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स्क्रीन टाइम बढ़ने से Myopia की चपेट में बचपन, माइनस में जा रहा मासूमों के चश्मा का नंबर - effect of mobile on children eyes

कोरोना के बाद से बच्चे अपना ज्यादा समय मोबाइल, टीवी, कम्प्यूटर और गेम खेलने में लगाने लगे हैं. जिससे बच्चों के आंखों की रोशनी जा रही है. मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) की चपेट में आने से बच्चों के चश्मा का नंबर बढ़ रहा है.

स्क्रीन टाइम बढ़ने से मायोपिया की चपेट में बच्चें
स्क्रीन टाइम बढ़ने से मायोपिया की चपेट में बच्चें
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Published : Mar 16, 2023, 10:55 PM IST

स्क्रीन टाइम बढ़ने से मायोपिया की चपेट में बच्चें

आगरा: कोरोना के बाद स्क्रीन टाइम बढ़ने से स्कूली बच्चों की आंखे कमजोर हो रही हैं. जिससे बच्चों के चश्मे का माइनस का नंबर बढ़ गया है. यानी तेजी से माओपिया (निकट दृष्टि दोष) के जाल में बच्चे फंसते जा रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह बच्चों का ज्यादा समय तक टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर देखना और गेम खेलना है. एसएन मेडिकल कॉलेज (एसएनएमसी) के नेत्र रोग विभाग में पहुंचने वाले 100 बच्चों में से 20-25 प्रतिशत मायोपिया की चपेट में मिले हैं. अधिकतर पांच साल से 17 किशोर मायोपिया की चपेट में आ रहे हैं. नेत्र रोग विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना से पहले जहां 10 से 15 साल के बच्चों में माओपिया के मामले 7 से 8 % थे. कोरोना के बाद बढ़कर 13 से 18 % तक हो गए हैं. इसकी वजह बच्चों का ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट देखना है.


माओपिया के 25 % बच्चे आ रहे: एसएनएमसी के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रो. हिमांशु यादव ने बताया कि माओपिया की चपेट में आए बच्चों में दूर की नजर कमजोर हो जाती है. यानी बच्चों को पास की वस्तुएं साफ दिखाई देती हैं. लेकिन, दूर की नजर कमजोर हो जाती है. इससे बच्चों का सिर दर्द की शिकायत करना. जब बच्चा कंप्यूटर व मोबाइल का प्रयोग करते समय अधिक से अधिक पलक झपकें तो सतर्क हो जाएं. एसएनएमसी के नेत्र रोग विभाग की ओपीडी में आने वाले 100 बच्चों में 20-25 बच्चे माओपिया के मिल रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि माओपिया में बच्चों की आंख का नंबर माइनस में बढ़ता है.

शिक्षक-शिक्षिकाएं सबसे बड़ी सहायक: एसएनएमसी के नेत्र विभाग की प्रो. डॉ. स्निग्धा बताती है कि इस बीमारी में अभिभावकों की सबसे बड़ी मददगार स्कूल टीचर हैं. स्कूल टीचर को अगर पढ़ते समय यदि यह दिखे कि बच्चे को ब्लैक बोर्ड पर लिखी चीजें साफ नहीं दिखाई दे रही है. बच्चे का राइटिंग पहले से हर दिन खराब हो रहा है. तो उस पर ध्यान देना चाहिए. तत्काल ऐसे बच्चे की जांच करानी चाहिए. उन्होंने बताया कि यदि किसी के परिवार में किसी भी व्यक्ति की आंखों की रोशनी चली गई है तो उस परिवार के अन्य सदस्यों को माओपिया हो सकता है. इसके साथ ही ऐसे बच्चे जो उच्च रक्तचाप या मधुमेह से पीड़ित हैं. उन्हें भी माओपिया हो सकता है.

यह होता है माओपिया:माओपिया एक निकट दृष्टिदोष है. जिसमें निकट की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं, लेकिन दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं. इसमें प्रकाश किरणों के गलत तरीके से अपवर्तित होने से यह विकार होता है. यह आनुवांशिकी के अलावा आंखों की इस तरह की दिक्कतों के लिए लाइफस्टाइल को प्रमुख कारक माना जाता है.

