आगरा : सोशल मीडिया के दौर में बीमारियों के नाम भी अटपटे हैं. आज किशोर और युवाओं का स्क्रीन टाइम बढ़ा है. जिससे दिमाग पर नया फितूर ऑनलाइन गेमिंग या ऑनलाइन गैंबलिंग का सवार हो गया है. जिससे उनका व्यवहार बदल रहा है. जब उन्हें ऑनलाइन गेमिंग और गैंबलिंग से रोका जाता है तो वे ड्रग एडिक्ट की तरह व्यवहार करते हैं. झटपटाते और तड़पते हैं. इसलिए, गेमिंग और गैंबलिंग का उपचार मनोरोग मानकर किया जा रहा है.
इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइकाइट्री (Indian Association for Social Psychiatry) की आगरा में तीन दिवसीय 29वीं राष्ट्रीय सेमिनार हो रही है. इस सेमिनार में इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइकाइट्री के प्रेसिडेंट प्रो. प्रताप सरन, दिल्ली एम्स के मनोरोग विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रो. सिद्धार्थ कुमार और पीजीआई चंडीगढ़ के मनोचिकित्सा विभाग के एचओडी डॉ देवाशीष बासू ने भी शिरकत की. ईटीवी भारत से खास बातचीत में एक्सपर्टस ने सोशल मीडिया की वजह से हो रही बीमारियों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया की लत किशोर और युवाओं को तेजी से मनोरोगी बना रही है. यह बीमारी बिहेवियर एडिक्शन है. जिस तरह से तंबाकू, शराब का नशा होता है. उसी तरह से इंटरनेट, आनलाइन गेमिंग और पोर्नोग्राफी भी एक तरह का नशा है. नशे की चीजों का सेवन करने से शरीर खराब होता है. मोबाइल या इंटरनेट एडिक्शन से दिमागी बीमारियां होती हैं.
ऑनलाइन गेमिंग और गैंबलिंग है मनोरोग : इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइकाइट्री (Indian Association for Social Psychiatry) के प्रेसिडेंट प्रो. प्रताप सरन ने बताया कि, सोशल मीडिया की वजह से बीमारियां हो रही हैं. डब्ल्यूएचओ और अमेरिकन साइक्रेटिक एसोसिएशन इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर और पैथोलॉजिकल गैंबलिंग को भी बीमारी मान रहे हैं. मगर इसे अभी कोई नाम नहीं दिया गया है. पीजीआई चंडीगढ़ के मनोचिकित्सा विभाग के एचओडी डॉ. देवाशीष बासू ने बताया कि बिहेवियर एडिक्शन (behavior addiction) एक बड़ी बीमारी हैं. इसके लक्षण यह है कि सोशल मीडिया के उपयोग के चलते युवा अपनी पढ़ाई और खाना तक छोड़ देते हैं. काम धंधा छोड़ देते हैं. परिवार को इग्नोर करते हैं. उनके लिए सबसे बड़ी बात मोबाइल पर गेम खेलना, गैंबलिंग करना या मोबाइल पर दिनभर समय बिताना रहता है.
बिहेवियर एडिक्शन (behavior addiction) के इफेक्ट भी खतरनाक हैं. इससे पढाई प्रभावित होती है. काम भी समय पर नहीं होता है. मोबाइल पर सोशल मीडिया का उपयोग जरूरत से ज्यादा के कारण आठ से दस प्रतिशत युवा बिहेवियर एडिक्शन का शिकार हो रहे हैं. देश की बात करें तो बिहेवियर एडिक्शन की चपेट में आने वालों की उम्र 16 से लेकर 35 साल है. इस बीमारी का फौरी इलाज नहीं है. फोन के लती युवाओं का इलाज उनकी आदत बदल कर किया जाता है. आदत और उनका डेली रुटीन बदलकर ट्रीटमेंट किया जाता है. जिसके बेहतर परिणाम भी आ रहे हैं.
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (Cognitive behavioral therapy) से बेहतर उपचार : दिल्ली एम्स के मनोरोग विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रो. सिद्धार्थ ने बताया कि, बिहेविर एडिक्शन के उपचार के लिए मैन अप्रोच काउंसलिंग (man approach counseling) की जाती है. यह एक कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी है. इसमें बिहेवियर एडिक्शन से ग्रसित किशोर या युवाओं का डेली रूटीन चार्ट बनाया जाता है. जिसके मुताबिक, उन्हें दिनचर्या रखनी होती है. इससे बिना दवा खाए ही लोगों को ठीक किया जा रहा है.
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