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जब लोकसभा चुनाव में फतेहपुर सीकरी से जमानत भी नहीं बचा पाए थे अमर सिंह

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Published : Aug 1, 2020, 8:24 PM IST

राज्यसभा सांसद अमर सिंह का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद 64 साल की उम्र में निधन हो गया. अमर सिंह एक समय समाजवादी पार्टी की नंबर दो पोजिशन के नेता भी रहे थे. हालांकि साल 2010 में पार्टी के सभी पदों से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उन्होंने रालोद पार्टी ज्वाइन कर 2014 का लोकसभा चुनाव फतेहपुर सीकरी सीट से लड़ा, लेकिन अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए.

अमर सिंह.
अमर सिंह.

आगरा: राज्यसभा सांसद अमर सिंह का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद सिंगापुर में निधन हो गया. अमर सिंह समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता थे, जिनका आगरा की मिट्टी से पुराना नाता रहा है. अमर सिंह राजनीतिक रैलियों के चलते कई बार आगरा की धरती पर आए थे. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में अमर सिंह ने आगरा की फतेहपुर सीकरी सीट से अपनी किस्मत आजमाई थी, हालांकि इस दौरान उन्हें करारी शिकस्त भी मिली थी.

अमर सिंह रालोद के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे. इस दौरान उनकी रैलियों और सभाओं में भीड़ तो खूब उमड़ी, लेकिन भीड़ की संख्या को वे वोटों में नहीं बदल पाए . इसके बाद से ही इस बात की टीस अमर सिंह को हमेशा से बनी हुई थी.

मोदी लहर ने डुबोई थी अमर सिंह की नैया
रालोद के तत्कालीन प्रदेश प्रवक्ता कप्तान सिंह चाहर ने बताया कि साल 2014 में देश में नरेंद्र मोदी की लहर थी. इससे अमर सिंह की सभाओं में भारी भीड़ उमड़ने के बाद भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. जबकि अमर सिंह के रालोद से लड़ने के चलते जाट और राजपूत समुदाय एकजुट हो गया था, लेकिन मोदी लहर ने सारा खेल खराब कर दिया.

अमर सिंह कैसे बने प्रत्याशी ?
दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव में फतेहपुर सीकरी सीट अस्तित्व में आई थी. पहली बार बीएसपी ने सीमा उपाध्याय को अपना प्रत्याशी बनाया था. 2014 में फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर करीब 16 लाख वोटर थे. इसमें 2 लाख जाट, डेढ़ लाख कुशवाहा, 1 लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता थे. इसके अलावा सबसे ज्यादा 6 लाख वोट ठाकुर और ब्राह्मणों के थे. इसके चलते इस सीट से अमर सिंह और रालोद मुखिया अजीत सिंह लड़ना पक्का माना जा रहा था. जाट तो पहले से ही अजीत सिंह के साथ थे, इसलिए ठाकुरों को साधने के लिए इस सीट से अमर सिंह को प्रत्याशी बनाया गया.

जब्त हो गई थी जमानत
फतेहपुर सीकरी से रालोद की टिकट पर लोकसभा चुनाव में उतरे अमर सिंह के सामने बीजेपी ने चौधरी बाबूलाल, बसपा ने सीमा उपाध्याय और सपा ने रानी पक्षालिका सिंह पर दांव लगाया था. जहां बीजेपी के बाबूलाल चौधरी ने 4 लाख 26 वोटों के साथ सभी प्रत्याशियों को धूल चटाई थी. वहीं इस चुनाव में अमर सिंह की जमानत जब्त हो गई थी, जहां उन्हें महज 24 हजार 185 वोट ही मिले थे.

समाजवादी पार्टी में थी अलग पहचान
एक समय अमर सिंह समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार थे, लेकिन सपा नेता आजम खान के साथ खटास के चलते अमर सिंह साल 2010 में समाजवादी पार्टी से अलग हो गए थे. इसके बाद अमर सिंह ने रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह की मौजूदगी में पार्टी ज्वाइन कर ली.

इसे भी पढ़ें- आगरा: सर्राफा व्यापारी से 350 करोड़ रुपये रंगदारी मांगने वाला युवक गिरफ्तार

आगरा: राज्यसभा सांसद अमर सिंह का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद सिंगापुर में निधन हो गया. अमर सिंह समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता थे, जिनका आगरा की मिट्टी से पुराना नाता रहा है. अमर सिंह राजनीतिक रैलियों के चलते कई बार आगरा की धरती पर आए थे. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में अमर सिंह ने आगरा की फतेहपुर सीकरी सीट से अपनी किस्मत आजमाई थी, हालांकि इस दौरान उन्हें करारी शिकस्त भी मिली थी.

अमर सिंह रालोद के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे. इस दौरान उनकी रैलियों और सभाओं में भीड़ तो खूब उमड़ी, लेकिन भीड़ की संख्या को वे वोटों में नहीं बदल पाए . इसके बाद से ही इस बात की टीस अमर सिंह को हमेशा से बनी हुई थी.

मोदी लहर ने डुबोई थी अमर सिंह की नैया
रालोद के तत्कालीन प्रदेश प्रवक्ता कप्तान सिंह चाहर ने बताया कि साल 2014 में देश में नरेंद्र मोदी की लहर थी. इससे अमर सिंह की सभाओं में भारी भीड़ उमड़ने के बाद भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. जबकि अमर सिंह के रालोद से लड़ने के चलते जाट और राजपूत समुदाय एकजुट हो गया था, लेकिन मोदी लहर ने सारा खेल खराब कर दिया.

अमर सिंह कैसे बने प्रत्याशी ?
दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव में फतेहपुर सीकरी सीट अस्तित्व में आई थी. पहली बार बीएसपी ने सीमा उपाध्याय को अपना प्रत्याशी बनाया था. 2014 में फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर करीब 16 लाख वोटर थे. इसमें 2 लाख जाट, डेढ़ लाख कुशवाहा, 1 लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता थे. इसके अलावा सबसे ज्यादा 6 लाख वोट ठाकुर और ब्राह्मणों के थे. इसके चलते इस सीट से अमर सिंह और रालोद मुखिया अजीत सिंह लड़ना पक्का माना जा रहा था. जाट तो पहले से ही अजीत सिंह के साथ थे, इसलिए ठाकुरों को साधने के लिए इस सीट से अमर सिंह को प्रत्याशी बनाया गया.

जब्त हो गई थी जमानत
फतेहपुर सीकरी से रालोद की टिकट पर लोकसभा चुनाव में उतरे अमर सिंह के सामने बीजेपी ने चौधरी बाबूलाल, बसपा ने सीमा उपाध्याय और सपा ने रानी पक्षालिका सिंह पर दांव लगाया था. जहां बीजेपी के बाबूलाल चौधरी ने 4 लाख 26 वोटों के साथ सभी प्रत्याशियों को धूल चटाई थी. वहीं इस चुनाव में अमर सिंह की जमानत जब्त हो गई थी, जहां उन्हें महज 24 हजार 185 वोट ही मिले थे.

समाजवादी पार्टी में थी अलग पहचान
एक समय अमर सिंह समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार थे, लेकिन सपा नेता आजम खान के साथ खटास के चलते अमर सिंह साल 2010 में समाजवादी पार्टी से अलग हो गए थे. इसके बाद अमर सिंह ने रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह की मौजूदगी में पार्टी ज्वाइन कर ली.

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