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डाॅक्टर्स डेः कोरोना काल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कहानी उन्हीं की जुबानी - आगरा का समाचार

मरीजों का हर दर्द और मर्ज ठीक करने वाले डॉक्टर ही धरती के भगवान हैं. जो कोरोना काल में भी पीछे नहीं हटे और डटे रहे. इस दौरान वे कोरोना महामारी की चपेट में भी आए. लेकिन अपना सेवा भाव और जिम्मेदारी वे बखूबी निभाते रहे.

डॉक्टरों की कहानी उन्हीं की जुबानी
डॉक्टरों की कहानी उन्हीं की जुबानी
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Published : Jul 1, 2021, 8:00 AM IST

आगराः ईटीवी भारत राष्ट्रीय डॉक्टर डे पर आगरा के ऐसे डॉक्टरों के सेवा भाव की कहानी लेकर आया है. जिनकी सेवा और मरीजों के प्रति समर्पण से जरूरतमंद के इलाज में रुपए भी आड़े नहीं आए. पढ़िए इस रिपोर्ट में डॉक्टरों की कहानी उन्हीं की जुबानी..

कोविड-19 में चली नॉन कोविड कैंसर ओपीडी

एसएन मेडिकल कॉलेज के कैंसर डिपार्टमेंट की हैड डॉक्टर सुरभि गुप्ता का कहना है कि सरकार की गाइड लाइन के चलते मार्च 2020 से लगातार नॉन कोविड में हमारा डिपार्टमेंट संचालित है. क्यों कि कैंसर रोगी के उपचार में लापरवाही बरतने पर उनकी बीमारी बढ़ सकती है. जो बहुत ही घातक हो सकती थी. इसलिए नॉन कोविड कैंसर डिपार्टमेंट में मरीजों की कीमियोथैरिपी और रेडियोथैरिपी चल रही है. हर दिन 60 से 65 कैंसर रोगियों की रेडियोथैरिपी की जाती है. हर दिन 45 से 50 मरीज कीमोथैरिपी कराने को भर्ती हो रहे हैं. कोविड के प्रोटोकॉल से मरीजों का उपचार किया जा रहा है. सैनिटाइजेशन का पूरा ख्याल रखा जा रहा है.

डॉक्टरों की कहानी उन्हीं की जुबानी

रिकवर होकर मरीजों की सेवा में लगे

एसएन मेडिकल कॉलेज के कैंसर डिपार्टमेंट की हैड डॉक्टर सुरभि गुप्ता का कहना है कि नॉन कोविड कैंसर डिपार्टमेंट में तैनात स्टॉफ ने भी कोविड हॉस्पिटल में सेवाएं दी. इस वजह से मैं भी परिवार से दूर रही. इतना ही नहीं कोरोना से भी संक्रमित हो गई. मैं जब संक्रमित हुई, उस दौरान कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी. हम मरीजों की सेवा करने के लिए इस क्षेत्र में आए हैं. मेरा ही नहीं हर डॉक्टर्स का यही फर्ज है. नॉन कोविड कैंसर डिपार्टमेंट का करीब 80 फीसदी स्टॉफ संक्रमित हुआ है. मगर जैसे ही कोरोना से सभी रिकवर हुए. फिर से काम पर लौट आए. तभी से लगातार मरीजों की सेवा कर रहे हैं. जिसमें मरीजों की पीड़ा कम हो रही है, और हमें संतुष्टि मिल रही है.

यहां पर बढ़ी मरीजों की संख्या

एसएन मेडिकल कॉलेज के कैंसर डिपार्टमेंट की हैड डाॅक्टर सुरभि गुप्ता का कहना है कि, कोरोना संक्रमण के दौरान कैंसर डिपार्टमेंट में उपचार करने वाले मरीजों के अलावा जयपुर और दिल्ली में उपचार करने वाले मरीज भी आए. क्योंकि, वहां पर उनका जाना संभव नहीं था. यहां पर ऐसे मरीजों की भर्ती और उसका भी उपचार किया. रेडियोथैरपी और कीमोथैरपी भी की. सबसे ज्यादा मुंह और गले के कैंसर के मरीज आए. हर दिन ओपीडी में नए 12 से 15 कैंसर के मरीज आ रहे हैं. अब तक 600 नए कैंसर के मरीज पंजीकृत हो चुके हैं.

