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कोविड-19 इफेक्ट: आगरा में 374 साल में पहली बार टूटेगी ये परंपरा

आगरा के बटेश्वर में लगने वाला उत्तर भारत का प्रमुख मेला 374 साल के इतिहास में पहली बार इस साल नहीं लगेगा. हर साल श्री बटेश्वरनाथ मेले में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है. लेकिन, वैश्विक महामारी कोरोना के मद्देनजर जिला प्रशासन ने इस बार मेले का आयोजन नहीं करने का निर्णय लिया है. इससे स्थानीय लोगों के साथ व्यापारी भी मायूस हैं.

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Published : Nov 7, 2020, 2:34 AM IST

स्पेशल रिपोर्ट.
स्पेशल रिपोर्ट.

आगरा: उत्तर भारत का प्रमुख ऐतिहासिक श्रीबटेश्वरनाथ मेले पर कोरोना का ग्रहण लग गया है. मेला में हर बार लाखों की भीड़ शामिल होती थी. मगर, 374 साल में पहली बार यह मेला नहीं लगेगा. जिला प्रशासन ने कोरोना संक्रमण के चलते मेले के आयोजन को निरस्त कर दिया है. इससे स्थानीय व्यापारी और पशु व्यापारियों में मायूसी है. आगरा में कोरोना कहर के चलते पहले भी ऐतिहासिक रामलीला, रामबारात सहित अन्य तमाम आयोजन निरस्त किए चा चुके हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

साल 1646 में शुरू हुआ था मेला
भदावर राजपरिवार सदस्य व पूर्व मंत्री राजा महेंद्र अरिदमन सिंह ने बताया कि साल 1646 में तत्कालीन भदावर नरेश बदन सिंह ने अर्धचंद्राकार बांध बनाकर बटेश्वर में यमुना का बहाव मोड़ा था. बटेश्वरधाम में यमुना किनारे 101 शिव मंदिर की श्रंखला बनाई गई थी. उसी साल से श्रीबटेश्वरनाथ मेला की शुरुआत हुई. तभी से हर साल श्रीबटेश्वरनाथ मेला का आयोजन हो रहा है. पहले मंदिर के रखरखाव और विकास के लिए या तो जमीन जोड़ दी जाती थी या मेले लगाए जाते थे.

मेला के तीन चरण, नागा बाबाओं का शाही स्नान
दीपावली से दो दिन पहले हर साल श्रीबटेश्वरनाथ मेले की शुरुआत होती थी. श्रीबटेश्वरनाथ मेले का आयोजन तीन चरण में चलता था. पहले चरण में बैल, गाय का पशु मेला लगता था. दूसरे चरण में घोड़े, ऊंट, गधे और खच्चर का पशु मेला लगता था. तीसरे चरण में लोक मेला लगता था, जिसमें एकादशी और पूर्णिमा पर नागा बाबाओं का शाही स्नान होता था. कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों लोग यमुना में डुबकी लगाकर भोले के दर पर माथा टेकते थे.

मेला की अनुमति नहीं दी
श्रीबटेश्वरनाथ मेला का आयोजन हर साल जिला पंचायत की ओर से किया जाता था. लाखों रुपए का बजट जारी किया जाता था, जिससे मेला में आने वाले पशु व्यापारियों और श्रद्धालुओं को कोई परेशानी ना हो. इस बार जिला पंचायत प्रशासन को मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) जे. रीभा ने मेला आयोजन की अनुमति नहीं दी है. इसकी वजह कोविड-19 की गाइडलाइन है. क्योंकि इस मेले में लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है. ऐसे में कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन कराना मुश्किल होगा.

जनप्रतिनिधियों से चर्चा करके लिया निर्णय
सीडीओ जे. रीभा का कहना है कि दुनिया में कोरोना की सेकंड लहर चल रही है. सर्दी में कोरोना का असर और बढ़ेगा. ऐसे में मेले का आयोजन सही नहीं था. पहले भी आगरा में रामलीला के साथ ही अन्य तमाम आयोजन कोरोना संक्रमण के चलते निरस्त किए गए हैं. इसलिए डीएम और जनप्रतिनिधियों से चर्चा करने के बाद मेले का आयोजन नहीं करने का फैसला किया गया है.

देश की राजनीति में बटेश्वर का नाता
यमुना किनारे बसे बटेश्वर का देश की राजनीति में भी अहम योगदान रहा है. यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई का पैतृक मकान है. अटल जी ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत भी बटेश्वर से ही की थी. बटेश्वर में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई के निधन के बाद उनकी अस्थियों को यमुना में विसर्जित करने के लिए बटेश्वर सीएम योगी आए थे.

