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महिला दिवस स्पेशल: पहले खुद को बनाया सशक्त, फिर 32 महिलाओं को बनाया काबिल

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में एक ऐसी जूते की फैक्ट्री है, जहां सिर्फ और सिर्फ महिलाएं काम करती है. यह कार्य महिला सशक्तिकरण का एक जीता-जागता सबूत है. इस फैक्ट्री का संचालन भी मानसी चंद्रा नामक महिला कर रही हैं. आइए महिला दिवस पर जानते हैं मानसी चंद्रा की कहानी.

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आगरा की मानसी चंद्रा.
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Published : Mar 8, 2020, 2:13 AM IST

आगरा: पति की असमय मौत के बाद पहले खुद को संभाला, अब पति का शूज कारोबार संभाल रही हैं. समाज में अपनी अलग पहचान बनाकर फिर नई सोच और सपोर्ट से आधी आबादी के बेहतर भविष्य की नींव रखी. गरीब महिलाओं को हुनरमंद बनाया और आज ताजनगरी में जूते की एक यूनिट (लाइन) में जूता की कारीगरी में चूड़ियां खनका रही हैं.

महिला दिवस स्पेशल.

जी हां, हम बात कर रहे हैं ताजनगरी की मानसी चंद्रा की, जो महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल हैं. मानसी चंद्रा कहती हैं महिलाओं का फाइनेंशियल सशक्तिकरण होना बहुत जरूरी है. वे जब फाइनेंशियल मजबूत होंगी तो समाज में नई पहचान और सम्मान भी पाएंगी.
ताजमहल के बाद दुनिया में आगरा जूता कारोबार के लिए भी विख्यात है. प्रतिदिन यहां लाखों के जूते एक्सपोर्ट किए जाते हैं. जूता बनाने की फैक्ट्री में एक जूता कई हाथों से गुजरता है. तब कहीं जाकर उसकी चमक और धमक बनती है और फिर बाजार में पहुंचता है. ताजनगरी में एक जूता फैक्ट्री में एक यूनिट है, जिसमें 32 महिलाएं ही शूज बनाने का काम कर रही हैं.

एक माह की ट्रेनिंग
मानसी चंद्रा ने बताया कि उनकी फैक्ट्री में ठेकेदार के जरिए काम करने वाली महिलाओं को पहले चिन्हित किया और उनसे बातचीत की. उन्हें हुनर देने के लिए एक महीने की ट्रेनिंग दी. इस ट्रेनिंग से महिलाएं जूते में पीयू लगाने से लेकर सोल प्रेस, पैकेजिंग, लेबलिंग, रफिंग, लाइन फीडिंग का काम सीख गई.

ट्रेनिंग लेकर हेल्पर से बनी कारीगर
शूज कारीगर नेहा ने बताया कि पहले हम ठेकेदार के जरिए फैक्ट्री में काम करते थे. तो ठेकेदार और अन्य कारीगर तरह-तरह की बात करते थे. हमने अपनी पीड़ा मानसी चंद्रा मैडम से साझा की. उन्होंने हमारे बात को समझा और हमें सपोर्ट दिया. इससे हमारी पहचान बनी. हुनर से हम अब हेल्पर से कारीगर बन गई है. पहले से जिंदगी बेहतर हो गई है.

हुनरमंद होने से बढ़ी आमदनी
शूज कारीगर शहाना खान ने बताया कि यहां काम नहीं कर पाती तो हमारे बच्चे भी न पल पाते न पढ़ पाते. पति उनका साथ नहीं देता है. जब वह इस फैक्ट्री में आई तब पुरुषों के साथ काम करते थी और उन्हें बहुत अजीब लगता था. उन्होंने बताया कि वह अपने मन की बात मैडम से साझा की. हुनरमंद होने से अब हम अपने परिवार को अच्छी तरह से चला रहे हैं.

एक नई सोच और सपोर्ट से बदल रही जिंदगी
शूज कारीगर साधना ने बताया कि हमें हुनरमंद बनाने की शुरुआत एक अच्छी सोच से हुई. कुछ सपोर्ट और हौसला के बाद हम लोगों को हुनर दिया गया.

बच्चों की परवरिश हुई बेहतर
शूज कारीगर तबस्सुम ने बताया कि पहले ठेकेदार के साथ काम करती थी तो कम पैसे मिलते थे. पति की मौत के बाद दो बच्चों को पालना मुश्किल हो रहा था. मगर उन्होंने ठेकेदारों के साथ भी किया और उन्हें हर वक्त डर लगा रहता था. ठेकेदार और दूसरे कारीगर गलत नजर से देखते थे. अब जब हुनर आया है, तो पैसा भी अच्छा मिल रहा है और एक पहचान भी बनी. बच्चों की परवरिश भी बेहतर हो रही है और उनकी पढ़ाई लिखाई भी चल रही है.

