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Jama Masjid Case: जामा मस्जिद मामले में अगली सुनवाई 18 जुलाई को, जानें पूरा मामला

आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे भगवान केशवदेव के विग्रहों को वापस दिलाने के लिए कथा वाचक देवकीनंदन महाराज की ओर से कोर्ट में दायर याचिका दायर की गई थी. कोर्ट ने अगली सुनवाई 18 जुलाई को निर्धारित की है.

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Published : Jul 11, 2023, 6:03 PM IST

आगरा: जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी भगवान श्रीकृष्ण की विग्रह और मूतियों के विवाद को लेकर दाखिल की गई याचिका पर सिविल कोर्ट में मंगलवार को में सुनवाई हुई. श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट ने याचिका दायर की थी. जिसमें 4 पक्षकार बनाए गए हैं. जिन्हें कोर्ट ने नोटिस तामील कराया था. लेकिन पक्षकार हाजिर नहीं होने पर अब इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 18 जुलाई को होगी.



श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट: बता दें कि मथुरा कोर्ट में पहले ही आगरा की जामा मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है. जिसकी सुनवाई कोर्ट में चल रही है. दूसरी तरफ 11 मई 2023 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट के कथा वाचक देवकीनंदन महाराज ने न्यायालय सिविल जज आगरा में वाद संख्या 518 / 23 दायर किया था. जिसमें न्यायालय से जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे भगवान केशवदेव के विग्रहों को वापस दिलवाने की प्रार्थना की गई थी. जिसकी पहली सुनवाई 31 मई को होनी थी, जो टल गई थी. इस मामले में 11 जुलाई की तारीख पर दूसरी बार सुनवाई हुई.

इन्हें दिया गया था नोटिस: श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट की ओर से कोर्ट में दायर वाद को लेकर जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी, छोटी मस्जिद, दीवान-ए-खास, जहांआरा मस्जिद आगरा किला, यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ और श्रीकृष्ण सेवा संस्थान को नोटिस भेजा गया था. जिसके तहत चारों को अपना पक्ष 31 मई 2023 को कोर्ट में रखना था.

कोर्ट में उपस्थित नहीं हो रहे पक्षकारः श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट के अधिवक्ता विनोद कुमार शुक्ला ने बताया कि मंगलवार को कोर्ट में एक एप्लिकेशन लगाई थी. जिसमें पक्षकार एक और 2 जो एपीरियंस देने से अवाइड कर रहे हैं. उस अवाइडिंग को बचाने के लिए स्पेशल मैसेंजर की एप्लीकेशन लगाई. जिससे पक्षकारों पर लीगली तरीके से उनसे सम्मन और नोटिस की तामील हो सके. हालांकि दोनों पक्षकार जानबूझकर नहीं आ रहे हैं. उन्हें पता है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे श्रीकृष्ण भगवान के विग्रह हैं. इसलिए पक्षकार उपस्थित नहीं हो रहे हैं. यदि पक्षकार उपस्थित हो जाएंगे, तो इस मुकदमे का फैसला जल्द हो जाएगा. न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई करते हुए एप्लीकेशन अपने पास रख ली है. इसके साथ ही न्यायाधीश ने अमीन सर्वे के लिए 18 जुलाई 2023 की तिथि दी है.

दुनिया की सबसे अमीर शहजादी जहांआराः इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल शहंशाह शाहजहां की सबसे प्रिय बेटी जहांआरा थी. जहांआरा उस समय दुनिया की सबसे अमीर शहजादी थी. उसे तब करीब 2 करोड रुपये का सालाना जेब खर्च मिलता था. मुगल बादशाह शाहजहां की रजामंदी पर जहांआगरा ने अपने जेब खर्च के 5 लाख रुपये में से आगरा में जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. सन् 1643 से 1648 के बीच लाल बलुआ पत्थर से जामा मस्जिद का निर्माण हुआ था. जामा मस्जिद में 3 गुंबद हैं. जामा मस्जिद 271 फुट लंबी और 270 फीट चौड़ी है. इसकी दीवारों में ज्यामितीय आकृति की टाइल्स लगी हुई हैं. जामा मस्जिद में एक साथ 10 हजार लोगों के नमाज पढ़ने की व्यवस्था है. हर साल 20वें रमजान को जहांआरा का उर्स जामा मस्जिद में मनाया जाता है. यह भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की संरक्षित स्मारक में भी शामिल है.

