आगरा: जनपद के बाह क्षेत्र से सटी चंबल नदी जलीय जीव एवं पक्षियों के साथ-साथ जंगली जानवरों के लिए भी जानी जाती है. चंबल के बीहड़ में जंगली जानवर तेंदुआ, हिरणों सहित अन्य जानवरों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है.
शुक्रवार को राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस संकट ग्रस्त वन्यजीवों के संरक्षण को प्रेरित करने के लिए मनाया गया. तेंदुए और काले चितकबरे हिरन आईयूसीएन की संकट ग्रस्त सूची में शामिल है. लेकिन चंबल की वादियों में टहलते हुये तेंदुए के साथ दौड़ लगाते हिरनों को देखा जा सकता है. 1979 में चंबल सेंक्च्युरी अस्तित्व में आई थी. तब बीहड़ में गद्दीदार पैरों वाले तेंदुए बहुतायत में थे. 1980 में केन्द्र सरकार ने हेलीकाप्टर से चंबल सेंक्च्युरी बिलायती बबूल के बीजों का बुवान कराया था. बबूल पनपने के साथ ही तेंदुए की आबादी संकट में पड़ गई थी.
40 साल बाद बीहड़ में बिलायती बबूल का दायरा सिमटने के साथ ही गद्दीदार पैर वाले वन्यजीव का विचरण दिखने लगा है. शावकों की मौजूदगी के साथ ही इनका कुनबा भी बढ़ गया है. बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड ने बताया कि चंबल में तेंदुए के विचरण के साथ प्रजनन से लुप्तप्राय वन्यजीव को नया ठिकाना मिला है. साल भर में इनकी आबादी 24 हो गई है. पिछले दिनों मऊ, नावली, मऊ की मढैया, हथकांत, नंदगवां, महुआशाला, केंजरा, सिमराई, गोंसिली, बाघराजपुरा, पडुआपुरा, मंसुखपुरा, रेहा, बरैण्डा में 5 नर, 6 मादा, 12 शावकों के साथ वन विभाग की टीम को पेट्रोलिंग के दौरान दिखे थे. इसके अलावा राजस्थान से सटे चंबल के बीहड़ में करीब 500 की आबादी काले और चितकबरे हिरनों की है.
ग्रामीणों को संरक्षण के लिए प्रेरित करने और शिकार पर प्रतिबंध का कड़ाई से हो रहे पालन के चलते इनका कुनबा भी तेजी से बढ़ रहा है. उन्होंने बताया कि इनके अलावा चंबल की प्राकृतिक खूबसूरती सेही, बिज्जू, लोमडी, सियार जैसे वन्यजीव को भी खूब रास आ रही है.
चंबल में तेंदुए बढने के साथ ही बीहड़ में आने वाली 49 ग्राम पंचायतों के चरवाहों पर हमले भी बढ़ गए हैं. जिसके लिए 60 वन समितियां गठित की गई है. जिससे वन्यजीवों का कुनबा भी बढ़े और उनके हमले का डर भी रहे. बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड ने बताया कि मानव वन्यजीव संघर्ष न हो, तेंदुए के साथ काले और चितकबरे हिरनों की वंशवृद्धि जारी रहे.
तेंदुए के हमलों की दहशत, प्रजनन काल में हो जाते है हिंसक
चंबल के बीहड़ के गांव मऊ एवं मऊ की मढैया, नावली, हथकांत, महुआशाला, सिमराई, गोंसिली, केंजरा, भगवान पुरा, बरहा, बाघराजपुरा, पडुआपुरा, बरैण्डा, रेहा आदि इलाकों में गाय, बछडे, बछिया, बकरी का तेंदुए ने शिकार किया है. चरवाहों पर भी हमले हुए है. रेंजर आरके सिंह राठौड ने बताया कि सितम्बर से दिसम्बर तक तेंदुए का प्रजनन काल होता है. प्रजनन काल में तेंदुए हिंसक हो जाते है. इन दिनों लोगों को बीहड़ में न जाने के लिए जागरूक किया जाता है.
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