एक की कहानी जब लगी खुद जैसी तो नई शुरुआत की
शूज फैक्ट्री संचालक मानसी चंद्रा ने बताया कि सन् 2011 में मेरे पति दुनिया से चले गए. मेरे ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा. एक हफ्ते बाद मुझे एहसास हुआ कि खुद को और बेटियों को कैसे पालेगी. इसको लेकर उन्होंने पति के कारोबार को संभाला और फिर 2013 में शूज फैक्ट्री शुरू की.

मेरी फैक्ट्री में काम करने वाली तमाम महिलाएं अलग-अलग शिकायत लेकर आती थीं. कोई ठेकेदार तो किसी दूसरे कारीगर की वजह से प्रताड़ित हो रही थीं. एक दिन एक महिला मेरे पास आई और उसने जो कहानी सुनाई उससे मुझे अपने पुराने दिन याद आ गए. इस पर मैंने यह तय किया की पूरी फैक्ट्री तो महिलाओं की नहीं कर सकती हूं. कुछ तो इनके लिए कर सकती हूं. मैंने महिलाओं से बात की और उन्हें ट्रेनिंग दी. मेरी फैक्ट्री में एक यूनिट (लाइन) पूरी महिलाओं की है.

जल्द 50 महिलाएं हुनरमंद बन जाएंगी
शूज फैक्ट्री संचालक मानसी चंद्रा ने बताया कि अभी 32 महिलाएं काम कर रही हैं. इनकी संख्या जल्द ही बढ़कर के 50 हो जाएगी. उनका मानना है कि महिला सशक्तिकरण के कई पहलू हैं, जिनमें एक अहम पहलू महिलाओं का फाइनेंशली मजबूत होना है. जब वे महिलाएं फाइनेंशली मजबूत होंगी तो अपने परिवार का सही तरह से लालन-पालन भी कर सकेंगी. वे बस यही कहती हैं कि जो बड़े-बड़े शूज कारोबारी हैं, वह अपने यहां एक यूनिट (लाइन) तो महिलाओं की जरूर रखे. इससे महिलाएं फाइनेंशली मजबूत होंगी.

इसे भी पढ़ें:- महिला दिवस स्पेशल: प्रधान बनी इंजीनियर श्वेता सिंह के जज्बे ने बदली गांव की तस्वीर, महिलाओं को दिलाया रोजगार

आगरा: पति की असमय मौत के बाद पहले खुद को संभाला, अब पति का शूज कारोबार संभाल रही हैं. समाज में अपनी अलग पहचान बनाकर फिर नई सोच और सपोर्ट से आधी आबादी के बेहतर भविष्य की नींव रखी. गरीब महिलाओं को हुनरमंद बनाया और आज ताजनगरी में जूते की एक यूनिट (लाइन) में जूता की कारीगरी में चूड़ियां खनका रही हैं.

महिला दिवस स्पेशल.

जी हां, हम बात कर रहे हैं ताजनगरी की मानसी चंद्रा की, जो महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल हैं. मानसी चंद्रा कहती हैं महिलाओं का फाइनेंशियल सशक्तिकरण होना बहुत जरूरी है. वे जब फाइनेंशियल मजबूत होंगी तो समाज में नई पहचान और सम्मान भी पाएंगी.
ताजमहल के बाद दुनिया में आगरा जूता कारोबार के लिए भी विख्यात है. प्रतिदिन यहां लाखों के जूते एक्सपोर्ट किए जाते हैं. जूता बनाने की फैक्ट्री में एक जूता कई हाथों से गुजरता है. तब कहीं जाकर उसकी चमक और धमक बनती है और फिर बाजार में पहुंचता है. ताजनगरी में एक जूता फैक्ट्री में एक यूनिट है, जिसमें 32 महिलाएं ही शूज बनाने का काम कर रही हैं.

एक माह की ट्रेनिंग
मानसी चंद्रा ने बताया कि उनकी फैक्ट्री में ठेकेदार के जरिए काम करने वाली महिलाओं को पहले चिन्हित किया और उनसे बातचीत की. उन्हें हुनर देने के लिए एक महीने की ट्रेनिंग दी. इस ट्रेनिंग से महिलाएं जूते में पीयू लगाने से लेकर सोल प्रेस, पैकेजिंग, लेबलिंग, रफिंग, लाइन फीडिंग का काम सीख गई.

