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यहां घर में ही खोदते हैं अपनों की कब्र, क्योंकि दो गज जमीन भी मयस्सर नहीं सुपुर्द-ए-खाक के लिए

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Published : Jun 22, 2019, 4:43 PM IST

सरकारी फाइलों में इंसान की मौत के बाद दो गज जमीन के लिए जगहें तो मुकर्रर हैं, लेकिन हकीकत इससे कहीं अलग है. जब खाना खा रहा बच्चा अपनी मां की कब्र आंगन में देखता है तो हलक से खाना नहीं उतरता. जब भाई अपने भाई की कब्र देखता है तो दिल चीख पड़ता है. आज भी आगरा के छह पोखर गांव में मुस्लिम समुदाय को महज दो गज जमीन के लिए तरसना पड़ रहा है.

यहां घरों के आंगन में दफनाए जाते हैं शव.

आगरा: घर से निकलते ही ठीक दहलीज पर अगर आपको किसी अपने की कब्र दिख जाया करे, तो आपको कैसा महसूस होगा. हर पल, हर बार आप उसे यादकर टूटते जाएंगे. घर के बाहर किसी अपने की कब्र, घर के आंगन में किसी अपने की कब्र, अगर हर रोज ऐसा नजारा देखने को मिले तो शायद ही कोई उस घर में रह पाएगा. दरअसल आगरा का एक ऐसा गांव कुछ ऐसी ही हकीकत बयां कर रहा है.

यहां घरों के आंगन में दफनाए जाते हैं शव.

आगरा का छह पोखर गांव एक ऐसी जगह है जहां के मुस्लिम समुदाय के घरों के सामने और आंगन में उनके अपनों की कब्र है. अगर यहां के लोगों के घर में किसी का इंतकाल होता है, तो उसके शव को किसी कब्रिस्तान में ले जाने के बजाय अपने घर के आंगन में या फिर घर के सामने ही मैदान में दफना दिया जाता है.

दरअसल ऐसा करना इनकी मजबूरी है. यहां के लोगों का कहना है कि उन्हें शवों को दफनाने के लिए प्रशासन की तरफ से कब्रिस्तान की जमीन नहीं मुहैया कराई गई है. इसी वजह से उन्हें अपनों के शवों को इस तरह से दफन करना पड़ता है. ये लोग ईद, रमजान की नमाज की दुआओं में अपनों के लिए कब्रिस्तान की जमीन मांगते हैं. वहीं इस मामले पर लेखा एवं वित्त विभाग के अधिकारी कहते हैं कि उन्हें कब्रिस्तान की जमीन दी जा चुकी है.

आगरा: घर से निकलते ही ठीक दहलीज पर अगर आपको किसी अपने की कब्र दिख जाया करे, तो आपको कैसा महसूस होगा. हर पल, हर बार आप उसे यादकर टूटते जाएंगे. घर के बाहर किसी अपने की कब्र, घर के आंगन में किसी अपने की कब्र, अगर हर रोज ऐसा नजारा देखने को मिले तो शायद ही कोई उस घर में रह पाएगा. दरअसल आगरा का एक ऐसा गांव कुछ ऐसी ही हकीकत बयां कर रहा है.

यहां घरों के आंगन में दफनाए जाते हैं शव.

आगरा का छह पोखर गांव एक ऐसी जगह है जहां के मुस्लिम समुदाय के घरों के सामने और आंगन में उनके अपनों की कब्र है. अगर यहां के लोगों के घर में किसी का इंतकाल होता है, तो उसके शव को किसी कब्रिस्तान में ले जाने के बजाय अपने घर के आंगन में या फिर घर के सामने ही मैदान में दफना दिया जाता है.

दरअसल ऐसा करना इनकी मजबूरी है. यहां के लोगों का कहना है कि उन्हें शवों को दफनाने के लिए प्रशासन की तरफ से कब्रिस्तान की जमीन नहीं मुहैया कराई गई है. इसी वजह से उन्हें अपनों के शवों को इस तरह से दफन करना पड़ता है. ये लोग ईद, रमजान की नमाज की दुआओं में अपनों के लिए कब्रिस्तान की जमीन मांगते हैं. वहीं इस मामले पर लेखा एवं वित्त विभाग के अधिकारी कहते हैं कि उन्हें कब्रिस्तान की जमीन दी जा चुकी है.

Intro:"कब्र की चाहत में तबाह मेरी जिंदगी के मकां हो गए ,यूं ही नही हमारे घर कब्रिस्तान हो गए"

यह शेर ताजनगरी आगरा के छः पोखर गांव के लोगों पर बिल्कुल फिट बैठता है क्योंकि यहां के निवासी मुस्लिम बाशिंदों को आज भी यह नही पता रहता कि उनके घरों में कब्र हैं या कब्रिस्तान में उनका घर है।यहां मुस्लिमो के जनाज़े सिर्फ घर की दहलीज से बाहर निकलते हैं और वहीं दफन हो जाते हैं।यहां कब्रो के ऊपर बच्चे भी खेलते हैं और कब्र के बगल में ही खाना भी बनता रहता है।इसका कारण बस इतना है कि गांव के मुस्लिमो के लिए जो जगह कब्रिस्तान के लिए दी गयी वो तालाब में मिल गयी है और लाख प्रयासों के बाद उसकी जगह दूसरी जमीन आवंटित नही हो पाई है।प्रशासनिक अधिकारियों का रवैया भी इस मामले कुछ अजीब ही नजर आता है क्योंकि यहां अभी दो वर्ष पूर्व एक जनाजे को जब दफन होने की जगह नही मिली थी तो शव पूरा दिन सड़क पर रखा रहा था और एसडीएम समेत तमाम अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद रेलवे की जमीन पर जनाजा दफन हुआ था पर कुछ दिन बाद ही रेलवे का काम शुरू होने पर कब्र समतल कर दी गयीं।इसके बाद भी एडीएम फाइनेंस का कहना है कि वहां कब्रिस्तान है और उस पर अतिक्रमण हो रखा है।गांव के लोगों को अपने पूर्वजों से कुछ प्यार होगा तभी उन्हें घर पर दफन कर लिया है।फिलहाल आज भी यहां के बाशिंदे ईद,बकरीद और रमजान में नमाज पढ़ने के बाद दुआ में अपने लिए कब्रिस्तान ही मांगते हैं।



Body:आगरा के अछनेरा कस्बे के अंतर्गत गांव छः पोखर में मुस्लिम समाज के 200 से अधिक लोगो की आबादी है।इनके लिए सरकार द्वारा कब्रिस्तान की भूमि आवंटित हुई थी पर वो पोखर के अंदर समा गई है।यहां के मुस्लिम लोगो का पेशा मजदूरी है।जब भी परिवार में किसी की मृत्यु होती है तो मजबूरन कब्रिस्तान न होने की वजह से इन्हें अपने घर के बाहर या अंदर ही उन्हें दफन करना पड़ता है।ग्रामीणों का कहना है कि कोई नई जगह जनाजा दफन नही होने देता है और इसी कारण यहां हर घर मे कब्र है।कब्र होने के कारण यहां कई बार बच्चे डर जाते हैं और कई बार औरते और लड़कियां बीमार भी हो चुकी हैं।

बाईट-मुस्लिम परिवार के मुखिया और अन्य सदस्य सभी ने नाम बोला है।

बाईट एडीएम फाइनेंस रमेश चंद्र


नोट एडीएम फाइनेंस की बाईट एफटीपी पर है।स्लग up_aga_har_ghar_kabristan_story_visual_byte 10024


Conclusion:
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