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बनारसी साहित्यकार बोले, UK के वंर्ड्सवर्थ की तरह मुंशी प्रेमचंद का गांव बने हैरिटेज विलेज - MUNSHI PREMCHAND DEATH ANNIVERSARY

मुंशी प्रेमचंद पुण्यतिथि विशेष: अपने संरक्षण की बांट जो रहा कथा सम्राट का गांव लमही, पीएम दे सकते हैं इसे नई सौगात

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पने संरक्षण की बांट जो रहा कथा सम्राट का गांव लमही. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 8, 2024, 3:32 PM IST

वाराणसी: 'लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है. जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे?'. मुंशी प्रेमचंद की यह लेखनी समाज को नया आयाम देने के साथ जीवन को एक नया लक्ष्य भी देती है.

उनकी लेखनी ने समाज को एक नई दिशा और दशा दी. मगर समाज को बदलने की क्षमता रखने वाले मुंशी प्रेमचंद की विरासत आज बदहाली के कगार पर है. उनके गांव का मकान आज कायकल्प की राह देख रहा है.

मुंशी प्रेम चंद के गांव लमही से संवाददाता की खास रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

आज मौका है कथा सम्राट की पुण्यतिथि का. ऐसे में आज हम उनके गांव आए हैं. जहां उनकी विरासत अपने संरक्षण की बाट जोह रही है. वर्तमान समय में यहां पर उनकी विरासत में सिर्फ उनका वह घर मौजूद है, जहां वह रहा करते थे. यह घर जीर्णशीर्ण हालत में है.

इसके अलावा यह पूरा गांव अपने संरक्षण की गुहार लगा रहा है. सरकार ने देर से ही सही, लेकिन अब मुंशी प्रेमचंद की विरासत को सहेजने का निर्णय लिया है. यहां पर संग्रहालय बनाए जाने की शुरुआत होने वाली है.

लमही में हुआ था मुंशी प्रेमचंद का जन्म: मुंशी जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी से कुछ दूरी पर लमही गांव में हुआ था. इसी गांव में उनका घर स्थित है. कायस्थ परिवार में जन्मे मुंशी प्रेमचंद की माता का नाम आनन्दी देवी था और पिता का नाम मुंशी अजायबराय था, जो लमही में डाकमुंशी थे.

मुंशी प्रेमचंद के लमही स्थित आवास पर रखा हुक्का.
मुंशी प्रेमचंद के लमही गांव स्थित आवास पर रखा हुक्का. (Photo Credit; ETV Bharat)

मुंशी प्रेमचंद उन कुछ लेखकों में से आते हैं, जिन्होंने लेखनी के दम पर समाज की कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई थी. इतना ही नहीं उनके लिखने से अंग्रेजों को भी डर लगने लगा था. ऐसे थे 'कलम के सिपाही'.

सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ उठाई थी आवाज: मुंशी प्रेमचंद ने सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ अपनी कलम के माध्यम से पुरजोर आवाज उठाई थी. मुंशी प्रेमचंद विधवा विवाह के पक्षधर थे. उन्होंने विधवा विवाह के माध्यम से सामाजिक सरोकार दिखाया था.

मुंशीजी ने समाज के विरुद्ध जाकर शिवरानी से विवाह रचाया. प्रेमचंद ने विधवा विवाह पर आधारित एक उपन्यास भी लिखा, जिसका नाम 'प्रेमा' था. यह उपन्यास साल 1907 में उर्दू में प्रकाशित हुआ था. उन्होंने सांप्रदायिकता, बहुविवाह, किरायेदारों पर जमींदारों का अत्याचार और महिला शिक्षा की कमी जैसे मुद्दों पर भी अपनी कलम चलाई थी.

Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद के लमही गांव स्थित आवास. (Photo Credit; ETV Bharat)

'सरकार मुंशी जी के मकान का करे संरक्षण': डॉ. दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव कहते हैं, मैं मुंशी प्रेमचंद के परिवार से ही आता हूं. इस विरासत को बचाने के लिए मैं साल 1978 से संघर्ष कर रहा हूं. ये खपरैल का मकान था. इसी मकान वे पैदा हुए थे और यहीं पर उनकी मूर्ति लगाई गई है. इसका शिलान्यास प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हाथों हुआ था. कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो यहां न आता हो. सरकार इस मकान का संरक्षण नहीं कर रही है. मुलायम सिंह यादव ने इसके संरक्षण के लिए 25 लाख रुपये दिए थे. इसका संरक्षण किया जाना चाहिए.

उनके घर को स्मारक का रूप दिया गया: साल 1959 में मुंशी प्रेमचंद के गांव का पुश्तैनी मकान ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ को दान कर दिया गया था. गांव में उनके घर को स्मारक का रूप दे दिया गया. मुंशी जी का मकान, वहां के कुएं और चौबारे उनकी स्मृतियां समेटे हैं. स्मारक के कक्ष में रेडियो, हुक्का, टॉर्च, सूत कातने का चरखा आदि रखा हुआ है. इसके साथ ही इसी कक्ष में एक लेटर बॉक्स भी है. आकार में यह बॉक्स छोटा है. इसके ऊपर एक तख्ती पर लिखा हुआ है, ‘डाक मुंशी का बेटा बना सम्राट!’. ऐसी ही कई वस्तुएं हैं, जो मुंशी प्रेमचंद की याद दिलाती हैं.

Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद के लमही गांव स्थित स्मारक. (Photo Credit; ETV Bharat)

मुंशी प्रेमचंद का गांव बने हैरिटेज विलेज: स्थानीय साहित्यकार कहते हैं कि जिस तरह से यूके में वंर्ड्सवर्थ के नाम पर एक गांव बसा दिया गया है. उसी तरह से लमही भी एक हैरिटेज विलेज बनना चाहिए. मुंशी प्रेमचंद जी के नाम पर मूर्तियों, चित्रों आदि के माध्यम से विकास करना चाहिए. ऐसा स्थान भी होना चाहिए जहां लोग उनके नाटकों का मंचन कर सकें.

ऐसा काम करना चाहिए कि भावी पीढ़ी मुंशी प्रेमचंद को कभी न भूल सके और उन्हें उसी रूप में याद रखे, जिस रूप में उन्होंने देश के लिए काम किया था. साहित्यकार डॉ. जयशंकर कहते हैं कि हम करीब 2 दशक से इसकी मांग कर रहे हैं कि इस गांव को हैरिटेज विलेज घोषित किया जाए. इसकी ख्याति बनी रहे.

Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन केंद्र. (Photo Credit; ETV Bharat)

जल्द से जल्द शुरू होगा संग्रहालय का काम: पर्यटन उपनिदेशक आरके रावत कहते हैं कि, दो संग्रहालय बनने जा रहे हैं. इसमें से एक लमही गांव में बनाया जाना है. इस संग्रहालय के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा सहमति मिल चुकी है. इसके लिए धनराशि जारी हो चुकी है. जल्द से जल्द हमारे द्वारा इसका काम शुरू किया जाएगा. मुंशी प्रेमचंद के घर को म्यूजियम बनाएंगे. इसमें जनता के लिए उनकी कृतियां रखेंगे. जो शोधार्थी उन पर शोध करने के लिए आते हैं, उनका इससे बहुत लाभ होगा.

Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद के लमही गांव में बना स्मृति द्वार. (Photo Credit; ETV Bharat)

15 उपन्यास और 300 से अधिक कहानियां: धनपत राय श्रीवास्तव यानी मुंशी प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की आयु में हो गया था. उन्होंने अपने जीनव काल में बहुत सी ऐसी रचनाएं कीं, जिन्होंने समाज की हकीकत को बयान किया. साथ ही, कुप्रथाओं पर भी आघात किया. मुंशी जी ने मंगलसूत्र, कर्मभूमि, निर्मला, गोदान, गबन, प्रतिज्ञा जैसे लगभग 15 उपन्यास लिखे. वहीं, लगभग 300 से ज्यादा कहानियों के साथ 10 पुस्तकों का अनुवाद भी किया. इतना ही नहीं 07 बाल साहित्य, तीन नाटक समेत बहुत सी अन्य पुस्तकों की रचना की.

