आगरा : कोई एलोपैथी का मशहूर डाॅक्टर हो, हार्ट के अलावा फेफड़ा और श्वांस रोग विशेषज्ञ हो, जिसे आईसीयू केयर में महाराथ हासिल हो, इसके बावजूद वह एलोपैथी छोड़ होम्योपैथी की डिग्री हासिल करे, अमूमन ऐसा देखने को नहीं मिलता है. महाराष्ट्र के डाॅ. जसवंत पाटिल ने ऐसा करके सभी को हैरान कर दिया. उन्होंने ऐसा अपनी मां के लिए किया. पहले वह मुंबई में नौकरी करते थे. अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी. इसके बाद कस्बा जलगांव में अस्पताल खोला. बीमार मां की हालत देखकर उन्होंने होम्योपैथी की ओर रुख किया. आगरा आने पर रविवार की देर शाम डाॅ. जसवंत पाटिल ने ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि मां के इलाज के लिए उन्होंने 45 साल की उम्र में होम्योपैथी की पढ़ाई की. अब एलोपैथी और होम्योपैथी से हृदय समेत अन्य जटिल बीमारियों का इलाज करते हैं. चिकित्सा की अन्य पद्धितियों की भी पढ़ाई कर रहे हैं. जिससे ज्यादा से ज्यादा मरीजों को इसका लाभ मिल सके.
जलगांव के डॉ. जसवंत पाटिल रविवार को आगरा में आयोजित होम्यो विजडम 2023 में शामिल होने आए थे. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि एमबीबीएस और एमडी के बाद उनकी मुंबई में प्रैक्टिस अच्छी चल रही थी. उन्होंने पढ़ाई से हृदय के साथ फेफड़ों के रोगों के इलाज में भी महारत हासित कर ली थी. मगर, जलगांव में मां की तबीयत ठीक नहीं हो रही थी. उन्होंने मुझसे कहा कि, जलगांव आ जाएं. यहां पर हाॅस्पिटल खोलें. यहां के लोगों को बेहतर चिकित्सा दें. मां मेरे बुलाने पर मुंबई नहीं आना चाह रहीं थीं, इस पर करियर और मां में से मैंने मां को चुना. जलगांव आकर हाॅस्पिटल खोल लिया. प्रैक्टिस भी खूब चलने लगी.
ऐलोपैथी दे गई जवाब तो होम्योपैथी ने बचाई जान : डॉ. जसवंत पाटिल ने बताया कि, एक दिन मां की तबीयत इतनी बिगड़ी कि, उन्हें आईसीयू में भर्ती करना पड़ा. मां की बीमारी को अपने दोस्तों से शेयर किया. सभी ने कहा कि एलोपैथी में इसका इलाज नहीं है. इसलिए, मैं भी निराश हो गया था. इसके बाद मुझे दोस्त की दी गई हुई एक होम्योपैथी की किताब मिली. इसमें मां की बीमारी के लक्षण जैसी बीमारी का बेहतर इलाज था. इस पर मैंने होम्योपैथी के जानकार चिकित्सक को बुलाया. उसने मां की गंभीर हालत देखकर उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए. इस पर मैंने उनने बस दवा की डोज के बारे में पूछा. इस डोज को मैंने मां को दिया. होम्योपैथी की दवा से 48 घंटे बाद मां लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हट गईं. 72 घंटे में वह ठीक हो गई. इसके बाद मां 10 साल तक जिंदा रहीं. इस पर मैंने भी प्रयोग शुरू कर दिया. मैंने एक होम्योपैथी विशेषज्ञ अपने हाॅस्पिटल में रखकर एलोपैथी के साथ होम्योपैथी की दवा से भी मरीजों का इलाज शुरू किया. इससे मेरी ओपीडी में संख्या बढ़ी. मगर, आईपीडी कम हो गई.
45 साल की उम्र में किया बीएचएमएस : डॉ. जसवंत पाटिल ने बताया कि, मैं पहले होम्योपैथी को कुछ मानता ही नहीं था. यदि कोई मरीज ये कहता था कि, मैंने होम्योपैथी की भी दवा ली है तो मैं उसे कहता था कि मीठी गोली से बीमारी कैसे ठीक हो सकती है. मगर, जब मां की तबीयत ठीक हुई. इसके बाद दूसरे मरीज भी एलोपैथी संग होम्योपैथी दवा देने से ठीक हुए तो मेरा विश्वास होम्योपैथी पर बढ़ने लगा. इसके बाद मैंने 45 की उम्र में 2012 में बीएचएमएस का कोर्स करके होम्योपैथी की डिग्री लीं.
विदेश जाने की तैयारी कर ली थी : डाॅ. जसवंत पाटिल ने बताया कि सन 1983 में ग्रांट मेडिकल कॉलेज, सर जेजे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स से उन्होंने एमबीबीएस किया. इसके बाद सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज, केईएम हॉस्पिटल, मुंबई से सन 1987 में एमडी चेस्ट किया. इसके बाद चेस्ट मेडिसिन, जनरल मेडिसिन, कार्डियोलॉजी, हेमेटोलॉजी, आईआरसीयू, आईसीसीयू, आईटीसीयू और एमआईसीयू में 12 साल तक प्रशिक्षित चिकित्सक के रूप में काम किया. विदेश जाने की तैयारी भी कर ली थी.
होम्योपैथी जनक की तरह किया काम : दरअसल, जर्मन में 18 वीं शताब्दी में होम्योपैथी की शुरुआत हुई थी. जर्मन चिकित्सक सैमुएल हैनीमेन एलोपैथी के अच्छे जानकार थे. वह लोगों का ऐलोपैथी से उपचार कर रहे थे. मगर, ऐलोपैथी की दवाओं के शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव होने पर उन्होंने होम्योपैथी की ओर रुख किया. उन्होंने सन 1810 में होम्योपैथी के पहले संस्करण को संहिताबद्ध किया था. इसी तरह से जलगांव के डाॅ. जसवंत पाटिल ने ऐलोपैथी में महारत हासिल करने के बाद होम्योपैथी की डिग्री ली. अब दोनों ही मेडिकल साइंस से मरीजों का उपचार कर रहे हैं.
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