहली मुस्लिम महिला थी. जब जहांगीर सलीम ने अकबर के खिलाफ इलाहाबाद में विद्रोह किया, तो गुलबदन बेगम को जहांगीर के पास भेजा था. इससे ही अकबर और जहांगीर में सुलह हुई थी.
नूरजहां ने चलाए थे अपने नाम के सिक्के
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि मिर्जा गियास बेग और अस्मत बेगम के यहां 31 मई 1577 को मेहरुन्निसा का जन्म हुआ था. 17 साल की उम्र में मेहरुन्निसा का विवाह ईरानी शेर अफगान से हो गया. सन 1607 में जहांगीर ने शेर अफगान की हत्या कर दी. मेहरुन्निसा को वहां दिल्ली आ गईं. इसके बाद में उसे शाही हरम में बादशाह अकबर की विधवा रानी रुकैया बेगम की परिचारिका बना दिया. मेहरुन्निसा से जहांगीर ने सन 1611 में निकाह किया. निकाह के बाद जहांगीर ने उसे नूरमहल उर्फ नूरजहां की उपाधि प्रदान दी. सन 1613 में जहांगीर ने नूरजहां को बादशाह बेगम बनाया था.
जहांगीर के शासनकाल में नूरजहां की बेहद दखल थी. मंसबादर भी उसके यहां पर हाजिरी देते थे. वह मुगलिया सल्तनत चलाती थी. इसलिए उसके नाम से सिक्के भी चले. जब बेटा शाहजहां ने विद्रोह किया, तो नूरजहां ने मंसबदार महावत खां को भेजकर उसका विद्रोह दबाया था. सन 1626 में जब जहांगीर को झेलम नदी के किनारे मंसबदार महावत खां ने कैद कर लिया था, तो उसने मुक्त कराया था. जहांगीर की मौत के बाद शाहजहां बादशाह बना तो उसने नूरजहां को दो लाख रुपये पेंशन दी. वो लाहौर चली गई. सन 1645 में नूरजहां की मौत हो गई थी. वहीं, पर उसका मकबरा है.
दुनियां की सबसे अमीर शहजादी थी जहांआरा
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि मुगल शहंशाह शाहजहां और उसकी बेगम मुमताज की सबसे बडी बेटी जहांआरा थी. जहांआरा का जन्म दो अप्रैल सन् 1614 को हुआ था. मुमताज की मौत के बाद शाहजहां की सबसे खास उसकी बेटी जहांआरा थी. उसे पादशाह बेगम का दर्जा दिया गया था. मुगलकाल में जहांआरा सबसे अमीर शहजादी थी. जहांआरा ने अपने वजीफे के पांच लाख रुपये से जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. जहांआरा ने कश्मीर में अब्बासी बाग लगवाया था, जो अपने सबसे उत्तम बाग था. जहांआरा की साहित्य में रुचि थी. वह बेहद फैशनेबल थी. उसे चित्रकारी में रुचि थी. सबसे ज्यादा राजनीति में रुचि थी.
जहांआरा अपने छोटे भाई दाराशिकोह की सबसे खास थी. जब शाहजहां के उत्तराधिकार को लेकर दाराशिकोह और औरंगजेब में युद्ध हुआ, तो जहांआरा ने दारा शिकोह का साथ दिया था. इसलिए औरंगजेब उसे अपना विरोधी मानता था. मगर, युद्ध औरंगजेब जीत गया था. इसके बाद औरंगजेब ने शाहजहां को आगरा किले में कैद कर लिया था, तो जहांआरा ने पिता शाहजहां के अंतिम दिनों में उसके साथ रही.
शाहजहां की मौत के बाद औरंगजेब से उसके संबंद्ध बेहतर हुए तो उसे राजकुमारियों की महारानी का खिताब दिया गया. इसके बाद सन 1644 में आग लगने से जहांआरा घायल हो गई थी, तब शाहजहां ने इसके ठीक होने पर इसके वजन का सोना गरीबों में बंटवाया था. 16 सितंबर 1681 में जब जहांआरा की मौत हुई थी, तब उसके पास तीन करोड़ रुपये की संपत्ति पाई गई थी.
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि शहंशाह शाहजहां की छोटी बेटी रोशनआरा थी. जब शाहजहां के उत्ताराधिकार का युद्ध हुआ, तो रोशनआरा ने दाराशिकोह का विरोध किया था. वह औरंगजेब की खास थी. इसलिए उसकी मदद की. युद्ध के समय सभी सूचनाएं औरंगजेब के खेमे में भिजवा देती थी, जिससे ही समोगढ़ के युद्ध में औरंगजेब की जीत हुई थी. उसने ही शाहजहां की चालाकी और औरंगजेब की हत्या करने की योजना की जानकारी उसे पहले ही दे दी थी, जिससे औरंगजेब की जान बची थी और वह मुगलिया सल्तनत का बादशाह बना था.