औरंगजेब ने मूर्तियां दबाईः इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि 16वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कराया था. केशवदेव मंदिर की मूर्तियों के साथ ही तमाम पुरावशेष आगरा में लाए गए. इन सभी मूर्तियों और पुरावशेष को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाया गया था. औरंगजेब ने यह इसलिए किया था कि मस्जिद में आने वाले नमाजियों के पैरों के नीचे ये मूर्तियां और विग्रह रहे. औरंगजेब का यह बहुत ही निंदनीय कार्य था. लेकिन इन मूर्तियों को अब वहां से बाहर निकाला जाना चाहिए. औरंगजेब के इस कृत्य का पुस्तकों में विस्तार से जिक्र वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' करते हैं. इतिहासकार बताते हैं कि आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों के साथ अन्य विग्रहों के बारे में तमाम इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखा है.

मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों में दबाए जाने का जिक्रः सन् 1940 में एसआर शर्मा ने 'भारत में मुगल समराज' नाम से लिखी किताब में मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाए जाने का जिक्र किया है. औरंगजेब के सहायक रहे मुहम्मद साकी मुस्तइद्दखां ने अपनी पुस्तक 'मआसिर-ए-आलमगीरी' में, इतिहासकार जदुनाथ सरकार की पुस्तक 'ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब' में मेरी पुस्तक 'तवारीख़-ए-आगरा' में और मथुरा के महशहूर साहित्यकार प्रो. चिंतामणि शुक्ल की पुस्तक ' मथुरा जनपद का राजनीतिक इतिहास' में भी जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मूर्तियां दबाने का विस्तार से जिक्र किया है. इन मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे से निकालने से यह पता चल जाएगा कि मथुरा के केशवदेव मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण समेत अन्य तमाम देवी देवताओं की मूर्तियां और विग्रह किस तरह के थे.

जामा मस्जिद की खासियत: आगरा की जामा मस्जिद को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है. साथ ही सफेद संगमरमर की सजावट की गई है. यहां जामा ​मस्जिद में चढ़ने के लिए 35 सीढ़ियां बनी हुई हैं. साथ ही तीन मठों में बल्बनुमा गुंबद बने हुए हैं. जिन पर उल्टे कमल और कलश हैं. जामा मस्जिद में चित्र जड़े पत्थर, नक्काशी और चमकदार टाइल्स लगी हुई हैं. इसके अलावा मस्जिद में ज्यामितीय डिजाइनों वाला एक केंद्रीय मेहराब भी बनाया गया है.

यह भी पढ़ें- अब्दुल्लाह आजम के दो जन्म प्रमाण पत्र मामले में गवाहों की गवाही पूरी, 20 जुलाई को आएगा फैसला

आगरा: जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी भगवान श्रीकृष्ण की विग्रह और मूतियों के विवाद को लेकर दाखिल की गई याचिका पर सिविल कोर्ट में मंगलवार को में सुनवाई हुई. श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट ने याचिका दायर की थी. जिसमें 4 पक्षकार बनाए गए हैं. जिन्हें कोर्ट ने नोटिस तामील कराया था. लेकिन पक्षकार हाजिर नहीं होने पर अब इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 18 जुलाई को होगी.



श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट: बता दें कि मथुरा कोर्ट में पहले ही आगरा की जामा मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है. जिसकी सुनवाई कोर्ट में चल रही है. दूसरी तरफ 11 मई 2023 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि सुरक्षा सेवा ट्रस्ट के कथा वाचक देवकीनंदन महाराज ने न्यायालय सिविल जज आगरा में वाद संख्या 518 / 23 दायर किया था. जिसमें न्यायालय से जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबे भगवान केशवदेव के विग्रहों को वापस दिलवाने की प्रार्थना की गई थी. जिसकी पहली सुनवाई 31 मई को होनी थी, जो टल गई थी. इस मामले में 11 जुलाई की तारीख पर दूसरी बार सुनवाई हुई.

इन्हें दिया गया था नोटिस: श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट की ओर से कोर्ट में दायर वाद को लेकर जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी, छोटी मस्जिद, दीवान-ए-खास, जहांआरा मस्जिद आगरा किला, यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ और श्रीकृष्ण सेवा संस्थान को नोटिस भेजा गया था. जिसके तहत चारों को अपना पक्ष 31 मई 2023 को कोर्ट में रखना था.