यह लक्षण दिखें तो सतर्क हो जाएं
- बच्चा ब्लैक बोर्ड पर लिखा साफ न देख सके
- बच्चों की दूर की नजर कमजोर होना
- बच्चा पढ़ते समय ज्यादा पलक झपके
- बच्चों का आंखें के पास लाकर किताब पढ़ना
- पढ़ते समय बच्चों की आंखों में जलन होना
- मोबाइल देखने से आंख में लालिमा आना

ऐसे करें बचाव
- बच्चों को मोबाइल कम दें
- बच्चों को गेम खेलने से रोकें
- बच्चों की आंखें साफ पानी से धुलवाएं
- लैपटाप को हैड के समानांतर न रखें
- बच्चों की हेल्दी डाइट रखना
-पढ़ते समय अच्छी रोशनी का प्रयोग करें
- आंखों की नियमित जांच कराएं

यह भी पढ़ें:मेनोपॉज के बाद हो रहीं कई गंभीर समस्याएं, इलाज के लिए डॉक्टर्स मिलकर करेंगे काम

स्क्रीन टाइम बढ़ने से मायोपिया की चपेट में बच्चें

आगरा: कोरोना के बाद स्क्रीन टाइम बढ़ने से स्कूली बच्चों की आंखे कमजोर हो रही हैं. जिससे बच्चों के चश्मे का माइनस का नंबर बढ़ गया है. यानी तेजी से माओपिया (निकट दृष्टि दोष) के जाल में बच्चे फंसते जा रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह बच्चों का ज्यादा समय तक टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर देखना और गेम खेलना है. एसएन मेडिकल कॉलेज (एसएनएमसी) के नेत्र रोग विभाग में पहुंचने वाले 100 बच्चों में से 20-25 प्रतिशत मायोपिया की चपेट में मिले हैं. अधिकतर पांच साल से 17 किशोर मायोपिया की चपेट में आ रहे हैं. नेत्र रोग विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना से पहले जहां 10 से 15 साल के बच्चों में माओपिया के मामले 7 से 8 % थे. कोरोना के बाद बढ़कर 13 से 18 % तक हो गए हैं. इसकी वजह बच्चों का ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट देखना है.


माओपिया के 25 % बच्चे आ रहे: एसएनएमसी के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रो. हिमांशु यादव ने बताया कि माओपिया की चपेट में आए बच्चों में दूर की नजर कमजोर हो जाती है. यानी बच्चों को पास की वस्तुएं साफ दिखाई देती हैं. लेकिन, दूर की नजर कमजोर हो जाती है. इससे बच्चों का सिर दर्द की शिकायत करना. जब बच्चा कंप्यूटर व मोबाइल का प्रयोग करते समय अधिक से अधिक पलक झपकें तो सतर्क हो जाएं. एसएनएमसी के नेत्र रोग विभाग की ओपीडी में आने वाले 100 बच्चों में 20-25 बच्चे माओपिया के मिल रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि माओपिया में बच्चों की आंख का नंबर माइनस में बढ़ता है.

शिक्षक-शिक्षिकाएं सबसे बड़ी सहायक: एसएनएमसी के नेत्र विभाग की प्रो. डॉ. स्निग्धा बताती है कि इस बीमारी में अभिभावकों की सबसे बड़ी मददगार स्कूल टीचर हैं. स्कूल टीचर को अगर पढ़ते समय यदि यह दिखे कि बच्चे को ब्लैक बोर्ड पर लिखी चीजें साफ नहीं दिखाई दे रही है. बच्चे का राइटिंग पहले से हर दिन खराब हो रहा है. तो उस पर ध्यान देना चाहिए. तत्काल ऐसे बच्चे की जांच करानी चाहिए. उन्होंने बताया कि यदि किसी के परिवार में किसी भी व्यक्ति की आंखों की रोशनी चली गई है तो उस परिवार के अन्य सदस्यों को माओपिया हो सकता है. इसके साथ ही ऐसे बच्चे जो उच्च रक्तचाप या मधुमेह से पीड़ित हैं. उन्हें भी माओपिया हो सकता है.

यह होता है माओपिया:माओपिया एक निकट दृष्टिदोष है. जिसमें निकट की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं, लेकिन दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं. इसमें प्रकाश किरणों के गलत तरीके से अपवर्तित होने से यह विकार होता है. यह आनुवांशिकी के अलावा आंखों की इस तरह की दिक्कतों के लिए लाइफस्टाइल को प्रमुख कारक माना जाता है.

यह लक्षण दिखें तो सतर्क हो जाएं
- बच्चा ब्लैक बोर्ड पर लिखा साफ न देख सके
- बच्चों की दूर की नजर कमजोर होना
- बच्चा पढ़ते समय ज्यादा पलक झपके
- बच्चों का आंखें के पास लाकर किताब पढ़ना
- पढ़ते समय बच्चों की आंखों में जलन होना
- मोबाइल देखने से आंख में लालिमा आना

ऐसे करें बचाव
- बच्चों को मोबाइल कम दें
- बच्चों को गेम खेलने से रोकें
- बच्चों की आंखें साफ पानी से धुलवाएं
- लैपटाप को हैड के समानांतर न रखें
- बच्चों की हेल्दी डाइट रखना
-पढ़ते समय अच्छी रोशनी का प्रयोग करें
- आंखों की नियमित जांच कराएं

यह भी पढ़ें:मेनोपॉज के बाद हो रहीं कई गंभीर समस्याएं, इलाज के लिए डॉक्टर्स मिलकर करेंगे काम

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