ये भी पढ़ेंः केशव प्रसाद मौर्य-अखिलेश यादव में सोशल मीडिया पर छिड़ी जंग; मुद्दा तेजस्वी यादव के बंगले से टोटी चोरी होना

वाराणसी: 'लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है. जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे?'. मुंशी प्रेमचंद की यह लेखनी समाज को नया आयाम देने के साथ जीवन को एक नया लक्ष्य भी देती है.

उनकी लेखनी ने समाज को एक नई दिशा और दशा दी. मगर समाज को बदलने की क्षमता रखने वाले मुंशी प्रेमचंद की विरासत आज बदहाली के कगार पर है. उनके गांव का मकान आज कायकल्प की राह देख रहा है.

मुंशी प्रेम चंद के गांव लमही से संवाददाता की खास रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

आज मौका है कथा सम्राट की पुण्यतिथि का. ऐसे में आज हम उनके गांव आए हैं. जहां उनकी विरासत अपने संरक्षण की बाट जोह रही है. वर्तमान समय में यहां पर उनकी विरासत में सिर्फ उनका वह घर मौजूद है, जहां वह रहा करते थे. यह घर जीर्णशीर्ण हालत में है.

इसके अलावा यह पूरा गांव अपने संरक्षण की गुहार लगा रहा है. सरकार ने देर से ही सही, लेकिन अब मुंशी प्रेमचंद की विरासत को सहेजने का निर्णय लिया है. यहां पर संग्रहालय बनाए जाने की शुरुआत होने वाली है.

लमही में हुआ था मुंशी प्रेमचंद का जन्म: मुंशी जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी से कुछ दूरी पर लमही गांव में हुआ था. इसी गांव में उनका घर स्थित है. कायस्थ परिवार में जन्मे मुंशी प्रेमचंद की माता का नाम आनन्दी देवी था और पिता का नाम मुंशी अजायबराय था, जो लमही में डाकमुंशी थे.

मुंशी प्रेमचंद के लमही स्थित आवास पर रखा हुक्का.
मुंशी प्रेमचंद के लमही गांव स्थित आवास पर रखा हुक्का. (Photo Credit; ETV Bharat)

मुंशी प्रेमचंद उन कुछ लेखकों में से आते हैं, जिन्होंने लेखनी के दम पर समाज की कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई थी. इतना ही नहीं उनके लिखने से अंग्रेजों को भी डर लगने लगा था. ऐसे थे 'कलम के सिपाही'.

सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ उठाई थी आवाज: मुंशी प्रेमचंद ने सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ अपनी कलम के माध्यम से पुरजोर आवाज उठाई थी. मुंशी प्रेमचंद विधवा विवाह के पक्षधर थे. उन्होंने विधवा विवाह के माध्यम से सामाजिक सरोकार दिखाया था.

मुंशीजी ने समाज के विरुद्ध जाकर शिवरानी से विवाह रचाया. प्रेमचंद ने विधवा विवाह पर आधारित एक उपन्यास भी लिखा, जिसका नाम 'प्रेमा' था. यह उपन्यास साल 1907 में उर्दू में प्रकाशित हुआ था. उन्होंने सांप्रदायिकता, बहुविवाह, किरायेदारों पर जमींदारों का अत्याचार और महिला शिक्षा की कमी जैसे मुद्दों पर भी अपनी कलम चलाई थी.

Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद के लमही गांव स्थित आवास. (Photo Credit; ETV Bharat)

'सरकार मुंशी जी के मकान का करे संरक्षण': डॉ. दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव कहते हैं, मैं मुंशी प्रेमचंद के परिवार से ही आता हूं. इस विरासत को बचाने के लिए मैं साल 1978 से संघर्ष कर रहा हूं. ये खपरैल का मकान था. इसी मकान वे पैदा हुए थे और यहीं पर उनकी मूर्ति लगाई गई है. इसका शिलान्यास प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हाथों हुआ था. कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो यहां न आता हो. सरकार इस मकान का संरक्षण नहीं कर रही है. मुलायम सिंह यादव ने इसके संरक्षण के लिए 25 लाख रुपये दिए थे. इसका संरक्षण किया जाना चाहिए.