कोर्ट में उपस्थित नहीं हो रहे पक्षकारः श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट के अधिवक्ता विनोद कुमार शुक्ला ने बताया कि मंगलवार को कोर्ट में एक एप्लिकेशन लगाई थी. जिसमें पक्षकार एक और 2 जो एपीरियंस देने से अवाइड कर रहे हैं. उस अवाइडिंग को बचाने के लिए स्पेशल मैसेंजर की एप्लीकेशन लगाई. जिससे पक्षकारों पर लीगली तरीके से उनसे सम्मन और नोटिस की तामील हो सके. हालांकि दोनों पक्षकार जानबूझकर नहीं आ रहे हैं. उन्हें पता है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे श्रीकृष्ण भगवान के विग्रह हैं. इसलिए पक्षकार उपस्थित नहीं हो रहे हैं. यदि पक्षकार उपस्थित हो जाएंगे, तो इस मुकदमे का फैसला जल्द हो जाएगा. न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई करते हुए एप्लीकेशन अपने पास रख ली है. इसके साथ ही न्यायाधीश ने अमीन सर्वे के लिए 18 जुलाई 2023 की तिथि दी है.

दुनिया की सबसे अमीर शहजादी जहांआराः इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि मुगल शहंशाह शाहजहां की सबसे प्रिय बेटी जहांआरा थी. जहांआरा उस समय दुनिया की सबसे अमीर शहजादी थी. उसे तब करीब 2 करोड रुपये का सालाना जेब खर्च मिलता था. मुगल बादशाह शाहजहां की रजामंदी पर जहांआगरा ने अपने जेब खर्च के 5 लाख रुपये में से आगरा में जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. सन् 1643 से 1648 के बीच लाल बलुआ पत्थर से जामा मस्जिद का निर्माण हुआ था. जामा मस्जिद में 3 गुंबद हैं. जामा मस्जिद 271 फुट लंबी और 270 फीट चौड़ी है. इसकी दीवारों में ज्यामितीय आकृति की टाइल्स लगी हुई हैं. जामा मस्जिद में एक साथ 10 हजार लोगों के नमाज पढ़ने की व्यवस्था है. हर साल 20वें रमजान को जहांआरा का उर्स जामा मस्जिद में मनाया जाता है. यह भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की संरक्षित स्मारक में भी शामिल है.

औरंगजेब ने मूर्तियां दबाईः इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि 16वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कराया था. केशवदेव मंदिर की मूर्तियों के साथ ही तमाम पुरावशेष आगरा में लाए गए. इन सभी मूर्तियों और पुरावशेष को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाया गया था. औरंगजेब ने यह इसलिए किया था कि मस्जिद में आने वाले नमाजियों के पैरों के नीचे ये मूर्तियां और विग्रह रहे. औरंगजेब का यह बहुत ही निंदनीय कार्य था. लेकिन इन मूर्तियों को अब वहां से बाहर निकाला जाना चाहिए. औरंगजेब के इस कृत्य का पुस्तकों में विस्तार से जिक्र वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' करते हैं. इतिहासकार बताते हैं कि आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों के साथ अन्य विग्रहों के बारे में तमाम इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखा है.

मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों में दबाए जाने का जिक्रः सन् 1940 में एसआर शर्मा ने 'भारत में मुगल समराज' नाम से लिखी किताब में मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाए जाने का जिक्र किया है. औरंगजेब के सहायक रहे मुहम्मद साकी मुस्तइद्दखां ने अपनी पुस्तक 'मआसिर-ए-आलमगीरी' में, इतिहासकार जदुनाथ सरकार की पुस्तक 'ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब' में मेरी पुस्तक 'तवारीख़-ए-आगरा' में और मथुरा के महशहूर साहित्यकार प्रो. चिंतामणि शुक्ल की पुस्तक ' मथुरा जनपद का राजनीतिक इतिहास' में भी जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मूर्तियां दबाने का विस्तार से जिक्र किया है. इन मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे से निकालने से यह पता चल जाएगा कि मथुरा के केशवदेव मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण समेत अन्य तमाम देवी देवताओं की मूर्तियां और विग्रह किस तरह के थे.

जामा मस्जिद की खासियत: आगरा की जामा मस्जिद को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है. साथ ही सफेद संगमरमर की सजावट की गई है. यहां जामा ​मस्जिद में चढ़ने के लिए 35 सीढ़ियां बनी हुई हैं. साथ ही तीन मठों में बल्बनुमा गुंबद बने हुए हैं. जिन पर उल्टे कमल और कलश हैं. जामा मस्जिद में चित्र जड़े पत्थर, नक्काशी और चमकदार टाइल्स लगी हुई हैं. इसके अलावा मस्जिद में ज्यामितीय डिजाइनों वाला एक केंद्रीय मेहराब भी बनाया गया है.

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