डायग्नोस्टिक और ट्रीटमेंट चैलेंज का सामना किया

नेत्र रोग डिपार्टमेंट के हैड एचओडी डाॅ. हिमांशु यादव ने बताया कि, कोरोना संक्रमण के चलते ओपीडी बंद थीं. सिर्फ इमरजेंसी सेवाएं चल रही थीं. इसलिए हर चिकित्सक को कोविड हाॅस्पिटल में ड्यूटी करनी पड़ी. जिसमें मैं भी संक्रमित हो गया. अधिकतर चिकित्सक संक्रमित हुए. रिकवर होकर फिर से मरीजों की सेवा में जुट गए. इससे चिकित्सकों को संतुष्टि मिली. चिकित्सकों ने सक्रमितों को खाना खिलाया. मगर, जब कोरोना की दूसरी लहर हल्की हुई तो ब्लैक फंगस के मरीज आना शुरू हो गए. ब्लैक फंगस के उपचार का कोई प्रोटोकाॅल नहीं था. हमारे सामने डायग्नोस्टिक और ट्रीटमेंट चैलेंज था. दोनों चैलेंज का देशभर के चिकित्सकों से बात करके समाधान किया. ट्रीटमेंट का प्रोटोकाॅल बनाया. इसके बाद मरीजों का उपचार शुरू किया. हमने ईएनटी और मेडिसिन के विशेषज्ञों के साथ मिलकर मरीजों का उपचार किया.

नौ मरीजों की आंख निकाल कर बचाई जान

नेत्र रोग डिपार्टमेंट के हैड एचओडी डाॅ. हिमांशु यादव ने बताया कि, नेत्र रोग विभाग के चिकित्सकों की ओर से ब्लैक फंगस के मरीजों की तीन तरह से सर्जरी की गई है. पहला ब्लैक फंगस के मरीज की आंख में इंजेक्शन लगाया. दूसरी सर्जरी ऑर्बिटल डीकंप्रेसर की. तीसरी सर्जरी में मरीज की आंख निकाली. अब तक हमने नौ मरीजों की आंख निकालकर उनकी जान बचाई है.

मैनेजमेंट से किया उपचार

ब्लैक फंगस के नोडल अधिकारी व ईएनटी रोग विशेषज्ञ डाॅ. अखिल प्रताप सिंह का कहना है कि कोरोना के साथ ही ब्लैक फंगस का पहला मरीज 20 मई 2021 को आया था. सररकार की कोई गाइड लाइन नहीं थी. व्यक्तिगत भी इस बीमारी के बारे में नहीं था. जबकि, ब्लैक फंगस के गंभीर मरीज लगातार भर्ती हो रहे थे. तमाम बातों को ध्यान में रखकर ऐसे मरीजों का उपचार शुरू किया गया. हमने ब्लैक फंगस के मरीजों के उपचार के दौरान तीन बातों का ध्यान रखा. बेहतर मैनेजमेंट बनाकर हर संदिग्ध का उपचार शुरू किया.

समय पर की सर्जरी

ब्लैक फंगस के नोडल अधिकारी और ईएनटी रोग विशेषज्ञ डाॅ. अखिल प्रताप सिंह का कहना है कि पहला मैनेजमेंट ये किया कि मरीज की ब्लैक फंगस पुष्टि वाली रिपोर्ट आने का इंतजार नहीं किया. मरीजों को संदिग्ध मानकर ब्लैक फंगस की दवाओं से उपचार शुरू किया. दूसरा प्रयास हमारा ये रहा कि, हमने अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज का 24 घंटे में ऑपरेशन कर दिया. क्योंकि ऑपरेशन में देरी नहीं होनी चाहिए. ब्लैक फंगस मरीजों का सुगर नियंत्रित करने के लिए मेडिसिन डिपार्टमेंट के विशेषज्ञों की मदद ली. इसके साथ ही नेत्र रोग के विशेषज्ञ और ईएनटी की टीम ने लगातार मरीजों के ब्लैक फंगस के चलते सर्जरी की. जिसका नतीजा है कि, प्रदेशभर में ब्लैक फंगस के मरीजों की मौत का आंकडा आगरा में कम रहा है. अधिकतर मरीजों की सर्जरी सही रही है. डाॅक्टर अखिल प्रताप सिंह का कहना है कि हमने ब्लैक फंगस से ग्रसित 14 दिन की बच्ची की दो सर्जरी की. जिसके बाद बच्ची अब ठीक होकर घर जा चुकी है.