उनके घर को स्मारक का रूप दिया गया: साल 1959 में मुंशी प्रेमचंद के गांव का पुश्तैनी मकान ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ को दान कर दिया गया था. गांव में उनके घर को स्मारक का रूप दे दिया गया. मुंशी जी का मकान, वहां के कुएं और चौबारे उनकी स्मृतियां समेटे हैं. स्मारक के कक्ष में रेडियो, हुक्का, टॉर्च, सूत कातने का चरखा आदि रखा हुआ है. इसके साथ ही इसी कक्ष में एक लेटर बॉक्स भी है. आकार में यह बॉक्स छोटा है. इसके ऊपर एक तख्ती पर लिखा हुआ है, ‘डाक मुंशी का बेटा बना सम्राट!’. ऐसी ही कई वस्तुएं हैं, जो मुंशी प्रेमचंद की याद दिलाती हैं.

Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद के लमही गांव स्थित स्मारक. (Photo Credit; ETV Bharat)

मुंशी प्रेमचंद का गांव बने हैरिटेज विलेज: स्थानीय साहित्यकार कहते हैं कि जिस तरह से यूके में वंर्ड्सवर्थ के नाम पर एक गांव बसा दिया गया है. उसी तरह से लमही भी एक हैरिटेज विलेज बनना चाहिए. मुंशी प्रेमचंद जी के नाम पर मूर्तियों, चित्रों आदि के माध्यम से विकास करना चाहिए. ऐसा स्थान भी होना चाहिए जहां लोग उनके नाटकों का मंचन कर सकें.

ऐसा काम करना चाहिए कि भावी पीढ़ी मुंशी प्रेमचंद को कभी न भूल सके और उन्हें उसी रूप में याद रखे, जिस रूप में उन्होंने देश के लिए काम किया था. साहित्यकार डॉ. जयशंकर कहते हैं कि हम करीब 2 दशक से इसकी मांग कर रहे हैं कि इस गांव को हैरिटेज विलेज घोषित किया जाए. इसकी ख्याति बनी रहे.

Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन केंद्र. (Photo Credit; ETV Bharat)

जल्द से जल्द शुरू होगा संग्रहालय का काम: पर्यटन उपनिदेशक आरके रावत कहते हैं कि, दो संग्रहालय बनने जा रहे हैं. इसमें से एक लमही गांव में बनाया जाना है. इस संग्रहालय के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा सहमति मिल चुकी है. इसके लिए धनराशि जारी हो चुकी है. जल्द से जल्द हमारे द्वारा इसका काम शुरू किया जाएगा. मुंशी प्रेमचंद के घर को म्यूजियम बनाएंगे. इसमें जनता के लिए उनकी कृतियां रखेंगे. जो शोधार्थी उन पर शोध करने के लिए आते हैं, उनका इससे बहुत लाभ होगा.

Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद के लमही गांव में बना स्मृति द्वार. (Photo Credit; ETV Bharat)

15 उपन्यास और 300 से अधिक कहानियां: धनपत राय श्रीवास्तव यानी मुंशी प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की आयु में हो गया था. उन्होंने अपने जीनव काल में बहुत सी ऐसी रचनाएं कीं, जिन्होंने समाज की हकीकत को बयान किया. साथ ही, कुप्रथाओं पर भी आघात किया. मुंशी जी ने मंगलसूत्र, कर्मभूमि, निर्मला, गोदान, गबन, प्रतिज्ञा जैसे लगभग 15 उपन्यास लिखे. वहीं, लगभग 300 से ज्यादा कहानियों के साथ 10 पुस्तकों का अनुवाद भी किया. इतना ही नहीं 07 बाल साहित्य, तीन नाटक समेत बहुत सी अन्य पुस्तकों की रचना की.

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