ट्रेनिंग लेकर हेल्पर से बनी कारीगर
शूज कारीगर नेहा ने बताया कि पहले हम ठेकेदार के जरिए फैक्ट्री में काम करते थे. तो ठेकेदार और अन्य कारीगर तरह-तरह की बात करते थे. हमने अपनी पीड़ा मानसी चंद्रा मैडम से साझा की. उन्होंने हमारे बात को समझा और हमें सपोर्ट दिया. इससे हमारी पहचान बनी. हुनर से हम अब हेल्पर से कारीगर बन गई है. पहले से जिंदगी बेहतर हो गई है.

हुनरमंद होने से बढ़ी आमदनी
शूज कारीगर शहाना खान ने बताया कि यहां काम नहीं कर पाती तो हमारे बच्चे भी न पल पाते न पढ़ पाते. पति उनका साथ नहीं देता है. जब वह इस फैक्ट्री में आई तब पुरुषों के साथ काम करते थी और उन्हें बहुत अजीब लगता था. उन्होंने बताया कि वह अपने मन की बात मैडम से साझा की. हुनरमंद होने से अब हम अपने परिवार को अच्छी तरह से चला रहे हैं.

एक नई सोच और सपोर्ट से बदल रही जिंदगी
शूज कारीगर साधना ने बताया कि हमें हुनरमंद बनाने की शुरुआत एक अच्छी सोच से हुई. कुछ सपोर्ट और हौसला के बाद हम लोगों को हुनर दिया गया.

बच्चों की परवरिश हुई बेहतर
शूज कारीगर तबस्सुम ने बताया कि पहले ठेकेदार के साथ काम करती थी तो कम पैसे मिलते थे. पति की मौत के बाद दो बच्चों को पालना मुश्किल हो रहा था. मगर उन्होंने ठेकेदारों के साथ भी किया और उन्हें हर वक्त डर लगा रहता था. ठेकेदार और दूसरे कारीगर गलत नजर से देखते थे. अब जब हुनर आया है, तो पैसा भी अच्छा मिल रहा है और एक पहचान भी बनी. बच्चों की परवरिश भी बेहतर हो रही है और उनकी पढ़ाई लिखाई भी चल रही है.

एक की कहानी जब लगी खुद जैसी तो नई शुरुआत की
शूज फैक्ट्री संचालक मानसी चंद्रा ने बताया कि सन् 2011 में मेरे पति दुनिया से चले गए. मेरे ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा. एक हफ्ते बाद मुझे एहसास हुआ कि खुद को और बेटियों को कैसे पालेगी. इसको लेकर उन्होंने पति के कारोबार को संभाला और फिर 2013 में शूज फैक्ट्री शुरू की.

मेरी फैक्ट्री में काम करने वाली तमाम महिलाएं अलग-अलग शिकायत लेकर आती थीं. कोई ठेकेदार तो किसी दूसरे कारीगर की वजह से प्रताड़ित हो रही थीं. एक दिन एक महिला मेरे पास आई और उसने जो कहानी सुनाई उससे मुझे अपने पुराने दिन याद आ गए. इस पर मैंने यह तय किया की पूरी फैक्ट्री तो महिलाओं की नहीं कर सकती हूं. कुछ तो इनके लिए कर सकती हूं. मैंने महिलाओं से बात की और उन्हें ट्रेनिंग दी. मेरी फैक्ट्री में एक यूनिट (लाइन) पूरी महिलाओं की है.

जल्द 50 महिलाएं हुनरमंद बन जाएंगी
शूज फैक्ट्री संचालक मानसी चंद्रा ने बताया कि अभी 32 महिलाएं काम कर रही हैं. इनकी संख्या जल्द ही बढ़कर के 50 हो जाएगी. उनका मानना है कि महिला सशक्तिकरण के कई पहलू हैं, जिनमें एक अहम पहलू महिलाओं का फाइनेंशली मजबूत होना है. जब वे महिलाएं फाइनेंशली मजबूत होंगी तो अपने परिवार का सही तरह से लालन-पालन भी कर सकेंगी. वे बस यही कहती हैं कि जो बड़े-बड़े शूज कारोबारी हैं, वह अपने यहां एक यूनिट (लाइन) तो महिलाओं की जरूर रखे. इससे महिलाएं फाइनेंशली मजबूत होंगी.

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