आगराः राष्ट्रीय खेल दिवस पर हर तरफ खेलों को बढ़ावा देने की बात की जाती है. यह खेल जिन जमीनी खिलाड़ियों से दमकते हैं, उन्हें अक्सर शासन और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भूल जाते हैं. तब देश और प्रदेश को मेडल देने वाले खिलाड़ी मजबूरी में किसानी और मजदूरी पर उतर आते हैं और आर्थिक तंगी में वक्त गुजारते मिलते हैं.
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एशिया और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में जीते पदक
ये कहानी है शमसाबाद रोड स्थित तॉसपुरा गांव के अंतरराष्ट्रीय पॉवरलिफ्टर प्रदीप शर्मा की. एशिया पॉवरलिफ्टिंग चैंपियनशिप में देश को सिल्वर और 2014 से 2019 तक नेशनल पॉवरलिफ्टिंग चैंपियनशिप में प्रदेश को लगातार स्वर्ण पदक दिलाया है, लेकिन सरकार की उपेक्षा का शिकार हुए प्रदीप शर्मा अपने गांव में खेती किसानी को मजबूर हैं.
प्रदीप शर्मा आज भी पॉवरलिफ्टिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेने की चाह रखते हैं. उन्हें प्रदेश सरकार से अब मदद की उम्मीद नहीं है. प्रदीप बताते हैं कि राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने के बाद उन्होंने प्रदेश सरकार, खेल विभाग का दरवाजा खटखटाया, पर उनकी कहीं सुनी नहीं गई.
प्रदीप बताते हैं कि नौकरी तो दूर की बात है, आज तक जीते गए मेडल पर जो प्रदेश सरकार को धनराशि देनी चाहिए वह भी नहीं मिली. अधिकारियों से सिर्फ उन्हें दिलासा ही मिली और उनके हाथ में कुछ नहीं आया.
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राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी है प्रदीप के नाम
पॉवरलिफ्टिंग में 840 किलोग्राम तक वजन उठाने वाले प्रदीप खेल के एक भाग स्कोट में 355 किलोग्राम वजन उठाकर नेशनल रिकॉर्ड बना चुके हैं. प्रदीप नेशनल पॉवर लिफ्टिंग चैंपियनशिप और ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी पॉवरलिफ्टिंग चैंपियनशिप में 12 से ज्यादा पदक जीत चुके हैं.
2016 में उदयपुर में हुई एशिया पॉवर लिफ्टिंग चैंपियनशिप में देश के लिए सिल्वर जीतकर प्रदीप ने आगरा का मान बढ़ाया. प्रदीप ने बताया कि अब भी गांव से रोज एकलव्य स्टेडियम में अभ्यास करने जाते हैं. महीने में हजारों रुपये किराए में खर्च हो जाते हैं. इतना सब करने के बाद भी अब पिता के साथ किसानी में हाथ बांटने के अलावा उनके पास कुछ नहीं बचा है.