आगरा में जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर दूर बटेश्वरधाम सभी तीर्थों का भांजा कहा जाता है. यमुना किनारे शिव मंदिरों की श्रृंखला है. यहां देशभर से श्रद्धालु भगवान शिव की आराधना, पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं.

इसे भी पढ़ें- ताजनगरी आगरा की हवा हुई जहरीली, एक्यूआई 300 पार

आगरा: उत्तर भारत का प्रमुख ऐतिहासिक श्रीबटेश्वरनाथ मेले पर कोरोना का ग्रहण लग गया है. मेला में हर बार लाखों की भीड़ शामिल होती थी. मगर, 374 साल में पहली बार यह मेला नहीं लगेगा. जिला प्रशासन ने कोरोना संक्रमण के चलते मेले के आयोजन को निरस्त कर दिया है. इससे स्थानीय व्यापारी और पशु व्यापारियों में मायूसी है. आगरा में कोरोना कहर के चलते पहले भी ऐतिहासिक रामलीला, रामबारात सहित अन्य तमाम आयोजन निरस्त किए चा चुके हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

साल 1646 में शुरू हुआ था मेला
भदावर राजपरिवार सदस्य व पूर्व मंत्री राजा महेंद्र अरिदमन सिंह ने बताया कि साल 1646 में तत्कालीन भदावर नरेश बदन सिंह ने अर्धचंद्राकार बांध बनाकर बटेश्वर में यमुना का बहाव मोड़ा था. बटेश्वरधाम में यमुना किनारे 101 शिव मंदिर की श्रंखला बनाई गई थी. उसी साल से श्रीबटेश्वरनाथ मेला की शुरुआत हुई. तभी से हर साल श्रीबटेश्वरनाथ मेला का आयोजन हो रहा है. पहले मंदिर के रखरखाव और विकास के लिए या तो जमीन जोड़ दी जाती थी या मेले लगाए जाते थे.

मेला के तीन चरण, नागा बाबाओं का शाही स्नान
दीपावली से दो दिन पहले हर साल श्रीबटेश्वरनाथ मेले की शुरुआत होती थी. श्रीबटेश्वरनाथ मेले का आयोजन तीन चरण में चलता था. पहले चरण में बैल, गाय का पशु मेला लगता था. दूसरे चरण में घोड़े, ऊंट, गधे और खच्चर का पशु मेला लगता था. तीसरे चरण में लोक मेला लगता था, जिसमें एकादशी और पूर्णिमा पर नागा बाबाओं का शाही स्नान होता था. कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों लोग यमुना में डुबकी लगाकर भोले के दर पर माथा टेकते थे.

मेला की अनुमति नहीं दी
श्रीबटेश्वरनाथ मेला का आयोजन हर साल जिला पंचायत की ओर से किया जाता था. लाखों रुपए का बजट जारी किया जाता था, जिससे मेला में आने वाले पशु व्यापारियों और श्रद्धालुओं को कोई परेशानी ना हो. इस बार जिला पंचायत प्रशासन को मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) जे. रीभा ने मेला आयोजन की अनुमति नहीं दी है. इसकी वजह कोविड-19 की गाइडलाइन है. क्योंकि इस मेले में लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है. ऐसे में कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन कराना मुश्किल होगा.

जनप्रतिनिधियों से चर्चा करके लिया निर्णय
सीडीओ जे. रीभा का कहना है कि दुनिया में कोरोना की सेकंड लहर चल रही है. सर्दी में कोरोना का असर और बढ़ेगा. ऐसे में मेले का आयोजन सही नहीं था. पहले भी आगरा में रामलीला के साथ ही अन्य तमाम आयोजन कोरोना संक्रमण के चलते निरस्त किए गए हैं. इसलिए डीएम और जनप्रतिनिधियों से चर्चा करने के बाद मेले का आयोजन नहीं करने का फैसला किया गया है.

देश की राजनीति में बटेश्वर का नाता
यमुना किनारे बसे बटेश्वर का देश की राजनीति में भी अहम योगदान रहा है. यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई का पैतृक मकान है. अटल जी ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत भी बटेश्वर से ही की थी. बटेश्वर में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई के निधन के बाद उनकी अस्थियों को यमुना में विसर्जित करने के लिए बटेश्वर सीएम योगी आए थे.

आगरा में जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर दूर बटेश्वरधाम सभी तीर्थों का भांजा कहा जाता है. यमुना किनारे शिव मंदिरों की श्रृंखला है. यहां देशभर से श्रद्धालु भगवान शिव की आराधना, पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं.

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