आगरा: हमें आजादी भारत ने दिलाई थी. हम मुक्ति योद्धा बांग्लादेश की आजादी को लेकर संकल्पित थे. इधर, पाकिस्तान की सेना ने जुल्म ढाना शुरू किया. हमारी पाकिस्तानी सेना से आमने-सामने की लड़ाई थी. हमने गुरिल्ला युद्ध शुरू किया. मुक्ति योद्धाओं को जब भी दिन हो या रात में मौका मिलता तो पाकिस्तानी सेना पर हमला कर देते. पाकिस्तानी सेना के हथियार और खाने की रसद बर्बाद कर देते थे.
इससे पाकिस्तानी सेना का मनोबल गिर रहा था. तभी मित्र वाहिनी (भारत की नभ और थल सेना) ने मुक्ति योद्धा की मदद से पाकिस्तानी सेना पर धावा बोला. इससे पाकिस्तानी सेना ने हथियार डाल दिए. बांग्लादेश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले मुक्त वाहिनी के योद्धाओं ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में तमाम संस्मरण साझा किए. बांग्लादेश आर्मी से रिटायर्ड अधिकारी व मुक्ति योद्धा के साथ ही मुक्ति योद्धा व रिटायर्ड असिस्टेंट प्रोफेसर बोले... भारतीय सेना की मदद से आज हम आजाद हैं.
बांग्लादेश की आजादी में मित्र वाहिनी और मुक्ति वाहिनी के स्वतंत्रता सैनानियों की भूमिका अहम रही. बांग्लादेश अपनी आजादी की 50वीं वर्षगांठ मना रहा है. मुक्ति वाहिनी के मुक्ति योद्धाओं का प्रतिनिधिमंडल भारत सरकार के बुलावे पर भारत भ्रमण पर आया है. शुक्रवार शाम मुक्ति वाहिनी के योद्धाओं का दल स्वर्णम स्पेशल ट्रेन से आगरा कैंट स्टेशन पर पहुंचा. जहां पर उनका स्वागत किया गया. इससे मुक्ति योद्धा और उनके साथ आए परिवार व बांग्लादेश सेना के अधिकारी गदगद हो गए.
भारतीय सेना संग कंधे से कंधा मिलाकर लड़े मुक्ति योद्धा
मुक्ति वाहिनी के स्वतंत्रता सैनानी मोहम्मद बली रहमान ने बताया कि भारत सरकार के बुलावे पर मुक्ति योद्धा का प्रतिनिधिमंडल
13 दिसंबर 2021 को ढाका से नई दिल्ली आया है. 16 दिसंबर तक हम दिल्ली में रहे और 17 दिसंबर को आगरा आए. स्वतंत्रता सेनानी मोहम्मद बली रहमान ने बताया कि जब मुक्ति वाहिनी के योद्धा बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ रहे थे.
ट्रेनिंग के बाद फिर हम यहां से गोला, बारूद और तमाम हथियार लेकर बांग्लादेश पहुंचे. फिर मुक्ति वाहिनी और मित्र वाहिनी (भारतीय सेना) ने कंधे से कंधा मिलाकर पाकिस्तानी सेना से युद्ध किया. हमने आमने-सामने की पाकिस्तानी सेना से लड़ाई लड़ी. हमारी ताकत और युद्ध रणनीति को देखकर पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर किया. मित्र वाहिनी और मुक्ति वाहिनी के रणबांकुरों के आगे पाकिस्तानी सेना के 93 हजार से सैनिकों ने हथियार डाल दिए और हमें आजादी मिल गई.
भारत में ली थी सेना की ट्रेनिंग
बांग्लादेश के नीलफमारी जिला निवासी मुक्ति वाहिनी के स्वतंत्रता सैनानी सैय्यद गुलाम किबिरिया ने बताया कि वह रिटायर्ड असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. वे 19 साल की उम्र में बांग्लादेश की आजादी के लिए मुक्ति वाहिनी में शामिल हुए थे. पढ़ाई छोड़कर देश की आजादी को पाकिस्तानी से लड़ने के लिए घर छोड़ दिया था. पाकिस्तानी सेना ने 25 मार्च 1971 को बांग्लादेश में लड़ाई शुरू कर दी थी. तभी भारतीय सेना के अधिकारियों ने मुक्ति वाहिनी के योद्धाओं को ट्रेनिंग के लिए भारत भेजा. वह भी मुक्ति वाहिनी के योद्धाओं के साथ भारत ट्रेनिंग के लिए आए थे. यहां पर मित्र वाहिनी के अधिकारियों ने मुक्ति वाहिनी के तमाम योद्धाओं को उनकी योग्यता और काबिलियत के हिसाब से युद्ध की ट्रेनिंग दी. किसी को 15 दिन तो किसी को 21 दिन की ट्रेनिंग दी गई थी. फिर हमें बांग्लादेश भेजा गया था.
गुरिल्ला युद्ध से करते थे पाकिस्तानी सेना हमला
मुक्ति वाहिनी के स्वतंत्रता सेनानी सैय्यद गुलाम किबिरिया ने बताया कि भारत में ट्रेनिंग लेने के बाद हम लोग गोला बारूद और असलाह के साथ बांग्लादेश पहुंचे. जहां पर हमारी लड़ाई पाकिस्तानी सेना से थी. मित्र वाहिनी (भारतीय सेना) की ओर से यह टारगेट दिया गया था कि हमें पाकिस्तानी सेना की लोकेशन देनी है. इसके साथ ही हमारा काम हथियार, गोला, बारूद और राशन की रसद को बर्बाद करना था. इसलिए हमें गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी गई थी.
मुक्त वाहिनी के योद्धा हर समय सतर्क रहते थे. पाकिस्तानी सेना के डेरा डालने, असलाह, गोला और बारूद की जानकारी करते थे और फिर पाकिस्तानी सेना पर धावा बोल देते थे. हम गुरिल्ला युद्ध से पाकिस्तानी सेना का गोला बारूद और हथियार के साथ ही राशन की रसद खत्म या बर्बाद करते थे.
एक गोली अपने लिए यह था हमारा ध्येय
मुक्ति वाहिनी के स्वतंत्रता सैनानी सैय्यद गुलाम किबिरिया ने बताया कि गुरिल्ला युद्ध से पाकिस्तानी सेना को खूब परेशान किया. पाकिस्तानी सेना का असलाह और रसद बंद करा दिया. पाकिस्तानी सेना का ही उसकी सेना से कनेक्शन कट कर देते थे. इससे पाकिस्तानी सेना का मनोबल गिरा. बम लगाकर उनके वाहन उड़ा देते थे. इस दौरान रणनीति के तहत पाकिस्तानी सेना पर भारतीय वायुसेना के जंगी जहाज बम बरसाते थे.
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सन् 1971 के युद्ध में मित्र वाहिनी (भारतीय सेना) की मुक्त वाहिनी के योद्धा के आंख-कान बने हुए थे. ट्रेनिंग में हमें यह भी बताया गया था कि एक गोली अपने लिए रखनी है. क्योंकि, यदि दुश्मन से लड़ते समय असलाह खत्म होने पर दुश्मन के हाथ आने की बजाय अपने लिए बचाकर रखी गोली से शहीद हो जाएं. इस तरह मित्र वाहिनी और मुक्ति वाहिनी के योद्धाओं ने मिलकर पाकिस्तान की सेना को परास्त करके बांग्लादेश को आजाद कराया.
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