आगरा: मुगल बादशाह अकबर के आंगन में शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से किलकारी गूंजी थी. चिश्ती के इंतकाल के बाद अकबर ने लाल पत्थर से उनका दरगाह बनवाया और फतेहपुर सीकरी को अपनी दूसरी राजधानी बना लिया. 1990 में दरगाह का बीम कमजोर होने की जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को हुई. उसके बाद भी आज इतने सालों बाद पहली बार एएसआई की ओर दरगाह का बीम बदला जा रहा है.
आगरा से नंगे पैर आये थे अकबर
बता दें कि मुगल बादशाह अकबर की पत्नी को संतान नहीं हो रही थी, जिससे परेशान होकर अकबर आगरा से नंगे पैर हजरत शेख सलीम चिश्ती से आशीर्वाद लेने फतेहपुर सीकरी आये थे. उसके बाद अकबर की पत्नी को जहांगीर पैदा हुए थे. चिश्ती के इंतकाल के बाद अकबर ने उनकी याद में यहां लाल पत्थर से दरगाह बनवाया. वह लाल पत्थर आज भी दरगार में लगा हुआ है.
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दरगाह के प्रति पुरातत्व विभाग नहीं है सजग
एएसआई यानि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने दरगाह की सुरक्षा और किसी भी खतरे को देखकर पहले ही एक 12 फीट के खंभे की मरम्मत कराई है. उसके बाद ही दरगाह की बीम को खोला गया है. गाइड सुलेमान खां ने बताया कि पहले यहां जंगल हुआ करता था. इसी जंगल में हजरत शेख सलीम चिश्ती रहते थे.
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चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर को संतान नसीब हुआ था जिसके बाद अकबर ने फतेहपुर सीकरी बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया. 1571 में हजरत शेख सलीम चिश्ती के इंतकाल होने पर अकबर ने लाल पत्थर से उनकी मजार को बनवाया. लाल पत्थर से बने शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को फिर से जहांगीर ने रिनोवेट कराया और इसे सफेद संगमरमर से बनवाया.
फतेहपुर सीकरी में हजरत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह में एक परिक्रमा मार्ग है. इस परिक्रमा मार्ग में यह देखा गया था कि इसकी बीम क्रेक हो गई है. जानकारी होने पर इसकी बीम बदली जा रही है. अभी तक के रिकॉर्ड के अनुसार सन् 1904 लॉर्ड कर्जन ने फतेहपुर सीकरी की दरगाह का संरक्षण का काम कराया था. उसके बाद 1990 में मालूम हुआ कि बीम क्रेक हो गया है. धार्मिक स्थल होने के कारण इससे लोगों को खतरा हो सकता है. लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बीम को बदला जा रहा है.
-वसंत कुमार स्वर्णकार, अधीक्षण पुरातत्वविद (एएसआई)