आगराः ईटीवी भारत राष्ट्रीय डॉक्टर डे पर आगरा के ऐसे डॉक्टरों के सेवा भाव की कहानी लेकर आया है. जिनकी सेवा और मरीजों के प्रति समर्पण से जरूरतमंद के इलाज में रुपए भी आड़े नहीं आए. पढ़िए इस रिपोर्ट में डॉक्टरों की कहानी उन्हीं की जुबानी..

कोविड-19 में चली नॉन कोविड कैंसर ओपीडी

एसएन मेडिकल कॉलेज के कैंसर डिपार्टमेंट की हैड डॉक्टर सुरभि गुप्ता का कहना है कि सरकार की गाइड लाइन के चलते मार्च 2020 से लगातार नॉन कोविड में हमारा डिपार्टमेंट संचालित है. क्यों कि कैंसर रोगी के उपचार में लापरवाही बरतने पर उनकी बीमारी बढ़ सकती है. जो बहुत ही घातक हो सकती थी. इसलिए नॉन कोविड कैंसर डिपार्टमेंट में मरीजों की कीमियोथैरिपी और रेडियोथैरिपी चल रही है. हर दिन 60 से 65 कैंसर रोगियों की रेडियोथैरिपी की जाती है. हर दिन 45 से 50 मरीज कीमोथैरिपी कराने को भर्ती हो रहे हैं. कोविड के प्रोटोकॉल से मरीजों का उपचार किया जा रहा है. सैनिटाइजेशन का पूरा ख्याल रखा जा रहा है.

डॉक्टरों की कहानी उन्हीं की जुबानी

रिकवर होकर मरीजों की सेवा में लगे

एसएन मेडिकल कॉलेज के कैंसर डिपार्टमेंट की हैड डॉक्टर सुरभि गुप्ता का कहना है कि नॉन कोविड कैंसर डिपार्टमेंट में तैनात स्टॉफ ने भी कोविड हॉस्पिटल में सेवाएं दी. इस वजह से मैं भी परिवार से दूर रही. इतना ही नहीं कोरोना से भी संक्रमित हो गई. मैं जब संक्रमित हुई, उस दौरान कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी. हम मरीजों की सेवा करने के लिए इस क्षेत्र में आए हैं. मेरा ही नहीं हर डॉक्टर्स का यही फर्ज है. नॉन कोविड कैंसर डिपार्टमेंट का करीब 80 फीसदी स्टॉफ संक्रमित हुआ है. मगर जैसे ही कोरोना से सभी रिकवर हुए. फिर से काम पर लौट आए. तभी से लगातार मरीजों की सेवा कर रहे हैं. जिसमें मरीजों की पीड़ा कम हो रही है, और हमें संतुष्टि मिल रही है.

यहां पर बढ़ी मरीजों की संख्या

एसएन मेडिकल कॉलेज के कैंसर डिपार्टमेंट की हैड डाॅक्टर सुरभि गुप्ता का कहना है कि, कोरोना संक्रमण के दौरान कैंसर डिपार्टमेंट में उपचार करने वाले मरीजों के अलावा जयपुर और दिल्ली में उपचार करने वाले मरीज भी आए. क्योंकि, वहां पर उनका जाना संभव नहीं था. यहां पर ऐसे मरीजों की भर्ती और उसका भी उपचार किया. रेडियोथैरपी और कीमोथैरपी भी की. सबसे ज्यादा मुंह और गले के कैंसर के मरीज आए. हर दिन ओपीडी में नए 12 से 15 कैंसर के मरीज आ रहे हैं. अब तक 600 नए कैंसर के मरीज पंजीकृत हो चुके हैं.

डायग्नोस्टिक और ट्रीटमेंट चैलेंज का सामना किया

नेत्र रोग डिपार्टमेंट के हैड एचओडी डाॅ. हिमांशु यादव ने बताया कि, कोरोना संक्रमण के चलते ओपीडी बंद थीं. सिर्फ इमरजेंसी सेवाएं चल रही थीं. इसलिए हर चिकित्सक को कोविड हाॅस्पिटल में ड्यूटी करनी पड़ी. जिसमें मैं भी संक्रमित हो गया. अधिकतर चिकित्सक संक्रमित हुए. रिकवर होकर फिर से मरीजों की सेवा में जुट गए. इससे चिकित्सकों को संतुष्टि मिली. चिकित्सकों ने सक्रमितों को खाना खिलाया. मगर, जब कोरोना की दूसरी लहर हल्की हुई तो ब्लैक फंगस के मरीज आना शुरू हो गए. ब्लैक फंगस के उपचार का कोई प्रोटोकाॅल नहीं था. हमारे सामने डायग्नोस्टिक और ट्रीटमेंट चैलेंज था. दोनों चैलेंज का देशभर के चिकित्सकों से बात करके समाधान किया. ट्रीटमेंट का प्रोटोकाॅल बनाया. इसके बाद मरीजों का उपचार शुरू किया. हमने ईएनटी और मेडिसिन के विशेषज्ञों के साथ मिलकर मरीजों का उपचार किया.

नौ मरीजों की आंख निकाल कर बचाई जान

नेत्र रोग डिपार्टमेंट के हैड एचओडी डाॅ. हिमांशु यादव ने बताया कि, नेत्र रोग विभाग के चिकित्सकों की ओर से ब्लैक फंगस के मरीजों की तीन तरह से सर्जरी की गई है. पहला ब्लैक फंगस के मरीज की आंख में इंजेक्शन लगाया. दूसरी सर्जरी ऑर्बिटल डीकंप्रेसर की. तीसरी सर्जरी में मरीज की आंख निकाली. अब तक हमने नौ मरीजों की आंख निकालकर उनकी जान बचाई है.

मैनेजमेंट से किया उपचार

ब्लैक फंगस के नोडल अधिकारी व ईएनटी रोग विशेषज्ञ डाॅ. अखिल प्रताप सिंह का कहना है कि कोरोना के साथ ही ब्लैक फंगस का पहला मरीज 20 मई 2021 को आया था. सररकार की कोई गाइड लाइन नहीं थी. व्यक्तिगत भी इस बीमारी के बारे में नहीं था. जबकि, ब्लैक फंगस के गंभीर मरीज लगातार भर्ती हो रहे थे. तमाम बातों को ध्यान में रखकर ऐसे मरीजों का उपचार शुरू किया गया. हमने ब्लैक फंगस के मरीजों के उपचार के दौरान तीन बातों का ध्यान रखा. बेहतर मैनेजमेंट बनाकर हर संदिग्ध का उपचार शुरू किया.

समय पर की सर्जरी

ब्लैक फंगस के नोडल अधिकारी और ईएनटी रोग विशेषज्ञ डाॅ. अखिल प्रताप सिंह का कहना है कि पहला मैनेजमेंट ये किया कि मरीज की ब्लैक फंगस पुष्टि वाली रिपोर्ट आने का इंतजार नहीं किया. मरीजों को संदिग्ध मानकर ब्लैक फंगस की दवाओं से उपचार शुरू किया. दूसरा प्रयास हमारा ये रहा कि, हमने अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज का 24 घंटे में ऑपरेशन कर दिया. क्योंकि ऑपरेशन में देरी नहीं होनी चाहिए. ब्लैक फंगस मरीजों का सुगर नियंत्रित करने के लिए मेडिसिन डिपार्टमेंट के विशेषज्ञों की मदद ली. इसके साथ ही नेत्र रोग के विशेषज्ञ और ईएनटी की टीम ने लगातार मरीजों के ब्लैक फंगस के चलते सर्जरी की. जिसका नतीजा है कि, प्रदेशभर में ब्लैक फंगस के मरीजों की मौत का आंकडा आगरा में कम रहा है. अधिकतर मरीजों की सर्जरी सही रही है. डाॅक्टर अखिल प्रताप सिंह का कहना है कि हमने ब्लैक फंगस से ग्रसित 14 दिन की बच्ची की दो सर्जरी की. जिसके बाद बच्ची अब ठीक होकर घर जा चुकी है.

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